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Independence Day 2022: स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष पूरे होने पर देश में मनाया जा रहा आजादी का अमृत महोत्सव, जानिए इसका महत्व और मायने

हम सब आजादी का 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहे हैं, इस अवसर पर जब देश में महिलाओं के विकास पर विचार करते हैं तो गर्व से सिर ऊंचा होता है, लेकिन हम यह भी देखते हैं कि आज भी महिलाओं (Independence Day 2022) के विकास मार्ग में बहुत सी बाधाएं हैं।

Independence Day 2022: स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष पूरे होने पर देश में मनाया जा रहा आजादी का अमृत महोत्सव, जानिए इसका महत्व और मायने
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हम सब आजादी का 75वें वर्ष में अमृत महोत्सव (75th Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहे हैं, इस अवसर पर जब देश में महिलाओं के विकास पर विचार करते हैं तो गर्व से सिर ऊंचा होता है, लेकिन हम यह भी देखते हैं कि आज भी महिलाओं के विकास मार्ग में बहुत सी बाधाएं हैं। लेकिन सुखद बात यह है, महिलाएं आशावान होकर आगे बढ़ने के लिए संकल्पबद्ध हैं। देश-समाज हो या व्यक्तिगत जीवन, इनका स्वतंत्र अस्तित्व (Independence Day 2022) गढ़ने के लिए आशाएं ही बुनियाद बनती हैं। स्थितियां सकारात्मक और अनुकूल हों तो आशाओं को और बल मिलता है, इसके साथ ही मन के हौसले भी बहुत मायने रहते हैं। इसी हौसले-हिम्मत के बल पर भारतीय महिलाओं ने बार-बार खुद को साबित किया है।

पुरातन-रूढ़िवादी सोच और अभावों से जूझकर-लड़कर प्रगति के पथ को चुना है। आजादी के बाद जाने कितने ही मोर्चों पर जूझते हुए देश की आधी आबादी ने आशाओं के सहारे ही खुद को सशक्त और स्वावलंबी बनाने की ना केवल राह चुनी बल्कि गतिशील भी रहीं। हालांकि कई कारणों के चलते आज भी महिलाओं के हिस्से उनकी क्षमता-योग्यता के मुताबिक मान, मनोबल और बहुत से मामलों में मन के चुनाव की आजादी नहीं मिली है, लेकिन बदलाव की उम्मीदें कायम हैं। आजाद भारत की महिलाएं विकास की ओर अग्रसर हैं।

हासिल की शानदार उपलब्धियां

बीते 75 वर्षों में आधी आबादी के जीवन में आए अधिकतर बदलावों की कर्णधार स्वयं स्त्रियां ही रही हैं। हर रूढ़ि, हर बंधन से लड़ते हुए अपनी पहचान बनाने को प्रयासरत देश की बेटियों ने अपने स्वविवेक और मेहनत से यह सफर तय किया है। इसी का नतीजा है कि बीते दिनों राष्ट्रपति के रूप में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर दूसरी बार एक महिला आसीन हुई हैं। उधर अंतरराष्ट्रीय खेलों में पदक बटोरती बेटियां भी कई पूर्वाग्रहों को तोड़ रही हैं। सैन्य क्षेत्र में भी महिलाओं की भागीदारी अहम हो चली है। इतना ही नहीं आज आसमानी उड़ान में भी उनकी हिस्सेदारी कम नहीं है। हाल के बरसों में स्पेस से लेकर समाज कल्याण के कार्यों तक महिलाओं की भूमिका ने विस्तार ही पाया है।

गर्व करने वाली अनगिनत उपलब्धियां उनके हिस्से हैं, लेकिन इनकी बदौलत सोच और व्यवहार में जितना बदलाव आना चाहिए था, वह नहीं आया है। समाज और परिवार में मौजूद कई कही-अनकही पाबंदियां आज भी उनकी मुश्किलें बढ़ा रही हैं। देश के विकास में बढ़ती भागीदारी और व्यक्तिगत जीवन में बेहतरी के कई उजले पक्ष हमारे सामने हैं जरूर, लेकिन उनके पीछे छुपे स्याह पहलू भी कम नहीं हैं। ऐसे में जरूरी है, सफल और सक्षम महिलाओं के अचीवमेंट्स आदर्श उदाहरणों के रूप में देखे जाएं। ताकि अन्य महिलाएं आगे बढ़ने के लिए प्रेरित हों।

बनी हुई हैं बाधाएं

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्वतंत्र सत्ता के 75 साल बाद भी भेदभाव भरी कई छोटी-बड़ी बातें बहू-बेटियों के लिए बेड़ियां बनी हुई हैं। उनकी तरक्की में बाधा बन रही हैं। बदलकर भी ना बदलने वाले हमारे सोशल सिस्टम में बहुत सी शिक्षित और सजग महिलाएं भी अपनी जिम्मेदारियों की जद्दोजहद में उलझे रहने को मजबूर हैं।

स्त्री शक्ति को मिले समाज का साथ

महिलाओं के लिए सुरक्षा, सम्मान और पहचान पाने से लेकर खुलकर जीने का हक हासिल करने तक, समाज का साथ बहुत जरूरी है। समाज का सहयोग मिलने से परिवार के लिए भी अपनी बेटियों के साथ खड़े होना आसान हो जाता है। वैसे इधर कुछ वर्षों में पारिवारिक माहौल में काफी बदलाव आया है। हर क्षेत्र में सफलता का परचम लहरा रही महिलाओं की बढ़ती संख्या इस बदलाव की गवाह है। हालांकि महिलाओं ने जिन नए-पुराने कामकाजी क्षेत्रों में अपनी पुख्ता मौजूदगी दर्ज करवाई है, वहां उनके समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं। यों भी हमारे यहां सामाजिक-सांस्कृतिक हालातों से लेकर आर्थिक सुविधाओं और पारिवारिक सहयोग तक, बहुत कुछ बेटियों के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता रहा है। ऐसे में उनके मन की उम्मीदों की उजास ही राह में रोशनी बिखेर रही है। आज भी हर मुश्किल से जूझकर जीतने वाली महिलाओं को समाज शाबाशी तो देता है, लेकिन समय पर साथ नहीं देता। ऐसे हालात उनके संघर्ष को और मुश्किल बना देते हैं। जरूरी है कि जीतने की जद्दोजहद के सफर में भी समाज और परिवार उनके साथ खड़ा हो, उनके सर्वोन्मुखी विकास की राह बनाए।

आजादी का अमृत महोत्सव

आजादी का अमृत महोत्सव मनाए जाने का मतलब है विचारों, संकल्पों और भावी योजनाओं पर गहराई से सोचा जाना। यह भारत की आजादी के 75 साल के सफर का लेखा-जोखा करने का समय है। यकीनन इसमें देश की आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर भी गौर किया जाना जरूरी है। उनकी उपलब्धियों को सराहने और हर क्षेत्र में प्रभावी दस्तक को स्वीकार किए जाने का भाव लाने की सोच को बल दिया जाना आवश्यक है। प्रगतिशील विचारों के साथ देश की महिलाओं के जीवन को नकारात्मक सोच और असंवेदनशील व्यवहार की हर बेड़ी से मुक्त करने के लिए मंथन किया जाना, आजादी के अमृत महोत्सव को और सार्थक बना सकता है। हम यह भूले नहीं कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी अहम रही है। ऐसे में प्रगति और परिवर्तन के पथ पर बढ़ते देश को इस पड़ाव पर भी स्त्रियों की भूमिका पर गहनता से विचार करना होगा। इसे और मान और विस्तार देना होगा।

डॉ. मोनिका शर्मा

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Harsha Singh

Harsha Singh

दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की है। कॉलेज के दौरान ही कुछ वेबसाइट्स के लिए फ्रीलांस कंटेंट राइटर के तौर पर काम किया। अब बीते करीब एक साल से हरिभूमि के साथ सफर जारी है। पढ़ना, लिखना और नई चीजे एक्स्प्लोर करना पसंद है।


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