हरियाणा में POCSO मामलों पर High Court सख्त : सरकार को दिया दो माह में फास्ट ट्रैक अदालतें बनाने का आदेश

Chandigarh High Court strict on POCSO cases : हरियाणा में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो महीने के भीतर फास्ट ट्रैक POCSO अदालतों की स्थापना के निर्देश दिए हैं। अदालत ने इस प्रक्रिया में तेजी लाने पर जोर देते हुए कहा है कि यह न केवल संवेदनशील मामलों में न्याय प्रक्रिया को गति देगा, बल्कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए निर्देशों का अनुपालन भी सुनिश्चित करेगा।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुमित गोयल की खंडपीठ ने यह निर्देश स्वप्रेरणा रिट याचिका (आपराधिक) संख्या 1, 2019 पर सुनवाई करते हुए दिए। इस याचिका में देश में बाल यौन अपराधों की बढ़ती घटनाओं और उनके त्वरित निपटारे के लिए विशेष अदालतों की आवश्यकता पर बल दिया गया था।
फरीदाबाद में दो, पंचकूला और गुरुग्राम में एक-एक अदालत प्रस्तावित
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट को बताया गया कि फरीदाबाद में दो, और पंचकूला व गुरुग्राम में एक-एक फास्ट ट्रैक POCSO अदालत स्थापित करने की सिफारिश पहले ही की जा चुकी है। अदालत ने इस सिफारिश को संज्ञान में लेते हुए सरकार को जल्द से जल्द अधिसूचना जारी कर अदालतों की स्थापना की प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के पालन का मामला
हाईकोर्ट का यह आदेश उस पृष्ठभूमि में आया है जब देशभर में बच्चों के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में वृद्धि दर्ज की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में ऐसे मामलों के लिए विशेष अदालतों की स्थापना के निर्देश दिए थे ताकि इन गंभीर मामलों का शीघ्र निपटारा हो सके। हरियाणा में इस दिशा में धीमी गति से हो रही कार्रवाई को लेकर हाईकोर्ट ने चिंता जताई थी।
केंद्र सरकार ने 200 करोड़ का बजट दिया
अदालत को यह भी जानकारी दी गई कि केंद्र सरकार द्वारा 200 करोड़ रुपए का बजटीय आवंटन राज्यों को दिया गया है, ताकि फास्ट ट्रैक अदालतों के संचालन और आधारभूत संरचना की स्थापना की जा सके। अदालत में भारत सरकार के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल सत्य पाल जैन ने स्पष्ट किया कि अदालतों की स्थापना और संचालन राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है, जबकि केंद्र उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा फास्ट ट्रैक और POCSO अदालतों की स्थापना का अधिकार राज्य सरकारों के पास है। केंद्र सरकार ने बजट आवंटित कर दिया है, अब उसे धरातल पर लाना राज्य की ज़िम्मेदारी है।
अदालत ने कहा– अब और देरी नहीं होनी चाहिए
खंडपीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बच्चों के साथ हो रहे यौन अपराधों की संवेदनशीलता को देखते हुए अब और देरी स्वीकार नहीं की जा सकती। राज्य सरकार को दो महीने की समयसीमा में अधिसूचना जारी कर अदालतें शुरू करनी होंगी।
याचिका का निपटारा किया
सभी पक्षों के दावों और जवाबों को सुनने के बाद कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं की चिंताओं का पर्याप्त उत्तर दिया गया है। हालांकि कोर्ट ने यह संकेत भी दिया कि यदि निर्देशों का पालन नहीं होता है, तो भविष्य में इस मुद्दे पर दोबारा सुनवाई हो सकती है।