FIFA WC 2018: मजदूर पिता और बचपन में बौनेपन के शिकार थे मेस्सी, ऐसे तय किया महानतम खिलाड़ी तक का सफर
बचपन में बौनेपन से जूझने के बावजूद फुटबॉल के मैदान पर उपलब्धियों के नये शिखरों को छूने वाले लियोनेल मेस्सी ने डेढ दशक के सुनहरे करियर में क्लब के लिये कामयाबियों के नये कीर्तिमान बनाये लेकिन अर्जेंटीना के लिये विश्व कप नहीं जीत पाने की कसक उन्हें कचोटती रही है और रूस में उनके पास यह कलंक धोने का संभवत: आखिरी मौका होगा।

बचपन में बौनेपन से जूझने के बावजूद फुटबॉल के मैदान पर उपलब्धियों के नये शिखरों को छूने वाले लियोनेल मेस्सी ने डेढ दशक के सुनहरे करियर में क्लब के लिये कामयाबियों के नये कीर्तिमान बनाये लेकिन अर्जेंटीना के लिये विश्व कप नहीं जीत पाने की कसक उन्हें कचोटती रही है और रूस में उनके पास यह कलंक धोने का संभवत: आखिरी मौका होगा।
रिकॉर्ड पांच बार फीफा के सर्वश्रेष्ठ फुटबॉलर, रिकॉर्ड पांच बार यूरोपीय गोल्डन शू, बार्सीलोना के साथ नौ ला लिगा खिताब, चार युएफा चैम्पियंस लीग और छह कोपा डेल रे खिताब जीत चुके इस करिश्माई प्लेमेकर के नाम देश और क्लब के लिये कुल 600 गोल दर्ज है।
ऐसे बीता मेस्सी का जीवन
उपलब्धियों से भरे अपने सफर की इतिश्री वह निस्संदेह फीफा विश्व कप के साथ करना चाहेंगे और दुनिया भर में उनके प्रशंसक भी यही दुआ कर रहे होंगे। इसी महीने अपना जन्मदिन मना रहे फुटबॉल के इस शहंशाह का जन्म अर्जेंटीना के रोसारियो में 1987 में एक निर्धन परिवार में हुआ था।
उनके पिता कारखाने में काम करते थे और मां क्लीनर थी लेकिन फुटबॉल में अपनी प्रतिभा की बानगी मेस्सी ने बचपन में ही दे दी थी। बचपन में मेस्सी बौनेपन के शिकार थे और हालत इतनी गंभीर थी कि चिकित्सा की जरूरत थी। इलाज महंगा था तो उनके स्थानीय क्लब ने हाथ खींच लिये लेकिन बार्सीलोना मदद के लिये आगे आया।
सितंबर 2000 में 13 बरस का मेस्सी अपने पिता के साथ ट्रायल देने आया तो उसके नाटे कद का मजाक सभी खिलाड़ियों ने उड़ाया। ट्रायल के दौरान दस मिनट का खेल देखने के बाद ही बार्सीलोना ने मेस्सी के साथ करार का फैसला कर लिया। उसके बाद से मेस्सी इसी क्लब के साथ है।
यदा कदा उनके दूसरे क्लबों के साथ जुड़ने की अटकलें लगी लेकिन मेस्सी ने बार्सीलोना का दामन नहीं छोड़ा और सफलता की सुनहरी दास्तान लिख डाली करार से मिले पैसों से मेस्सी का इलाज हुआ और कामयाब रहा।
मेस्सी ने ऐसे तय किया महानतम खिलाड़ी तक का सफर
मेस्सी, आंद्रियास इनिएस्ता, जावी, सैमुअल इतो और थियरे हेनरी ने बार्सीलोना को अभूतपूर्व सफलतायें दिलाई। क्लब के लिये मिलती सफलताओं के साथ मेस्सी की लोकप्रियता दुनिया भर में बढी और लोग उन्हें माराडोना के समकक्ष या कुछ तो उनसे बेहतर मानने लगे।
माराडोना के पास हालांकि विश्व कप था जो आखिरी बार 1986 में अर्जेंटीना ने माराडोना के दम पर ही जीता था । मेस्सी ने 2006, 2010 और 2014 विश्व कप में खराब प्रदर्शन नहीं किया लेकिन उनके अपने बनाये मानदंड इतने ऊंचे थे कि तुलना लाजमी थी । 2006 में 18 बरस का मेस्सी ज्यादातर बेंच पर ही रहा जबकि चार साल बाद वह कोई गोल नहीं कर सका।
दोनों बार जर्मनी ने क्वार्टर फाइनल में अर्जेंटीना को हराया। सबसे ज्यादा दर्दनाक हार चार साल पहले ब्राजील में मिली जब खिताब से एक जीत की दूरी पर आकर मेस्सी का सपना जर्मनी ने तोड़ दिया । इस बार उनके पास हर उस आलोचक को करारा जवाब देने का मौका है जो यह कहते हैं कि मेस्सी सिर्फ बार्सीलोना का महानायक है, अर्जेंटीना का नहीं ।
फुटबालप्रेमियों को बखूबी पता है कि किस तरह अकेले दम पर मेस्सी क्वालीफायर दौर में शानदार प्रदर्शन करके अर्जेंटीना को विश्व कप में जगह दिला सका है। क्वालीफिकेशन दौर में आठ मैचों से वह बाहर रहा जिसमें अर्जेंटीना को सात अंक मिले और जो दस मैच वह खेला, उसमें टीम ने 21 अंक बनाये।
अर्जेंटीना अगर विश्व कप नहीं जीतता है तो भी इससे मेस्सी की काबिलियत पर ऊंगली नहीं उठाई जा सकेगी लेकिन अगर 1978 और 1986 के बाद टीम फुटबाल का यह सर्वोपरि खिताब जीतने में कामयाब रहती है तो एक चैम्पियन को वैसी विदाई मिलेगी जिसका वह हकदार है ।
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