स्मृति में सभा का आयोजन: दिल्ली की प्रखर विदुषी डॉ. निर्मला जैन को साहित्य जगत ने दी श्रद्धांजलि

दिल्ली। 23 अप्रैल की संध्या को साहित्य अकादेमी सभागार में भावभीनी श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस आयोजन का संयोजन राजकमल प्रकाशन और हंस मासिक पत्रिका ने संयुक्त रूप से किया। डॉ. जैन के साहित्यिक, अकादमिक और मानवीय योगदान को याद करने के लिए कई साहित्यकार, अध्यापक और चिन्तक एकत्रित हुए। दिल्ली विश्वविद्यालय में चार दशक से अधिक की सेवा देने वाली डॉ. जैन ने न केवल एक आलोचक के रूप में बल्कि एक दक्ष प्रशासक, संवेदनशील शिक्षिका और स्पष्टवादी विचारक के रूप में भी गहरी छाप छोड़ी है।
अनुभव और युगबोध का दस्तावेज़
उनकी आत्मकथा ‘ज़माने में हम’ और संस्मरण ‘दिल्ली: शहर-दर-शहर’ सिर्फ व्यक्तिगत जीवन की कहानियां नहीं, बल्कि साहित्यिक और सामाजिक इतिहास के जीवंत चित्र भी हैं। इन पुस्तकों में दिल्ली की गहराई, बदलाव और संवेदना की परतें खुलती हैं।
डॉ. जैन विचारधारा से परे थीं
सभा में वक्ताओं ने याद किया कि डॉ. जैन ने स्त्री-विमर्श को महज एक विचारधारा की तरह नहीं देखा, बल्कि एक विवेकशील आलोचक के नज़रिए से परखा। वे साहित्य के समाजशास्त्र और अकादमिक अनुशासन की मिसाल थीं। प्रोफेसर रामेश्वर राय ने उन्हें ‘आकाशधर्मा धरती’ कहकर संबोधित किया। उन्होंने कहा, एक ऐसी गुरु जो बिना किसी संस्थागत सहारे के भी साहित्य की दुनिया में अपनी पहचान खुद गढ़ती हैं।
एक शिक्षिका, एक आलोचक, एक इंसान – सभी रूपों में प्रेरणा
प्रेम सिंह ने उनके लेखकीय और प्रशासकीय योगदान को स्मृति-पुस्तिका के रूप में संरक्षित करने की इच्छा ज़ाहिर की, जिसे सभी ने एक सच्ची श्रद्धांजलि माना। अब्दुल बिस्मिल्लाह ने उनके वक्तृत्व में महादेवी वर्मा जैसी गरिमा और ओज देखा। वहीं दिविक रमेश ने उन्हें एक अनुशासित लेकिन प्रेमपूर्ण आत्मा कहा, जिन्होंने शादी के मौके पर भी पुस्तक भेंट की!
संजय जैन ने अपने बचपन की यादों को किया साझा
संजय जैन, उनके पुत्र, ने अपने बचपन की यादों को साझा करते हुए बताया कि कैसे उनके घर साहित्य का केंद्र बन गया था और आलोचना उनकी माँ का पैशन था। आज जब हम डॉ. निर्मला जैन को याद करते हैं, तो उन्हें केवल एक नाम या व्यक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण के रूप में याद करते हैं। जो विचार, मूल्य और साहस को सबसे ऊपर रखता है।