हरियाणा परिवहन विभाग: परिचालकों की वरिष्ठता सूची जारी, जल्द किए जाएंगे प्रमोशन, रोडवेज महाप्रबंधक से मांगी जानकारी

Mahendragarh Bus Stand.
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बस स्टैंड महेंद्रगढ़। 
महेंद्रगढ़ में परिवहन विभाग ने पदोन्नति के लिए 2008 में नियुक्त परिचालकों की वरिष्ठता सूची जारी करते हुए रोडवेज महाप्रबंधक से उनके बारे में विभागीय जानकारी मांग ली है।

महेंद्रगढ़: लंबे इंतजार के बाद परिवहन विभाग में कार्यरत परिचालकों की पदोन्नति की फाइल एक कदम आगे बढ़ गई है। परिवहन विभाग ने पदोन्नति के लिए वर्ष 2008 में नियुक्त परिचालकों की वरिष्ठता सूची जारी करते हुए रोडवेज महाप्रबंधक (Roadways General Manager) से उनके बारे में विभागीय जानकारी मांग ली है। ऐसे में इन परिचालकों की जल्द पदोन्नति होने की उम्मीद जग गई है। रोडवेज में पिछले तीन वर्ष से परिचालकों की पदोन्नति नहीं होने के कारण उपनिरीक्षकों व निरीक्षकों के पद रिक्त पड़े हुए हैं।

डिपो में कामकाज हो रहा था प्रभावित

बता दें कि डिपो में निरीक्षकों व उपनिरीक्षकों के पद लंबे समय से रिक्त चल रहे थे, जिस कारण डिपो में न तो नियमित रूप से बसों में टिकट जांच का कार्य हो पा रहा था और न ही अन्य कार्य समय पर हो रहे थे। हाल ही में परिवहन विभाग (Transport Department) की तरफ से वर्ष 2008 में नियुक्त परिचालकों की वरिष्ठता सूची जारी करते हुए रोडवेज महाप्रबंधक से इन कर्मचारियों के बारे में कोई विभागीय कार्रवाई लंबित होने, कोर्ट केस, विजिलेंस जांच, वेतन वृद्धि से संबंधित जानकारी मांगी गई है।

तीन वर्ष से नहीं हुई परिचालकों की प्रमोशन

रोडवेज यूनियन के अनुसार पिछले तीन वर्ष से अधिक समय से परिचालकों के प्रमोशन की फाइल अटकी हुई है। विभाग में अन्य कर्मचारियों के प्रमोशन हो रहे हैं। जब परिचालकों के प्रमोशन ही नहीं होंगे तो नए उपनिरीक्षक कैसे आएंगे। उपनिरीक्षक प्रमोशन पाकर निरीक्षक बनते हैं। वर्ष 2008 में भर्ती हुए परिचालकों का प्रमोशन किया जाना है, लेकिन अभी तक नहीं किया गया है। रोडवेज महाप्रबंधक अनीत यादव ने बताया कि मुख्यालय की तरफ से वर्ष 2008 में नियुक्त परिचालकों की वरिष्ठता सूची जारी करते हुए जानकारी मांगी गई है। सूची अनुसार संबंधित जानकारी मुख्यालय को भिजवा दी है।

जांच के लिए हैं दो टीमें

डिपो में कार्यरत दो निरीक्षक को जीएम फ्लाइंग और दो निरीक्षकों को बस बेड़े की फ्लाइंग में लगाया हुआ है। दो वर्ष पहले तक डिपो में बसों की जांच से डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिमाह कमाई होती थी। वर्तमान में यह एक लाख रुपए प्रतिमाह से भी कम हो गई है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि डिपो को प्रतिमाह कितना नुकसान हो रहा है। पहले पांच से छह टीमें रूटों पर बसों में बेटिकट यात्रियों की जांच करती थी। यह टीमें प्रतिदिन लगभग सभी रूटों को कवर कर लेती थी, लेकिन अब दो से तीन माह में किसी रूट पर जांच का नंबर आता है।

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