गिरावट का क्रम जारी: डॉलर के मुकाबले 22 पैसे की गिरावट के साथ 90.41 पर खुला रुपया
भारतीय रुपया 22 पैसे टूटकर 90.41 पर खुला, डॉलर की बढ़ती मांग और विदेशी निवेशकों की बिकवाली से दबाव गहरा। जानिए RBI के सीमित हस्तक्षेप, ट्रेड डील अनिश्चितता के रुपए पर पड़ रहे प्रभाव का असर।
मुंबई। भारतीय रुपया एक बार फिर कमजोर होकर डॉलर के मुकाबले 90.41 के स्तर पर खुला है, जो पिछली बंद से 22 पैसे नीचे है। सबसे पहले, किसी भी देश की मुद्रा की कीमत मांग और आपूर्ति पर निर्भर करती है। जब विदेशी निवेशक भारत से पैसा निकालने लगते हैं जैसे कि स्टॉक मार्केट में बिकवाली बढ़ जाती है, तो डॉलर की मांग बढ़ती है और रुपया कमजोर होता है।
वर्तमान स्थिति में यही हो रहा है। विदेशी निवेशक भारतीय इक्विटी बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिससे डॉलर की मांग बढ़ी है और रुपया दबाव में आ गया है। दूसरा कारण है अमेरिका के साथ ट्रेड डील से जुड़ी अनिश्चितता। भारत–अमेरिका ट्रेड डील को लेकर स्पष्टता नहीं है। जब व्यापारिक संबंध अनिश्चित होते हैं, तो विदेशी कंपनियां और निवेशक सतर्क हो जाते हैं। उनसे होने वाले डॉलर प्रवाह में कमी आती है और इससे भी रुपया कमजोर पड़ता है।
एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ओर से हस्तक्षेप यानी डॉलर बेचकर रुपए को मजबूत करने की कोशिश काफी कम दिखाई दे रही है। आमतौर पर आरबीआई बाजार में हस्तक्षेप करता है, ताकि रुपए की कमजोरी को नियंत्रित किया जा सके। इस समय भी कर रहा है, लेकिन इस बार आरबीआई के प्रयासों की गति धीमी है।
विशेषज्ञों के अनुसार यह संकेत हो सकता है कि केंद्रीय बैंक जानबूझकर बाजार को खुद संतुलन बनाने दे रहा है या फिर 5 दिसंबर की मौद्रिक नीति में कोई बड़ा संदेश देने की तैयारी है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आरबीआई रुपए की गिरावट को स्वीकार तो करेगा, पर किसी खास स्तर को बचाने का वादा नहीं करेगा, ताकि बाजार को यह न लगे कि केंद्रीय बैंक किसी निश्चित रेंज की रक्षा कर रहा है।
रुपए के 90 के आंकड़े को पार करना एक मनोवैज्ञानिक स्तर माना जाता है। जब कोई मुद्रा ऐसा स्तर तोड़ती है, तो बाजार में यह संदेश जाता है कि दबाव गहरा है और आगे और गिरावट संभव है। इसी कारण विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि डॉलर-रुपया विनिमय दर 90.70 से 91 के दायरे की ओर जा सकती है। इसका मतलब है कि आने वाले समय में आयात और महंगा हो सकता है क्योंकि भारत को तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी जैसे आवश्यक सामानों का बड़ा हिस्सा विदेशों से खरीदना पड़ता है।
इसका सीधा असर आम लोगों पर भी पड़ता है। रुपया कमजोर होने से पेट्रोल-डीजल, इलेक्ट्रॉनिक्स, कुछ खाद्य तेल और कई दैनिक उपयोग की वस्तुएं महंगी हो सकती हैं। हालांकि यह असर तुरंत नहीं आता, लेकिन कुछ हफ्तों में धीरे-धीरे खर्च बढ़ने लगता है। इसके साथ ही विदेशी शिक्षा, विदेश यात्रा और ऑनलाइन सेवाओं की लागत भी बढ़ जाती है क्योंकि भुगतान डॉलर में किया जाता है।
(-एपी सिंह )