कमरे में कैद कीर्ति चक्र विजेता 'शहीद' : परिजनों ने बनवाई प्रतिमा, पूरे शहर में कहीं भी चंद फीट जगह नहीं दे रहा प्रशासन

statue of martyred soldier
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शहीद जवान की प्रतिमा
नक्सलियों के साथ लोहा लेते देश के लिए शहीद हो गया था। लेकिन जवान का परिवार मूर्ति स्थापित करने के लिए जमीन के लिए तरस रहा है। शहीद का परिवार आज भी प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठा है।

गणेश मिश्रा- बीजापुर। छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सलियों के साथ लोहा लेते देश के लिए शहीद हो गया था। लेकिन जवान का परिवार मूर्ति स्थापित करने के लिए तरस रहा है। जी हां... यह बात सुनने में आपको अजीब लग रही होगी। लेकिन यह एक कड़वी सच्चाई है और प्रशासन की घोर लापरवाही का परिणाम है कि, देश के लिए शहीद हुआ था। जवान को मरणोपरांत राष्ट्रपति के हाथों कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। लेकिन विडंबना है कि, बीजापुर जिला प्रशासन या पुलिस प्रशासन के पास दो गज जमीन तक नहीं है।

दरअसल, 3 अप्रैल 2021 को टेकुलगुडम में हुए एक नक्सली मुठभेड़ के दौरान 22 जवान शहीद हो गए थे। जिसमें बीजापुर के शांति नगर का रहने वाला प्रधान आरक्षक नारायण सोढ़ी भी शामिल था। जिसने मुठभेड़ के दौरान नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया था और इसी दौरान वह नक्सलियों की गोलियों का शिकार होकर शहीद हो गया। जवान को शहीद हुए आज 4 साल हो चुके हैं और उस जवान की शहादत को अपने जेहन में जीवित रखने के लिए पत्नी उर्मिला सोढ़ी ने अपने पति यानी कि शहीद जवान नारायण सोढ़ी की 6 फीट ऊंची प्रतिमा का निर्माण कराया था। उसके बाद जिला प्रशासन से नगर के अंदर या कहीं सड़क के किनारे मूर्ति स्थापित करने की गुहार लगाई थी। लेकिन जिला प्रशासन ने यह कहकर उन्हें बैरंग लौटा दिया कि उनके पास शहीद जवान की मूर्ति स्थापित करने के लिए कोई जगह नहीं है और वो जगह देने के लिए असमर्थ है।

प्रशासन से उम्मीद लगाए बैठा है परिवार

सोचा जाय तो कितनी बड़ी विडंबना है कि, जिस जवान ने देश की सुरक्षा और विकास के लिए अपनी शहादत दी है। उस जवान की मूर्ति को स्थापित करने के लिए सरकार के पास मूर्ति स्थापित करने के लिए जमीन नहीं है। अब आप इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि बस्तर में नक्सल मोर्चे पर तैनात उन जवानों की क्या स्थिति है जो जीवित रहते अधिकारियों की प्रताड़ना का शिकार होते हैं और शहादत के बाद सरकार की बेरुखी का शिकार बन रहे हैं। बहरहाल घर के अंदर रखे अपने शहीद पिता की प्रतिमा को देखकर रोज बच्चों की आंखें नम हो जाती हैं तो कभी डर भी सताने लगता है। ऐसे में परिवार अभी भी इस उम्मीद पर बैठा है कि देर सवेर सरकार उन्हें मूर्ति स्थापित करने के लिए कहीं ना कहीं जरूर जगह उपलब्ध कराएगी।

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