Patanjali: भ्रामक विज्ञापन मामले में SC ने बाबा रामदेव और बालकृष्ण का माफीनामा ठुकराया; कहा- हम अंधे नहीं, नतीजा भुगतना होगा

Baba Ramdev and Patanjali MD Balkrishna
X
Baba Ramdev and Patanjali MD Balkrishna
Patanjali Misleading Advertisements: 10 जुलाई 2022 को पतंजलि ने एक विज्ञापन जारी किया। इसमें एलोपैथी पर गलतफहमी फैलाने का आरोप लगाया गया। इसके खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने 17 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी।

Patanjali Misleading Advertisements: पतंजलि भ्रामक विज्ञापन केस में आज बुधवार, 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। योग गुरु बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के एमडी आचार्य बालकृष्ण अदालत में व्यक्तिगत रुप से पेश हुए। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्ला की बेंच के सामने बाबा रामदेव और बालकृष्ण ने भ्रामक विज्ञापनों पर एक बार फिर माफी मांगी। इस पर शीर्ष अदालत ने फटकार लगाई।

जस्टिस अमानतुल्लाह ने कहा कि आप हलफनामे में धोखाधड़ी कर रहे हैं। इसे तैयार किसने किया है? मुझे हैरानी है। वहीं, जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि आपको ऐसा हलफनामा नहीं देना चाहिए। इस पर वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि हमसे चूक हुई है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूक शब्द छोटा है। वैसे भी हम इस पर फैसला करेंगे।

माफी सिर्फ कागजों तक सीमित
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि माफी सिर्फ कागजों तक सीमित है। हम इसे जानबूझकर आदेश की अवहेलना मानते हैं। बड़े पैमाने पर समाज में यह संदेश जाना चाहिए कि अदालत के आदेश का उल्लंघन न किया जाए।

अदालत ने कहा कि अदालत ने कहा कि हम अंधे नहीं हैं। हम माफीनामा स्वीकार नहीं करते हैं। इससे पहले वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष बाबा रामदेव का हलफनामा पढ़ा। जिसमें उन्होंने कहा था कि वह विज्ञापन के मुद्दे पर बिना शर्त माफी मांगते हैं।

संबंधित अधिकारियों को तुरंत निलंबित करिए
सुप्रीम कोर्ट ने कानून के उल्लंघन के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने पर उत्तराखंड सरकार की खिंचाई की। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से कहा कि वह उसे फ्री में नहीं छोड़ेगी। सभी शिकायतें शासन को भेज दी गईं। लाइसेंसिंग इंस्पेक्टर चुप रहे, अधिकारी की ओर से कोई रिपोर्ट नहीं है। संबंधित अधिकारियों को अभी निलंबित किया जाना चाहिए।

आयुर्वेदिक दवाएं लाने वाले पहले व्यक्ति हैं रामदेव?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पतंजलि का कहना है कि विज्ञापन का उद्देश्य लोगों को आयुर्वेदिक दवाओं से जोड़े रखना था। यह बिलकुल वैसा है जैसे कि वे दुनिया में आयुर्वेदिक दवाएं लाने वाले पहले व्यक्ति हों। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट अब मजाक बनकर रह गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार से उन अनगिनत निर्दोष लोगों के बारे में सवाल किया जिन्होंने यह सोचकर दवाएं लीं कि इससे बीमारियां ठीक हो जाएंगी? सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि उसे उन सभी एफएमसीजी कंपनियों की चिंता है जो उपभोक्ताओं को अच्छी तस्वीरें दिखाती हैं और फिर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करती हैं।

सार्वजनिक माफी जारी करेंगे
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत में कहा कि बाबा रामदेव और बालकृष्ण सार्वजनिक माफी जारी कर सकते हैं। पहले के हलफनामे वापस ले लिए गए हैं और अपनी ओर से हुई गलतियों के लिए बिना शर्त और अयोग्य माफी मांगते हुए नए हलफनामे दाखिल किए गए हैं।

2018 से अब तक अधिकारियों पर कार्रवाई का मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने एक विस्तृत हलफनामा दायर किया है जिसमें आपत्तिजनक विज्ञापनों के संबंध में की गई कार्रवाई को समझाने की कोशिश की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फाइल को आगे बढ़ाने के अलावा कुछ भी नहीं किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि 4-5 साल में राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी गहरी नींद में रही। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि 2018 से अब तक जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी के पद पर रहे सभी अधिकारी अपने द्वारा की गई कार्रवाई पर जवाब दाखिल करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के मामले में 16 अप्रैल की सुनवाई तय की है।

एक दिन पहले बाबा रामदेव ने दाखिल किया था हलफनामा
एक दिन पहले यानी 9 अप्रैल को बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के मैनेजिंग डायरेक्टर आचार्य बालकृष्ण ने नया हलफनामा दाखिल किया है। जिसमें बिना शर्त माफी मांगते हुए कहा कि इस गलती पर उन्हें खेद है। ऐसा दोबारा नहीं होगा।

इससे पहले 2 अप्रैल को हुई सुनवाई के दौरान भी पतंजलि की तरफ से माफीनामा जमा किया गया था। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की बेंच ने फटकार लगाई थी। कहा था कि ये माफीनामा सिर्फ खानापूर्ति के लिए है। आपके अंदर माफी का भाव नहीं दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कड़े सवाल भी पूछे थे। कहा था कि हम आश्चर्यचकित हैं कि सरकार ने अपनी आंखें बंद रखने का फैसला क्यों किया?

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दिया हलफनामा
पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के मामले में केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि चमत्कारिक उपचार का दावा करने वाले विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राज्य जिम्मेदार है। हालांकि, मंत्रालय ने कानून के मुताबिक समय पर इस मामले को उठाया था। पतंजलि को आयुष मंत्रालय की जांच पूरी होने तक कोविड 19 के इलाज के लिए कोरोनिल बनाने का दावा करने वाला विज्ञापन नहीं देने के लिए कहा था।

राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को बताया गया था कि कोरोनिल टैबलेट को केवल कोविड-19 में सहायक उपाय के रूप में माना जा सकता है। केंद्र ने कोविड के इलाज के झूठे दावों के संबंध में सक्रिय कदम उठाए हैं। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कोविड उपचार के लिए आयुष संबंधी दावों के विज्ञापनों को रोकने के लिए कहा गया है।

केंद्र ने कहा कि मौजूदा नीति एलोपैथी के साथ आयुष प्रणालियों की वकालत करती है। आयुष प्रणाली या एलोपैथिक चिकित्सा की सेवाओं का लाभ उठाना किसी व्यक्ति या स्वास्थ्य देखभाल चाहने वाले की पसंद है। सरकार समग्र तरीके से अपने नागरिकों के समग्र स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए प्रत्येक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की ताकत का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

क्यों है ये विवाद?
दरअसल, 10 जुलाई 2022 को पतंजलि ने एक विज्ञापन जारी किया। इसमें एलोपैथी पर गलतफहमी फैलाने का आरोप लगाया गया। इसके खिलाफ इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने 17 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया। वहीं खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया।

21 नवंबर 2023 को हुई सुनवाई में जस्टिस अमानतुल्ला ने कहा था कि पतंजलि को सभी भ्रामक दावों वाले विज्ञापन तुरंत बंद करना होगा। अदालत किसी भी उल्लंघन को गंभीरता से लेगी। हर एक प्रोडक्ट के झूठे दावे पर एक करोड़ तक का जुर्माना लग सकता है।

WhatsApp Button व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ें WhatsApp Logo
Next Story