होमी जहांगीर भाभा जयंती: भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक; जानें महान वैज्ञानिक के जीवन के 7 अनजाने फैक्ट

Homi Jehangir Bhabha jayanti: होमी भाभा के जीवन के 7 अनसुने पहलुओं पर नजर डालें, कैसी रही शिक्षा, एटोमिक फिजिक्स में क्या रहा योगदान।

Updated On 2024-10-30 13:17:00 IST
Homi Jehangir Bhabha jayanti

होमी जहांगीर भाभा को भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम का जनक माना जाता है। उनका योगदान सिर्फ विज्ञान तक सीमित नहीं था; उन्होंने आधुनिक भारत की आधारशिला रखने में अहम भूमिका निभाई। मुंबई में 30 अक्टूबर 1909 को जन्मे भाभा ने न सिर्फ देश का नाम रोशन किया, बल्कि भारतीय विज्ञान के क्षेत्र में एक मिसाल कायम की। उनके जीवन से जुड़े कुछ अनजाने तथ्यों को जानना हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।

18 साल की उम्र में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी पहुंचे
भाभा का विज्ञान के प्रति रुझान बचपन से ही था। उनके पिता और चाचा, दोराब टाटा की इच्छा थी कि वह इंजीनियर बनें। उन्होंने 18 साल की उम्र में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। उनका भविष्य टाटा स्टील या जमशेदपुर में मेटलर्जी के क्षेत्र में तय किया गया था, लेकिन विज्ञान के प्रति उनके जुनून ने उन्हें एक अलग राह पर ला दिया। 

कॉस्मिक रेडिएशन' पर पहला साइंटिफिक रिसर्च
भाभा को एटोमिक फिजिक्टस में गहरी रुचि थी, जिसने उनके वैज्ञानिक करियर को एक नई दिशा दी। कैम्ब्रिज में पढ़ाई के दौरान उन्होंने 'कॉस्मिक रेडिएशन' पर अपना पहला साइंटिफिक रिसर्च पेपर पेश किया। इसके बाद होमी भाभा को डॉक्टरेट की उपाधि मिली। भाभा के शोध 'भाभा स्कैटरिंग' ने इलेक्ट्रॉन-पॉजिट्रॉन स्कैटरिंग की व्याख्या की। आज भी वैज्ञानिक जगत में भाभा के इस योगदान को याद किया जाता है। 

युद्ध की वजह से भारत लौटे और शुरू किया रिसर्च
भाभा 1939 में भारत में छुट्टियों पर आए थे, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के चलते वे वापस नहीं जा सके। यह उनकी जिंदगी में एक बड़ा मोड़ था, जिसने उन्हें भारत में ही रहकर अपने देश की सेवा करने के लिए प्रेरित किया। उनके वापस लौटने के बाद भारतीय विज्ञान को एक नया दिशा मिली और उन्होंने अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय भारतीय विज्ञान को समर्पित कर दिया।

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना
1945 में भाभा ने टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना की। यह संस्थान भारत के वैज्ञानिक और अनुसंधान क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित हुआ। उनकी सोच थी कि भारत को विज्ञान और तकनीकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना चाहिए। उनकी दूरदर्शिता के कारण TIFR को वैज्ञानिक अनुसंधान का एक प्रमुख केंद्र माना जाता है।

चित्रकला और संगीत में भी थी रुचि
भाभा न केवल एक महान वैज्ञानिक थे बल्कि एक कलाकार भी थे। उन्हें शास्त्रीय संगीत और ओपेरा में गहरी रुचि थी। वे एक शौकिया वनस्पति विज्ञानी भी थे। अपने वैज्ञानिक काम से परे, भाभा अपनी कला और सांस्कृतिक अभिरुचियों के कारण भी लोगों के बीच काफी लोकप्रिय थे। उनकी यह बहुआयामी रुचि उन्हें और भी विशेष बनाती है।

प्लेन क्रैश में हुई होमी भाभा की मौत
होमी भाभा की मृत्यु 24 जनवरी 1966 को एयर इंडिया फ्लाइट 101 के दुर्घटनाग्रस्त होने से हुई। इस दुर्घटना का कारण जेनेवा एयरपोर्ट और पायलट के बीच संचार में गलतफहमी थी, जिससे प्लेन मोंट ब्लांक पर्वत से टकरा गया। भाभा की असामयिक मृत्यु ने भारतीय परमाणु कार्यक्रम को झटका दिया। उनकी मौत के कारणों को लेकर कई विवाद भी रहे हैं, लेकिन सच्चाई अभी तक अस्पष्ट है।

1954 में पद्म भूषण से किए गए सम्मानित
1954 में, होमी भाभा को परमाणु विज्ञान में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें 1955 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित शांति हेतु परमाणु ऊर्जा के उपयोग पर प्रथम अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। भाभा का जीवन और उनका काम भारतीय विज्ञान में प्रेरणा का स्रोत है।

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