जन्म- तप कल्याणक दिवस : भगवान पार्श्वनाथ और चंद्रप्रभु का प्रासुक जल से जलाभिषेक कर किया गया मंत्रोच्चार 

Shri Adinath Digambar Jain bada mnadir
X
धूमधाम से मनाया गया भगवान पार्श्वनाथ और चंद्रप्रभु का जन्म व तप कल्याणक दिवस
रायपुर में  श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ और 8वे तीर्थंकर चंद्रप्रभु भगवान का जन्म व तप कल्याणक दिवस मनाया गया। 

रायपुर। छत्तीसगढ़ के रायपुर में श्री आदिनाथ दिगंबर जैन बड़ा मंदिर (लघु तीर्थ) में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ और 8 वे तीर्थंकर चंद्रप्रभु भगवान का जन्म व तप कल्याणक दिवस मनाया गया। इस दौरान श्रावकों ने जिनालय की मूलनायक, पार्श्वनाथ जी की बेदी के समक्ष श्री चंद्रप्रभु भगवान और श्री पार्श्वनाथ भगवान को पाण्डुक शीला में विराजमान किया।

मीडिया प्रभारी प्रणीत जैन ने बताया कि, सुबह से ही बड़ा मंदिर के सभी जिनालय में श्रावकों की भीड़ देखने को मिली। रजत कलशों के प्रासुक जल से भगवान का जलाभिषेक मंत्रोच्चार के साथ किया गया। इस पूर्व अध्यक्ष संजय जैन नायक ने सुख शांति समृद्धि प्रदाता चमत्कारिक शांति धारा किया। वहीं इस दौरान उपाध्यक्ष श्रद्धेय जैन विक्की ने शांति धारा का शुद्ध वाचन किया। शांति धारा उपरांत सभी ने भक्तिभाव से भगवान की मंगलमय आरती की। इसके बाद सभी ने अष्ट द्रव्यों से निर्मित अर्घ्य से भगवान का पूजन कर स्वाहा मंत्र के साथ अर्घ्य समर्पित किए। अंत में विसर्जन पाठ पढ़ कर पूजन विसर्जन किया गया।

23 वे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ भगवान का जीवन परिचय

जैन पुराणों के अनुसार, तीर्थंकर बनने के लिए पार्श्वनाथ को पूरे 9 जन्म लेने पड़े थे। पूर्व जन्म के संचित पुण्यों और 10वें जन्म के तप के फलत: ही वे 23वें तीर्थंकर बने। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्ण एकादशी के दिन वाराणसी में हुआ था। पिता का नाम अश्वसेन और माता का नाम वामादेवी था। अश्वसेन वाराणसी के राजा थे। दिगंबर धर्म के मतावलंबियों के अनुसार पार्श्वनाथ बाल ब्रह्मचारी थे। बचपन में पार्श्वनाथ का जीवन राजसी वैभव और ठाट-बाट में व्यतीत हुआ।

Shri Adinath Digambar Jain bada mnadir
जन्म- तप कल्याणक दिवस

तपस्वी महीपाल को निरीह जीवों पर वार करने से रोका था

जब उनकी उम्र 16 वर्ष की हुई और वे एक दिन वन भ्रमण कर रहे थे, तभी उनकी दृष्टि एक तपस्वी पर पड़ी, जो कुल्हाड़ी से एक वृक्ष पर प्रहार कर रहा था। यह दृश्य देखकर पार्श्वनाथ सहज ही चीख उठे और बोले- 'ठहरो! उन निरीह जीवों को मत मारो।' उस तपस्वी का नाम महीपाल था। अपनी पत्नी की मृत्यु के दुख में वह साधु बन गया था। वह क्रोध से पार्श्वनाथ की ओर पलटा और कहा- किसे मार रहा हूं मैं? देखते नहीं, मैं तो तप के लिए लकड़ी काट रहा हूं।पार्श्वनाथ ने व्यथित स्वर में कहा- लेकिन उस वृक्ष पर नाग-नागिन का जोड़ा है। महीपाल ने तिरस्कारपूर्वक कहा- तू क्या त्रिकालदर्शी है लड़के और पुन: वृक्ष पर वार करने लगा। तभी वृक्ष के चिरे तने से छटपटाता, रक्त से नहाया हुआ नाग-नागिन का एक जोड़ा बाहर निकला।

भगवान पार्श्वनाथ के मन्त्र सुनाने से नाग- नागिन को मिली मुक्ति

एक बार तो क्रोधित महीपाल उन्हें देखकर कांप उठा, लेकिन अगले ही पल वह धूर्ततापूर्वक हंसने लगा। तभी पार्श्वनाथ ने नाग-नागिन को णमोकार मंत्र सुनाया, जिससे उनकी मृत्यु की पीड़ा शांत हो गई और अगले जन्म में वे नाग जाति के इन्द्र-इन्द्राणी धरणेंद्र और पद्‍मावती बने और मरणोपरांत महीपाल सम्बर नामक दुष्ट देव के रूप में जन्मा। पार्श्वनाथ को इस घटना से संसार के जीवन-मृत्यु से विरक्ति हो गई। उन्होंने ऐसा कुछ करने की ठानी जिससे जीवन-मृत्यु के बंधन से हमेशा के लिए मुक्ति मिल सके।

shri adinath digambar jain bada mandir
जन्म व तप कल्याणक दिवस

चैत्र कृष्ण चतुर्दशी के दिनभगवान पार्श्वनाथ को कैवल्यज्ञान प्राप्त हुआ

जब वे 30 वर्ष के हुए तो उनके जन्मदिवस पर अनेक राजाओं ने उपहार भेजें। अयोध्या का दूत उपहार देने लगा तो पार्श्वनाथ ने उससे अयोध्या के वैभव के बारे में पूछा। उसने कहा- 'जिस नगरी में ऋषभदेव, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ जैसे पांच तीर्थंकरों ने जन्म लिया हो उसकी महिमा के क्या कहने। वहां तो पग-पग पर पुण्य बिखरा पड़ा है। इतना सुनते ही भगवान पार्श्वनाथ को एकाएक अपने पूर्व नौ जन्मों का स्मरण हो आया और वे सोचने लगे, इतने जन्म उन्होंने यूं ही गंवा दिए। अब उन्हें आत्मकल्याण का उपाय करना चाहिए और उन्होंने उसी समय मुनि-दीक्षा ले ली और विभिन्न वनों में तप करने लगे। भगवान पार्श्वनाथ जी को चैत्र कृष्ण चतुर्दशी के दिन उन्हें कैवल्यज्ञान प्राप्त हुआ और वे तीर्थंकर बन गए। वे सौ वर्ष तक जीवित रहे। तीर्थंकर बनने के बाद का उनका जीवन जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में गुजरा और फिर श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन उन्हें सम्मेदशिखर जी पर निर्वाण प्राप्त हुआ।

ये रहे मौजूद

कार्यकम में विशेष रूप से पूर्व अध्यक्ष संजय जैन नायक, अध्यक्ष यशवंत, उपाध्यक्ष श्रद्धेय विक्की, पूर्व मैनेजिंग ट्रस्टी देव कुमार, उपाध्यक्ष नीरज जैन, प्रवीण जैन मामा जी,प्रणीत जैन, उपस्थित थे।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo
Next Story