Bahadurgarh विधानसभा सीट: कांग्रेस पर भारी पड़ सकती है नेताओं की खींचतान, जीत की राह नहीं होगी आसान  

Congress leaders Rajendra June and Rajesh June
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 कांग्रेस नेता राजेंद्र जून और राजेश जून।
बहादुरगढ़ की विधानसभा सीट पर कब्जा करना इस बार कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा। कांग्रेस की आपसी खींचतान उनका गणित बिगाड़ सकती है।

Bahadurgarh: दिल्ली-हरियाणा सीमा पर स्थित बहादुरगढ़ राजनीति के लिहाज से भी जागरुक रहा है। विधानसभा चुनाव में अब तक 9 बार जीत हासिल कर कांग्रेस सबसे आगे है। जबकि लोकदल पांच बार और भाजपा एक बार जीती है। लेकिन कांग्रेस के लिए अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रखना इस बार बड़ी चुनौती बन सकता है। एक तरफ जहां कांग्रेस बीते 9 साल में संगठन का गठन करने में विफल सिद्ध हुई है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के दो बड़े नेताओं में टिकट को लेकर उभरी खींचतान भी कांग्रेस का गणित बिगाड़ सकती है।

वर्तमान में सीट पर कांग्रेस का है कब्जा

बहादुरगढ़ में सबसे पहले चौधरी छोटूराम की पार्टी जमींदारा लीग से उनके भतीजे चौधरी श्रीचंद जीते थे। 1987 में पूर्व मंत्री मांगेराम नंबरदार ने 25 हजार 320 वोटों से अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी। जबकि 1972 में एनसीओ के हरद्वारी लाल ने महज 395 वोटों से सबसे छोटी जीत हासिल की। चूंकि प्रदेश में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी दलों में हलचल तेज हो गई है। ऐसे में बहादुरगढ़ की राजनीति भी ठंड के मौसम में गर्म होती जा रही है। वर्तमान में बहादुरगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। जीत के क्रम को दोहराने मंर कांग्रेस को इस बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

10 साल से बगैर संगठन चल रही कांग्रेस

कांग्रेस अभी तक चुनावी साल में भी संगठन नहीं बना सकी। करीब 10 साल से अधिक का समय गुजरने के बाद भी कांग्रेस की जिला या ब्लॉक कार्यकारिणी तक नहीं बन सकी है। बिना संगठन के ही कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा व विधानसभा चुनाव लड़े, जिसका खामियाजा सभी 10 लोकसभा सीटों पर हारने और विधानसभा में विपक्ष में बैठकर चुकाना पड़ा। अतीत में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे डॉ. अशोक तंवर और कुमारी सैलजा संगठन खड़ा करने में नाकाम रहे। वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष उदयभान के कार्यकाल में भी सूची तैयार होती हैं, लेकिन नेताओं की सियासी खींचतान में कार्यकारिणी उलझ गई है।

वर्कर और वोटरों में छलक रही निराशा

पिछले विधानसभा चुनाव में झज्जर जिले ने कांग्रेस को सभी चारों सीटें दी थी। इस दौरान कार्यकर्ताओं के साथ मतदाताओं को सत्ता में भागीदारी मिलने की उम्मीद जगी थी। लेकिन अन्य जिलों में कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा। ऐसे में वर्करों के साथ ही मतदाता भी निराश हुए। इसीलिए इस बार कांग्रेस की राह इतनी आसान नहीं है। कांग्रेस नेता भी इन मुश्किलों को बढ़ाने में पीछे नहीं हैं। विधायक राजेंद्र जून और वरिष्ठ नेता राजेश जून की खींचतान आगामी विधानसभा चुनावों से पहले ही कांग्रेस की स्थिति जटिल बना रही है।

जून के कारण हारे जून

2005 में 5096 वोटों और 2009 में 19352 वोटों से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद राजेंद्र जून 2014 में तीसरी बार मैदान में उतरे। लेकिन इस बार कांग्रेस नेता राजेश जून भी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे और उन्हें 28 हजार 242 वोट प्राप्त हुए। जिस कारण कांग्रेस के राजेंद्र जून को भाजपा के नरेश कौशिक के हाथों 4882 वोटों से शिकस्त मिली। बीते 2019 के चुनाव में इस समीकरण को जेहन में रखते हुए भूपेंद्र हुड्डा नामांकन फार्म भरने से पहले ही राजेश जून के पास पहुंच गए और उन्हें चुनाव नहीं लड़ने के लिए रजामंद कर लिया। इसके बाद राजेश जून ने राजेंद्र जून के पक्ष में चुनाव प्रचार किया। परिणामस्वरूप राजेंद्र जून 15 हजार 491 वोटों से जीतकर तीसरी बार विधायक बने।

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