मलेरिया: प्रॉपर टेस्ट ट्रीटमेंट है जरूरी
मलेरिया के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर इनिशियल सिंपटम्स के आधार पर टेस्ट करते हैं।

नई दिल्ली.मलेरिया एक इंफेक्टिव लेकिन क्यूरेबल डिजीज है। इसके ट्रीटमेंट में लापरवाही बरतने या इसके होने पर साधारण बुखार की दवाई लेने पर यह जानलेवा हो सकता है। इसलिए, मलेरिया होने पर प्रॉपर टेस्ट और ट्रीटमेंट जरूरी है।
अगर गर्मियों में इस बीमारी ने आपको अपनी चपेट में ले लिया तो फिर....
वर्ल्ड मलेरिया-डे स्पेशल (25 मई)मलेरिया एक इंफेक्टिव लेकिन क्यूरेबल डिजीज है। इसके ट्रीटमेंट में लापरवाही बरतने या इसके होने पर साधारण बुखार की दवाई लेने पर यह जानलेवा हो सकता है। इसलिए, मलेरिया होने पर प्रॉपर टेस्ट और ट्रीटमेंट जरूरी है।व र्ल्ड मलेरिया रिपोर्ट 2014 के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 97 देशों के 3.2 बिलियन लोगों के मलेरिया से ग्रस्त होने का खतरा है।
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लेकिन इसके साथ ही, अच्छी खबर यह है कि हमारे यहां इसकी रोक-थाम के उपाय भी पुरजोर तरीके से किए जा रहे हैं। वर्ल्ड हेल्थ आॅर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 में भारत और थाइलैंड में 50 से 75 प्रतिशत तक मलेरिया के मामलों में कमी आने की उम्मीद है।
कारण
मलेरिया एक इंफेक्शस डिजीज है, जो प्लाज्मोडियम नामक माइक्रोब्स (प्रोटोजोआ) के कारण फैलता है। असल में यह बीमारी इंफेक्टेड फीमेल एनोफिलीज मच्छर के काटने से फैलती है। जब इंफेक्टेड मच्छर किसी व्यक्ति को काटती है तो उसक लार में मौजूद प्लाजमोडियम माइक्रोब्स उस व्यक्ति के ब्लड में चला जाता है और फिर वह व्यक्ति मलेरिया से पीड़ित हो जाता है।
मलेरिया के लक्षण
तेज बुखार रहना, उल्टी होना और जी मिचलाना, कमजोरी महसूस होना, थकावट रहना, एक दिन छोड़कर कंपकंपी के साथ बुखार आना आदि मलेरिया के सामान्य लक्षण हैं। खून की कमी, आंखों में पीलापन आना आदि लक्षण भी मलेरिया के होते हैं।
टेस्ट
मलेरिया का पता ब्लड टेस्ट के जरिए चलता है। सीवियर और सिंपल दोनों प्रकार के मलेरिया के जांच के लिए रैपिड टेस्ट कराना जरूरी होता है। इस टेस्ट में ब्लड में प्लाज्मोडियम पैरासाइट की मौजूदगी का प्रतिशत निकाला जाता है।
न बरतें लापरवाही
मलेरिया के ट्रीटमेंट के लिए डॉक्टर इनिशियल सिंपटम्स के आधार पर टेस्ट करते हैं। टेस्ट के रिजल्ट पॉजिटिव आने पर पेशेंट को एंटी मलेरियल ड्रग्स दिया जाता है। चूंकि यह बुखार अल्टरनेट डे आता है, इसलिए इसे साधारण बुखार समझकर हम सामान्य बुखार की दवाइयां ले लेते हैं। इन दवाइयों से कुछ समय के लिए बुखार उतर जाता है, लेकिन बीमारी का असली कारण यानी माइक्रोब्स खत्म नहीं हो पाते हैं। इस वजह से पेशेंट की परेशानी बढ़ती जाती है। इसलिए समय रहते बुखार का पता लगाकर सही ट्रीटमेंट लेना बहुत जरूरी होता है। ऐेसा न करने पर यह बीमारी जानलेवा हो सकती है। मलेरिया के बहुत ज्यादा बढ़ जाने यानी इसके बिगड़ जाने पर पेशेंट का किडनी फेल हो सकता है। इतना हीं, इस बीमारी के लंबे समय तक बने रहने पर पेशेंट को कई तरह के साइड इफेक्ट का सामना भी करना पड़ सकता है।
रखें ध्यान
मलेरिया होने पर कभी भी सेल्फ मेडिकेशन न करें। कई बार हम सेल्फ मेडिकेशन करते हुए बुखार कम करने के लिए पैरासिटामॉल के साथ एंटीबायोटिक भी ले लेते हैं। यह स्थिति बेहद खतरनाक हो सकती है। मलेरिया होने पर हमेशा एंटी मलेरियल मेडिसिन ही लें।
मलेरिया होने पर पेशेंट को अलग रखें।
बुखार होने पर पेशेंट को खुली जगह, जहां हवा आती हो, में रखें।
नीचे की स्लाइड्स में पढ़िए, बचाव के उपाय -
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