विवादित सेक्रेड गेम्स में फ्रंट न्यूडिटी पर ये बोले मनोज वायपेयी, दिया चाइल्ड पेरेंटिग का ज्ञान
अपनी एक्टिंग के लिए दो राष्ट्रीय, कुछ फिल्मफेयर के अलावा कई अवार्ड्स जीत चुके मनोज बाजपेयी का करियर पिछले कुछ सालों से ठीक नहीं चल रहा है। उनकी कई फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं किया।

अपनी एक्टिंग के लिए दो राष्ट्रीय, कुछ फिल्मफेयर के अलावा कई अवार्ड जीत चुके मनोज बाजपेयी का करियर पिछले कुछ सालों से ठीक नहीं चल रहा है। उनकी कई फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कोई कमाल नहीं किया।
यहां तक कि मनोज बाजपेयी ने एक फिल्म ‘मिसिंग’ में एक्टिंग करने के साथ ही इसको प्रोड्यूस भी किया, लेकिन इस फिल्म को भी दर्शकों ने पसंद नहीं किया। यह एक अलग बात है कि मनोज इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते।
उनका दावा है कि यह फिल्म डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए बनी थी और अमेजॉन पर काफी पसंद की जा रही है। इन दिनों वह दीपेश जैन निर्देशित फिल्म ‘गली गुलियां’ को लेकर चर्चा में हैं। इस फिल्म से जुड़ी बातचीत मनोज बाजपेयी से।
फिल्म ‘गली गुलियां’ की कहानी क्या है?
फिल्म ‘गली गुलियां’ भारतीय सिनेमा के इतिहास में सर्वाधिक जटिल फिल्म है। कम से कम मैंने आज तक ऐसी जटिल फिल्म नहीं देखी है और न ही किसी फिल्म में ऐसा किरदार आया है, जैसा मैंने इस फिल्म में निभाया है।
यह फिल्म अब तक 20 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल्स में धूम मचा चुकी है। फिल्म में एक ऐसे आदमी की कहानी है, जो पुरानी दिल्ली की गलियों में फंसा हुआ है। मानसिक और शारीरिक रूप से वह वहां से बाहर निकलना नहीं चाहता, वह पेशे से इलेक्ट्रिशियन है।
लेकिन वह हर किसी के घरों में कैमरे लगाकर उनकी कहानी, उनकी जिंदगी पर नजर महज इस सुख को पाने के लिए रखता है कि उसकी जिंदगी उन सभी से बेहतर है। उसे हमेशा एक छोटे बच्चे की चीख सुनाई देती है, जो कि पड़ोस में रहता है और अपने पिता से हर दिन मार खाता रहता है।
वह इस बच्चे को बचाना चाहता है। पूरी फिल्म में वह इस बच्चे की तलाश करता रहता है। मेरा सबसे बेहतरीन काम इस फिल्म में है।
आपका किरदार दूसरों की जिंदगी में तांक-झांक क्यों करता है?
इसका निर्णय दर्शकों पर छोड़ा है। मेरे किरदार का नाम खुदोस है। यह फिल्म खुदोस की जर्नी पर है। उसके पिता भी इन्हीं गलियों में रहे थे। इन गलियों में रहने वाले लगभग सब लोग जा चुके हैं, लेकिन वह वहीं है।
फिल्म में चाइल्ड पैरेंटिंग का सवाल भी उठाया गया है?
जो बच्चा हर दिन अपने पिता से पिट रहा है, वहां हम इस बात को रेखांकित करते हैं कि चाइल्ड पैरेंटिंग किस तरह की होनी चाहिए। खुदोस और इस बच्चे की जिंदगी में समानता भी दिखाई है। फिल्म में बच्चे का किरदार बहुत अहम है, जिसे ओम सिंह ने निभाया है।
यह दिल्ली की संस्था ‘सलाम’ से है। वह अनाथ है। फिल्म की कहानी और किरदार में इस बालक ने अपनी तरफ से बहुत योगदान दिया है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि फिल्म को देखने के बाद दर्शक कम से कम तीन दिन तक इसे अपने दिल और दिमाग से निकाल नहीं पाएंगे।
आपने अब तक कई किरदार किए हैं, लेकिन फिल्म ‘सत्या’ का भीखू महात्रे जैसा कोई दूसरा किरदार कभी लोगों के जेहन में नहीं बैठ पाया?
मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत नहीं हूं। हर उम्र के लोगों के बीच मेरे अलग-अलग किरदार फेमस हैं। आपको भीखू महात्रे पसंद आया। अट्ठारह साल के यंगस्टर से पूछिए, तो सरदार खान उसके लिए अहम है।
तो किसी को फिल्म ‘राजनीति’ का विजयप्रताप अच्छा लगता है। किसी को फिल्म ‘शूल’ का समर प्रताप अच्छा लगा। लेकिन जिन लोगों को भीखू महात्रे पसंद है, वह अच्छी बात है, क्योंकि इसी किरदार से मेरा करियर बना। भीखू महात्रे जैसी परफॉर्मेंस किसी दूसरे कलाकार ने दी ही नहीं। तो जिस किरदार को मेरे अलावा कोई कर भी नहीं पाया, मेरे लिए उससे ज्यादा खुशी की बात क्या होगी।
क्या आप वेब सीरीज भी कर रहे हैं?
मैं एक वेब सरीज ‘द फैमिली मैन’ कर रहा हूं, जो कि अमेजॉन पर आएगी। इसका निर्देशन राज निदिमोरू और कृष्णा डीके ने किया है।
इन दिनों कई वेब सीरीज में फ्रंट न्यूडिटी दिखाई जा रही है। मसलन वेब सीरीज ‘सेक्रेड गेम्स’ में फ्रंट न्यूडिटी थी। इस बारे में मनोज बाजपेयी का क्या कहना है?
‘इसमें क्या बुरा है? मैंने यह वेब सीरीज देखी है। मुझे तो बहुत पसंद आई। फ्रंट न्यूडिटी भी कहानी का हिस्सा है। कहानी के हिसाब से कोई भी निर्देशक कुछ दिखा रहा है तो गलत क्या है? अगर राइटर-डायरेक्टर जो कहना चाह रहा है, वह उसे सही लगता है तो इसमें गलत क्या है?
मैं ही क्या, लोग भी इसे देख रहे हैं। सभी ‘सेक्रेड गेम्स’ को पसंद कर रहे हैं। जिन्हें नहीं पसंद आ रहा है, वह ना देखें। सेंसर का स्विच तो दर्शकों के हाथ में है। अगर आपको पसंद नहीं है, तो आप ना देखें।’
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