ट्रैवल डायरी-3 | Tanzania: सेरेंगेटी में शेर ऐसे दिखते हैं, जैसे गांव में गाय

Dr. Himanshu Dwivedi Tanzania Serengeti National Park safari travel story
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ट्रैवल डायरी-3 | तंजानिया- डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने सेरेंगेट्टी नेशनल पार्क का अनुभव साझा किया।

डॉ. हिमांशु द्विवेदी की ट्रैवल डायरी-3 में पढ़िए तंजानिया के सेरेंगेट्टी नेशनल पार्क में सफारी का रोमांच, शेरों का सामाजिक जीवन, हाथियों के झुंड, जिराफ, महाप्रवासन और जंगल के भीतर लक्जरी कैंप का अनुभव।

तंजानिया यात्रा वृत्तांत-3 | डॉ. हिमांशु द्विवेदी (प्रधान संपादक, हरिभूमि ग्रुप)

घड़ी की सुईयां अब दोपहर के बारह बजाने को हैं, और हमारा वाहन सेरेंगेट्टी नेशनल पार्क के अंदर दाखिल हो रहा है। वाहन के संबंध में भी आपको यह जानकर हैरत होगी कि सफारी के लिए केवल एक ही कंपनी का एक ही मॉडल आको चहुंओर दिखाई देगा और वह है टोयोटा कंपनी की लैंड क्रूजर।

ऐसा पार्क प्रबंधन या सरकार के किसी नियम के तहत नहीं बल्कि गुणवत्ता और उपयोगिता के आधार पर है। तमाम सफारी कंपनी लैंड क्रूजर को लेने के बाद जंगल पर्यटन के लिहाज से उसे तैयार कराती हैं। इसमें वाहन को पचपन सेंटीमीटर तक और लंबा किया जाना और छत को खास तरीके से खोला जाना शामिल हैं।

उद्यान में दाखिल होते ही हमें झटका सा लगा। जंगल को लेकर हमारी कल्पना तो घने और ऊंचे वृक्षों की रहती है लेकिन यहां तो मीलों निगाह दौड़ाने पर भी कहीं कहीं कोई ठूंठ ही दिखाई दे रहा था। हर तरफ बस छोटी- बड़ी और सूखी या हरी घास ही जमीन पर बिछी दिखाई दे रही थी। हालांकि बाद में कुछ कुछ जगहों पर पेड़ भी दिखाई दिए लेकिन उनकी सीमित संख्या वन का अहसास तो बिल्कुल भी नहीं कराती।



हाथियों से पहली मुलाकात

पार्क में दाखिल होने के दो-तीन मिनट के भीतर ही हमारा सामना गणपति अर्थात हाथियों के समूह से हो गया। इनके कान हमारे भारत में पाये जाने वाले हाथियों के मुकाबले खासे बड़े थे। हमीद के अनुसार इन हाथियों को पालतू बनना नामुमकिन है क्योंकि इनका स्वभाव काफी आक्रामक है। एशियाई हाथियों के मुकाबले इनका स्वभाव पूरी तरह भिन्न है। यह समूह में रहते हैं और इनका कुनबा मातृसत्तात्मक है। अर्थात समूह का नेतृत्व सर्वाधिक उम्रदराज मादा के द्वारा किया जाता है। इनका विशाल डील डौल बाकी जानवरों के हमले से इन्हें सुरक्षित बनाए रखता है लेकिन अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए इन्हें सचेत रहना होता है।

खुले मैदान और वन्यजीवों की सहज उपस्थिति

पेड़ों की गैर मौजूदगी यहां जानवरों से आपकी मुलाकात कराने में खासी मददगार है। बिना खास मशक्कत के आपको वह तमाम जानवर पर्याप्त संख्या में स्वाभाविक स्वरूप में सहजता से ही दिख जायेंगे, जिनके आपने अभी तक नाम ही सुने हैं। लकड़बग्गा, मंगूश, सियार , इंपाला, बबून जैसे जानवर तो आपको सहजता से ही दिख जायेंगे लेकिन सचेत निगाहों से चारों ओर देखते रहने पर आपकी मुलाकात चीता और तेंदुआ से भी जरूर हो जायेगी। यह कथन अनुभव आधारित है, इसका सीधा आशय यह है कि हमारी भी हुई।

महाप्रवासन का अद्भुत दृश्य

सबसे अद्भुत रहता है माइग्रेशन अर्थात प्रवासन का दृश्य। हम महत्वपूर्ण मौकों पर परेड देखते हैं। जिसमें तीनों सेनाएं अर्थात थल, जल और वायुसेना के जवान कतारबद्ध हो अनुशासन में चलते हुए देखते हैं। कमोबेश वैसा ही दृश्य आपको सेरेंगेट्टी में कई स्थान पर देखने को मिलेगा। कुछ सौ मीटर से लेकर यह कतार कई किलोमीटर तक की हो सकती है। जिसमें स्व अनुशासन में सैकड़ों विल्डर बीस्ट, जेब्रा और कहीं कहीं गजेल भी सीधी कतार में चलते हुए दिखाई देंगे। प्रकृति का यह वाकई करिश्माई नियमन और संतुलन है।

शेरों का सामाजिक संसार

यहां शेर अर्थात सिंह से मुलाकात तो ऐसे हो जाती है जैसे गांव में गाय भैंस से। यह समूह में भी मिल सकते हैं और अकेले भी। एक स्थान पर तो एक साथ चौदह शेर भी देखने का मौका मिला। बाघ के स्वभाव के ठीक विपरीत शेर सामाजिक जीवन जीते हैं। बाघिन तो अपने बच्चों को उसके पिता से बचाने की कोशिश में ही लगी रहती है लेकिन सिंह अपने कुनबे के साथ मस्ती में रहता है। शिकार करने की जिम्मेदारी शेरनियों की ही रहती है, जरूरत होने पर ही शेर जहमत उठाते हैं।

हां, शिकार होने पर भोजन करने का पहला अधिकार शेरों का होता है। उसके बाद शेरनी और शावक भोजन करते हैं। शेरों का उल्लेख इसलिए किया कि एक समूह में दो से चार तक शेर होते हैं। एक साथ इतने शेरों को खुले रूप से देखने का यह पहला अनुभव था। दो शेरनियों के संरक्षण में चार शावकों की उछलकूद को बमुश्किल कुछ फीट की दूरी से देख पाने के आनंद को शब्दों में व्यक्त करना आसान नहीं है।




जिराफ और पक्षियों की दुनिया

ऐसी ही अनुभूति जिराफ को देखने पर भी आती है। वह भी यहां अच्छी खासी तादाद में हैं। बेहद लंबी तनी गर्दन के साथ उनका अपनी पतली पतली टांगों के साथ चलते देखना भी मन को खासा रोमांचित करता है। इसकी दुलत्ती में बहुत ताकत होती है। इतनी कि शेर का जबड़ा भी तोड़ सकती है। यहां ऐसे विविध प्रकार के पक्षी भी बहुतायत में दिखेंगे, जिनके हमने नाम भी नहीं सुने हैं।


जंगल के बीच लक्ज़री कैंप का अनुभव

शाम होने को है लिहाज वाहन अब कैंप की ओर रुख कर गया है। पार्क परिसर में ही कैंप स्थित हैं। इसका आशय है रहने के लिए अस्थाई प्रकार के आवास। यह टेंट हैं लेकिन कामचलाऊ वाले तंबू नहीं।

रात का जंगल और सुरक्षा व्यवस्था

तंजानिया भले ही अभी विकासशील देश की श्रेणी में हो लेकिन कैंप अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के हैं। टाटा समूह के प्रति बहुत आदरभाव रखते हुए यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि कान्हा, पेंच के ताज सफारी से कई गुना बेहतर यहां के कैंप हैं। पांच सितारा होटल में उपलब्ध तमाम सुविधायें यहां भी साफ सुथरे तरीके से उपलब्ध हैं। जंगल में स्थित हैं इसलिए जानवरों की आवा-जाही बनी रहती है।

रात के अंधेरे में बगल से गुजरने वाले जानवरों की गुर्राहट कब आपकी आंखों से नींद छीन ले, कहा नहीं जा सकता। अपने टेंट से अकेले दूसरी जगह जाने की मनाही रहती है। वाकी- टाकी से सूचित करने कैंप का स्टाफ आपको अपने साथ ही लेने छोड़ने जायेगा। आपको पसंदीदा खाना उपलब्ध कराने की ईमानदार कोशिश भी कैंप स्टाफ करेगा।


मसाई मारा और विस्थापन की पीड़ा

मसाई मसाई मारा के जो यह दो शब्द हैं मसाई जनजाति और मारा नदी को अभिव्यक्त करते हैं। मसाई जनजाति का निवास क्षेत्र केन्या और उत्तरी तंजानिया का विशाल भूभाग ही है। मूलत पशुपालक इस समुदाय को ही राष्ट्रीय उद्यान बनने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। जिस जमीन पर उनके पूर्वज सैकड़ों सालों से रहते आए थे, वहां से उन्हें दूसरों के अपराधों के चलते विस्थापित होना पड़ा।

गुलामी के काल खंड में विदेशियों ने आकर यहां बेहिसाब शिकार किया और उसकी सजा विस्थापन के रूप में इस समुदाय को भुगतना पड़ रही है। मारा नदी केन्या और तंजानिया के बीच बहती है महा प्रवासन के दौरान नदी में मौजूद घडियालों के द्वारा विल्डर बीस्ट का शिकार देखने जुलाई से सितंबर के बीच हजारों सैलानी दुनियाभर से यहां आते हैं।

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