अंतिम पड़ाव पर सावन : पंचकोशी यात्रा का दूसरा पड़ाव है चम्पेश्वर महादेव मंदिर, भक्तों की उमड़ती है भीड़ 

worship and worship of devotees
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पूजन- अर्चन भक्त
सावन का पवित्र माह अंतिम पड़ाव पर है। रायपुर, धमतरी और गरियाबंद को जोड़ने वाले पंचकोशी धाम की यात्रा भी अपने अंतिम चरण पर है।  चम्पेश्वर महादेव को त्रिमूर्ति महादेव भी कहा जाता है। 

सोमा शर्मा- नवापारा। सावन का पवित्र माह अंतिम पड़ाव पर है। रायपुर, धमतरी और गरियाबंद को जोड़ने वाले पंचकोशी धाम की यात्रा भी अपने अंतिम चरण पर है। रायपुर जिले के अंतर्गत आने वाले ग्राम चंपारण में चम्पेश्वर महादेव का मंदिर पंचकोशी यात्रा का दूसरा पड़ाव माना जाता है।

रायपुर से लगभग 50 किमी की दूरी पर अभनपुर और आरंग के अंतिम क्षेत्र में ग्राम चंपारण में स्थित है, चम्पेश्वर महादेव और वल्लभाचार्य की जन्मभूमि का यह मंदिर। चार धाम के अंतर्गत आने वाले द्वारकाधीश की यात्रा चंपारण की यात्रा के बाद ही पूरी मानी जाती है। जिसकी पुष्टि द्वारकाधीश के द्वारिका भेंट के पुजारी गण भी कर चुके हैं। चम्पेश्वर महादेव को त्रिमूर्ति महादेव भी कहा जाता है। यह अपने आप में पहला स्वयंभू शिव लिंग है एक ही में ऊपरी भाग गणेश जी, मध्य भाग शिव जी, निचला भाग माता पार्वती के रूपों का प्रतिनिधित्व करता है।

किवदंती गाय अपने दूध से करती थी अभिषेक

कहा जाता है कि, 1250वर्षों पूर्व चंपारण सघन जंगल हुआ करता था। सघन जंगल के बीच त्रिमूर्ति महादेव का अवतरण हुआ। घने जंगल के कारण लोगों का आना जाना संभव नहीं था। लोगों के न आने जाने के कारण भगवान शिव ने एक गाय को अपना निमित बनाया। यह गाय रोजाना भगवान शिव पर अपने दूध का अभिषेक करके जाती थी। जब ग्वाला गाय का दूध लेता तब दूध नहीं निकलता था इससे ग्वाला को संदेह हुआ और वह एक दिन गाय का पीछा किया। तब ग्वाले ने देखा की गाय अपना दूध शिवलिंग पर समर्पित कर रही है। ग्वाले ने यह बात जाकर राजा को बताई और देखते ही देखते पूरे विश्व में यह बात फैल गई। लोग दूर दूर से दर्शन के लिए आने लगे देखते ही देखते लोगों की सुविधा के लिए मार्ग बनाया गया।

गर्भवती महिलाओं का है प्रवेश वर्जित

मंदिर में गर्भवती महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। साथ ही दर्शन करने आने वाली महिलाओं को बाल खोल लेने की सलाह भी दी जाती है। अर्थात महिलाओं का बाल बांधकर भी नहीं आना चाहिए।

पैदल चलकर पहुंच रहे हैं भक्त

चम्पेश्वर महादेव के प्रति भक्तों की आस्था और विश्वास का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि, लोग दूर- दूर से कांवर के रूप में, महिलाएं भी सपरिवार जल लेकर पैदल आकर भगवान चम्पेश्वर महादेव को जल अर्पित कर रही हैं।

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