डायरेक्टर्स व्यूः डा. नीलम आर. सिंह की फिल्म ''तर्पण'' का ''लौंडा नांच'' देश को प्रगति का रास्ता दिखाएगा
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में जन्मीं और पली-बढ़ी, लखनऊ में शिक्षा ग्रहण करने वालीं नीलम आर. सिंह राइटर, पेंटर, म्यूजिक कंपोजर, सिंगर, कवियत हैं।

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में जन्मीं और पली-बढ़ी, लखनऊ में शिक्षा ग्रहण करने वालीं नीलम आर. सिंह राइटर, पेंटर, म्यूजिक कंपोजर, सिंगर, कवियत हैं। मल्टीटैलेंटेड नीलम सिंह ने एड फिल्मों के निर्माण से अपने करियर की शुरुआत की थी।
अब बतौर डायरेक्टर उनकी पहली फिल्म ‘तर्पण’ रिलीज होने वाली है। यह फिल्म जातिवाद पर बात करती है। फिल्म ‘तर्पण’ 6 दिसंबर 2018 को डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की 62वीं पुण्यतिथि पर रिलीज होगी। इस फिल्म से जुड़ी बातें डिटेल में बता रही हैं, डायरेक्टर नीलम आर. सिंह।
शिवमूर्ति के उपन्यास पर बनाई है फिल्म
मैं लंबे समय से एक फिल्म की कहानी लिखने की सोच रही थी। तभी मैंने हिंदी के मशहूर लेखक शिवमूर्ति के उपन्यास ‘तर्पण’ को पढ़ा, मुझे लगा कि इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता।
मेरे मन ने कहा कि इस कहानी को लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। मुझे अहसास हुआ कि उपन्यास में वर्णित घटनाक्रम तो हमारे आस-पास सदियों से घटित होते आ रहे हैं और आज भी लगभग हर दिन होते रहते हैं।
देश की आजादी के 72 वर्ष बाद भी हम जात-पात को लेकर आपस में लड़ रहे हैं। इस मूल वजह से मैंने इस उपन्यास को फिल्म बनाने के लिए चुना। इसमें जात-पात के भेदभाव और संघर्ष की कहानी तो है, साथ ही यह फिल्म जात-पात के संघर्ष के बीच फंसी एक नारी की पीड़ा को भी दर्शाती है।
फिल्म की कहानी
फिल्म में रजपतिया निचली जाति की लड़की है। जिसका गांव के रसूखदार ब्राह्मण का बेटा चंदर शारीरिक शोषण करने का प्रयास करता है। लेकिन गांव की दो औरतों के आ जाने से वह रजपतिया को छोड़ देता है।
जब इस घटना की खबर भीम पार्टी के भइया जी तक पहुंचती है तो वह गांव पहुंचकर रजपतिया के पिता को समझाकर पुलिस में रपट लिखाने के लिए कहते हैं। भीम पार्टी के नेता खुद साथ में पुलिस स्टेशन जाते हैं।
लेकिन चंदर के पिता अपने तरीके से मामले को रफा-दफा करा देते हैं। तब वह भीम पार्टी के नेता रजपतिया और उसके पिता को शहर ले जाकर विधायक से मिलाते हैं। विधायक जी, पुलिस कमिश्नर को बुलाकर कार्यवाही करने का आदेश देते हैं।
आनन फानन में चंदर की गिरफ्तारी हो जाती है। उसके बाद अदालत की कार्यवाही शुरू होती है। कुछ तारीखों के बाद चंदर को जमानत मिल जाती है। इस बात से गुस्से में आकर रजपतिया का भाई मौका पाकर चंदर की नाक काट देता है। अब जांच शुरू होती है।
आखिर में बेटी की पीड़ा का अहसास कर लड़की का पिता अपने बेटे के जुर्म को स्वीकार कर तर्पण यानी प्रायश्चित करने खुद ही जेल पहुंच जाता है। पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने पर पत्रकार पूछते हैं कि वह चंदर की नाक काटने की तैयारी कब से कर रहा था तो बूढ़ा शून्य में देखते हुए कहता है।
‘जब से चंदर ने रजपतिया का रास्ता रोका था.. नहीं जब बड़ी बिटिया के बलात्कार के बाद उसकी अर्थी कंधे पर उठाए थे.. नहीं..जब बाबा की पीठ पर बड़जात का कोड़ा पड़ते देखे रहे.. नहीं..पिछले जन्म से.. नहीं..जब एकलव्य के जुल्म हुआ रहे..।’ इस तरह हम इस फिल्म के जरिए हमेशा से शोषित रहे समुदाय के प्रतिरोध की कहानी कह रहे हैं।
कलाकारों का चयन
हमने जिन्हें अभिनय करते हुए देखा, उन्हें चुना। कुछ कलाकार एनएसडी से हैं। हमने भाषा पर काम किया। फिल्म में हिंदी के साथ अवधी की मिश्रित भाषा का इस्तेमाल किया है।
दिल्ली या मुंबई में रह रहे कलाकारों के लिए इस भाषा को पकड़ना थोड़ा मुश्किल रहा। हमने किरदारों के अनुरूप ही कलाकार को लुक देने की कोशिश की है। फिल्म में एक आइटम नंबर है-‘लौंडा नाच’, जिसके लिए हमने कलाकारों का मेकअप करवाया।
वरना पूरी फिल्म में किसी भी कलाकार का मेकअप नहीं किया है। इस फिल्म को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले के गांव रायपुर में फिल्माया है। कुछ दृश्य फैजाबाद शहर में भी फिल्माए हैं।
समाज के लिए संदेश
मैं अपनी फिल्म ‘तर्पण’ के माध्यम से कहना चाहती हूं कि हमने अपने समाज को कई चीजों में बांटा हुआ है, जिसमें जातिवाद सबसे बड़ा कारण है। जिस दिन हम अपने आपको किसी जाति विशेष का कहना छोड़ देंगे।
उसी दिन हमारा समाज और देश प्रगति की तरफ अग्रसर होगा। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। हमें चाहिए कि जातिवाद में उलझने की बजाय देश की बड़ी समस्याओं पर, महिला उत्पीड़न पर लगाम लगाएं।
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