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राजिम कुंभ में आए 75 वर्षीय महामंडलेश्वर बताते हैं, अखाड़े के पुराने खिलाड़ियों को अतीत बाबा कहा जाता है। वे नए साधु-संतों को अखाड़े के दांव पेंच सिखाते हैं।

रायपुर। वे ऐतिहासिक रूप से अंधे होते हैं, जो यह सोचते हैं कि साधु-संत हथियार नहीं उठाते। रक्षा के लिए हम अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण भी लेते हैं। यह कहना है महामंडलेश्वर सर्वेश्वर दास का। राजिम कुंभ में आए 75 वर्षीय महामंडलेश्वर बताते हैं, अखाड़े के पुराने खिलाड़ियों को अतीत बाबा कहा जाता है। वे नए साधु-संतों को अखाड़े के दांव पेंच सिखाते हैं। इसमें पारंगत होने में कम से कम तीन वर्ष का समय लगता है। राजिम कुंभ में प्रतिदिन संध्या के वक्त वे अपनी कलाओं का प्रदर्शन करते हैं। जीभ में रखी हुई लौंग को तलवार से काटना, भाला और पट्टा चलाने से लेकर दंड अर्थात डंडे और तलवार आदि का इस्तेमाल वे इसमें करते हैं। उन्होंने बताया, सभी सामग्री मथुरा, वृंदावन और उज्जैन से आती है। उज्जैन से आने वाली सामग्री सबसे अच्छी होती है।

शरीर का विशेष ध्यान

वे शरीर को ताकत प्रदान करने के लिए आहार पर विशेष ध्यान देते हैं। इसके लिए रोजाना रात में बादाम, काजू- किशमिश भिगाकर रखते हैं। सुबह होने पर इसे पीसकर इससे लस्सी बनाते हैं। शरीर के साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखा जाता है। जिसे मारना है, केवल उसे ही चोट पहुंचे, इसके लिए एकाग्रता जरूरी होती है। इसे ध्यान में रखते हुए प्रतिदन कम से कम 3 घंटे का अभ्यास करते हैं। उम्र हो चुकने के बाद भी आधे घंटे का वक्त सभी इसमें देते हैं।

इटली से पर्यटक

राजिम मेले में विदेशों से भी पर्यटक आए हुए हैं। इनमें सर्वाधिक संख्या इटली से आए पर्यटकों की है। उन्हें यहां का खाना विशेष रूप से पसंद आया। अखाड़ों के इतर यहां कई तरह के स्टॉल लगे हुए हैं। इसमें खान-पान से लेकर पूजन सामग्री के भी स्टॉल हैं। गीता प्रेस गोरखपुर के स्टॉल भी यहां लगे हुए हैं। संचालक रामदेव यादव ने बताया, किताबों की बिक्री आयोध्या में राम मंदिर स्थापना के बाद बढ़ गई है। रामचरितमानस और शिव पुराण की बिक्री पहले की तुलना में दोगुनी हो गई है।

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