RBI के हस्तक्षेप के बावजूद डॉलर के मुकाबले गिरकर रिकॉर्ड 90.13 के स्तर पर आया रुपया

भारतीय रुपया पहली बार 90.13 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर जा पहुंचा है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) हस्तक्षेप के बावजूद गिरावट का क्रम जारी है। शेयर बाजार, आयात और निवेश पर दिखा दबाव।

Updated On 2025-12-03 11:30:00 IST

(एपी सिंह) मुंबई। भारतीय मुद्रा बुधवार को गिरकर एक डॉलर के मुकाबले 90.13 रुपए के स्तर पर आ गया। यह रुपए की अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। पिछले कई दिनों से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के हस्तक्षेप के बाद भी रुपया बुधवार को 90.13 के स्तर तक गिर गया। इस गिरावट का मुख्य कारण विदेशी पूंजी प्रवाह में कमी, आयातकों द्वारा भारी डॉलर की डिमांड, और भारत–अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर जारी अनिश्चितता रही है।

लंबे समय से 88.80 का स्तर ऐसा था जिसे आरबीआई बचाए हुए था, लेकिन इसके टूटने के बाद रुपए पर दबाव और तेज हो गया। बाजार विशेषज्ञों का सामना है कि गिरावट के इस सिलसिले पर अंकुश नहीं लगा तो जल्दी ही डॉलर और रुपए का विनिमय रेट 91 तक देखने को मिल सकता है।

दूसरी एशियाई मुद्राओं पर भी दिख रहा दबाव

कई करेंसी विशेषज्ञों ने कहा है कि हाल के दिनों में सट्टेबाजों द्वारा शॉर्ट-कवरिंग और आयातकों की लगातार डॉलर खरीद ने रुपए को कमजोर किया है। इसके साथ ही, विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे हैं इसका दूसरी एशियाई मुद्राओं पर भी दबाव दिख रहा है। 50% अमेरिकी टैरिफ के बाद से एफपीआई फ्लो लगातार कमजोर बने हुए हैं।

इसी वजह से इस साल रुपया 4.7% गिर चुका है, जबकि अन्य एशियाई मुद्राएं औसतन मजबूत हुई हैं। यदि भारत–अमेरिका व्यापार समझौते में देरी होती है या भारत पर और टैरिफ बढ़ते हैं, तो रुपए में कमजोरी जारी रह सकती है।

शेयर बाजार पर भी दिखा इस गिरावट का असर

रुपए की इस तेज गिरावट का असर शेयर बाजार पर भी दिखने लगा है। निफ्टी अपने रिकॉर्ड स्तर से लगभग 300 अंकों तक फिसल गया है, क्योंकि डॉलर की मजबूती से विदेशी निवेशक बिकवाली कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक आरबीआई मजबूत हस्तक्षेप नहीं करता या अमेरिका–भारत व्यापार समझौते में सकारात्मक घोषणा नहीं होती, तब तक रुपए की दिशा कमजोर ही बनी रह सकती है।

रुपये का 90 के ऊपर टिकना महंगाई, आयात लागत, और विदेशी निवेश पर सीधा असर डालता है। पेट्रोल, डीजल, गैस, इलेक्ट्रॉनिक्स और कच्चे माल का आयात महंगा होगा, जिससे उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ सकता है।

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