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कई बार विवाद की भेंट चढ़ी है 37 साल से बंद बोधघाट योजना, अब 56 गांव का विरोध

अब तक अरबों खर्च हो चुके हैं, लेकिन कभी लोगों को पूरा लाभ नहीं मिल सका, फिर सियासत

कई बार विवाद की भेंट चढ़ी है 37 साल से बंद बोधघाट योजना, अब 56 गांव का विरोध
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सुरेश रावल. जगदलपुर. लगभग 37 साल पहले 1983 में विश्व बैंक की मदद से 500 मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए बारसूर में शुरू की गई इंदिरा सरोवर जल विद्युत परियोजना को फिर से शुरू करने राज्य शासन ने पहल की है। 600 करोड़ की यह महत्वाकांक्षी परियोजना 1985 में 80 करोड़ खर्च करने के बाद बंद करनी पड़ी। उस दौरान इंद्रावती नदी को रोकने से 260 किमी क्षेत्र के 48 गांव के 5 हजार परिवार और 8 लाख वृक्ष काटना प्रस्तावित था। मध्यप्रदेश विद्युत मंडल द्वारा एक के बदले तीन वृक्ष लगाने की योजना बनाई गई थी। जिसके लिए 115 गांव में 24 लाख पौधे लगाने की योजना बनी। पौधरोपण के नाम पर 16 करोड़ खर्च किया गया। लेकिन मामला अटक गया।

जगदलपुर से लगभग 100 किमी दूर एतिहासिक और पुरातात्विक बारसूर नगरी में परियोजना को अमली जामा पहनाने पॉवर हाऊस, रेस्ट हाऊस, कॉलोनी और पुल का निर्माण हुआ। ठंडे बस्ते में जाने के बाद 35 साल से बंद पड़ी इस परियोजना के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हर किसान के खेत में पानी पहुंचाने की मंशा के साथ शुरू करने की पहल की। लेकिन जैसा अक्सर होता है। योजना के ऐलान के साथ ही विरोध शुरू हो गया।

तीन जिले, 56 गांव में अर्थदंड की मुनादी

इस योजना के विरोध में 56 गांव के लोग लामबंद हो गए हैं। बस्तर, बीजापुर और दंतेवाड़ा तीन जिले के प्रभावित गांव के लोगों ने तीन दिन का विरोध प्रदर्शन बारसूर के समीप ग्राम हितालकुड़म में 7, 8 और 9 फरवरी को किया। फरमान जारी किया गया था कि हर घर के एक सदस्य को आना अनिवार्य है। नहीं आने वालों पर 5 हजार का अर्थदंड लगाया जाएगा। इस विरोध में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अरविंद नेताम, पूर्व विधायक राजाराम तोड़ेम, लच्छूराम कश्यप, मनीष कुंजाम आदि पहुंचे थे।

डुबान क्षेत्र में 56 गांव और 55 हजार आबादी

बस्तर जिले के लोहण्डीगुड़ा ब्लाक के बिंता, भेजा, करेकोट, सुलेंगा, हर्राकोडेर, पिच्चीकोडेर, मालेवाही, एरपुंड, हितामेटा और जताकोंटा वहीं बीजापुर जिले में भैरमगढ़ ब्लाक के ग्राम मंगनार, कोसलनार, हितालकुडुम, बैंगलूर, कोयम, सड़ार, मोर्समेटा, तोड़मा, बुडदु़म, गोमटेर, हादावाड़ा, बाकेली, मटासी और तुसकाल, जिला दंतेवाड़ा के गीदम ब्लाक के भटपाल, नेहुरनार, उदेनार, मुचनार, झारावाया, अलवाई, हितामेड़ा समेत लगभग 45 गांव को डुबान क्षेत्र माना जा रहा है। 1983 में 48 गांव के 5 हजार परिवार एवं 8 लाख पेड़ कटने का अंदेशा था। आज की स्थिति में 56 गांव के 55 हजार आबादी और 20 से 25 लाख पेड़ कटने की बात कही जा रही है।

दो बार नक्सली विरोध से कंपनी लौटी

छत्तीसगढ़ बनने के बाद भाजपा शासन के समय 2004 और 2014 में निजी कंपनियों के साथ मिलकर सरकार ने इसे शुरू करने का प्रयास किया था। उस वक्त ग्रामीणों का विरोध प्रबल नहीं था लेकिन नक्सलियों के खुलकर विरोध में आने और दबाव बनाने से निजी कंपनियां प्रोजेक्ट से बाहर होकर लौट गई। 2021 में कांग्रेस सरकार ने सिंचाई का हवाला देकर पहल की है, लेकिन 56 गांव के लोगों का कड़ा विरोध और कांग्रेस के एकमात्र नेता अरविंद नेताम समेत कतिपय भाजपाई और सीपीआई के नेताओं की सक्रियता ने ग्रामीणों को बल दिया है।

एक एकड़ का 3 हजार मुआवजा मिला था

मध्यप्रदेश विद्युत मंडल ने डुबान में आने वाली भूमि एवं संपत्ति के हर्जाने के रूप में 3 हजार रूपये प्रति एकड़ के हिसाब से 50 लाख रूपये का मुआवजा का भुगतान किया था। डुबान क्षेत्र में आने वाले परिवार एवं अन्य लोगों को परियोजना कार्य में बारसूर और दिल्ली में खोले गए कार्यालय आदि में रोजगार मिला था जिसकी संख्या लगभग 400 बताई गई है। बारसूर में इंद्रावती नदी पर 1 करोड़ 14 लाख की लागत से पुल बनाया गया था और 2 विश्राम गृह बनाए गए। पुल से आगे नारायणपुर को बारसूर से जोड़ने के लिए पक्की सड़क का निर्माण चल रहा है। मालेवाही में पुलिस कैंप और थाना खुलने से सड़क निर्माण में नक्सली बाधा का संकट नहीं है। बहरहाल विश्राम गृह में सीआरपीएफ कैंप का कब्जा हो गया है।

290 टीएमसी पानी व्यर्थ, भूपेश ने पूछा विकल्प

प्रति वर्ष 290 टीएमसी इंद्रावती का पानी गोदावरी नदी में व्यर्थ चला जाता है। इसी पानी को रोककर किसानों के खेत में सिंचाई के लिए पहुंचाने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बंद पड़ी परियोजना को फिर से शुरू करने की कोशिश में जुटे हैं। उन्होंने विरोध करने वालों से पूछा है कि विरोध की बजाए इसका विकल्प बताएं ताकि परियोजना से होने वाला फायदा यहां के वनवासियों को मिल सके।

बस्तर हित में बोधघाट जरूरी

इंद्रावती नदी का पानी व्यर्थ बह जाता है इस पानी को रोककर तीन जिले के 50 से अधिक गांव के सैकड़ों किसानों को सिंचाई सुविधा का लाभ देकर उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के लिए राज्य सरकार ने बंद पड़ी बोधघाट परियोजना को शुरू करने का फैसला लिया है।

- रेखचंद जैन, संसदीय सचिव तथा विधायक जगदलपुर

बिना सर्वे सिंचाई की बात काल्पनिक

सर्वे हुआ नहीं और खेतों में पानी पहुंचाने की बात काल्पनिक है। यह परियोजना पेसा, 5वीं अनुसूची और प्रजातंत्र के खिलाफ है। प्रदेश सरकार बस्तर को बस्तर नहीं रहने देना चाहती और आदिवासियों की पंरपरा और संस्कृति को खत्म करने पर तुली है। इसका प्रबल विरोध करेंगे, परियोजना लगने नहीं देंगे।

- मनीष कुंजाम, सीपीआई नेता

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