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हिमाचल न्यूज: बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण आने वाले दिनाें में हाे सकती है पानी की कमी

ग्लोबल वार्मिंग वर्तमान समय की प्रमुख वैश्विक पर्यावरणीय समस्या है। यह एक ऐसा विषय है कि इस पर जितना सर्वेक्षण और पुनर्वालोकन करें, कम ही होगा। आज ग्लोबल वार्मिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिज्ञों, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों की चिंता का विषय बना हुआ है।

हिमाचल न्यूज: बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण आने वाले दिनाें में हाे सकती है पानी की कमी
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फाइल फोटो

ग्लोबल वार्मिंग वर्तमान समय की प्रमुख वैश्विक पर्यावरणीय समस्या है। यह एक ऐसा विषय है कि इस पर जितना सर्वेक्षण और पुनर्वालोकन करें, कम ही होगा। आज ग्लोबल वार्मिंग अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिज्ञों, पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं वैज्ञानिकों की चिंता का विषय बना हुआ है। ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी ही नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड की स्थिति और गति में परिवर्तन होने लगा है। इनके कारण भारत के प्राकृतिक वातावरण में अत्यधिक मानवीय परिवर्तन हो रहा है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण जीव-जंतुओं की आदतों में भी बदलाव आ रहा है। इसका असर पूरे जैविक चक्र पर पड़ रहा है। पक्षियों के अंडे सेने और पशुओं के गर्भ धारण करने का प्राकृतिक समय पीछे खिसकता जा रहा है। कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है। हिमाचल प्रदेश में ग्लाेबल वार्मिंग का असर यहां के स्नाे कवर एरिया पर पड़ा है। ग्लाेबल वार्मिंग के कारण प्रदेश में कुल बर्फ में लगभग 0.72 प्रतिशत कमी आई है। 2018-19 और 2019-20 की तुलना के तहत बर्फ का कुल औसत क्षेत्र 20210.23 वर्ग किलोमीटर से घटकर 20064.00 वर्ग किलोमीटर हुआ। इसका सीधा प्रभाव लोगों से जुड़ा है,बर्फ में लगातार कमी गर्मियों के दौरान नदी के बहाव को प्रभावित कर सकता है। राज्य के दक्षिणपूर्वी हिस्से में 2019-20 की सर्दियों में अधिक बर्फ पाई गई। चिनाब में 2018-19 की तुलना में 2019-20 में बर्फ आवरण क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन नहीं दिखा। अन्य सर्दियों के महीने अक्टूबर, फरवरी और मार्च, सभी बेसिन में 2019-20 की तुलना 2018-19 से करने पर, बर्फ आवरण में कमी पायी गई। रिपाेर्ट में पाया गया है कि सर्दियों के महीनों के दौरान जनवरी के बाद में बर्फ गिरने में गिरावट आई ।

विशेषज्ञों की मानें तो बर्फ के तेजी से पिघलने के कारण आने वाले दिनाें में पानी की कमी हाे सकती है। राज्य जलवायु परिवर्तन केंद्र ने प्रदेश में स्नाे कवर एरिया की मैपिंग की। रिपाेर्ट में ब्यास और रावी बेसिन (जलग्रहण क्षेत्र) की तुलना में (नवंबर से जनवरी) सतलुज बेसिन में अधिक बर्फ आवरण देखा गया, चिनाब बेसिन ने इस अवधि के दौरान बर्फ आवरण क्षेत्र में ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया। पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीकी विभाग के निदेशक डीसी राणा की मानें तो चिनाब बेसिन में अप्रैल में कुल बेसिन क्षेत्र का 87 प्रतिशत और मई में लगभग 65 प्रतिशत अभी भी बर्फ के प्रभाव में है जो यह दर्शाता है कि कुल बेसिन क्षेत्र के लगभग 22 प्रतिशत हिस्से में बर्फ अप्रैल और मई में पिघल चुकी हैं। कुल बेसिन क्षेत्र का लगभग 65 प्रतिशत अगले (जून से अगस्त) के दौरान पिघल जाएगा, जो चिनाब नदी के बहाव में योगदान देगा।



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