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पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से लुप्त होती विशेष जीव प्रजातियों और बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र पर चिंता जताई जा रही है। साल 2023 में इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए हैं।

Ganga dolphin: पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से लुप्त होती विशेष जीव प्रजातियों और बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र पर चिंता जताई जा रही है। लेकिन साल 2023 में इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए, उनमें एक गांगेय या गंगा डॉल्फिन को बचाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 14 अक्टूबर 2023 को इसे राज्य जलीय जंतु घोषित किया जाना भी शामिल है। गौरतलब है कि इससे पहले 18 मई 2009 को भारत सरकार ने गंगा डॉल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था।
 
बहुत विशिष्ट है डॉल्फिन
डॉल्फिन मछली नहीं बल्कि यह एक स्तनधारी जंतु है, मादा डॉल्फिन अपने बच्चे को दूसरी मादाओं की तरह दूध पिलाती है। मादा डॉल्फिन की नर डॉल्फिन से लंबाई थोड़ी अधिक होती है। डॉल्फिन की औसत उम्र करीब 28 साल तक रिकॉर्ड की गई है। गांगेय डॉल्फिन एक ऐसी लुप्तप्राय जीव प्रजाति है, जो अब भारत में सिर्फ गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों में बची है। गंगा नदी में पाई जाने वाली गांगेय डॉल्फिन एक नेत्रहीन जलीय जंतु है, जिसमें सूंघने की अपार शक्ति होती है। जन्मजात नेत्रहीन होने के कारण डॉल्फिन ‘इकोलोकेशन’ यानी प्रतिध्वनि निर्धारण की बदौलत पहचानकर अपने भोजन हेतु शिकार की तलाश करती है। इसे बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ‘सोंस’ भी कहते हैं।

गंगा नदी की शुद्धता का संकेतक
गंगा नदी में डॉल्फिन की मौजूदगी, उसके जल के शुद्ध और साफ होने की निशानी है। गंगा के पानी में अगर डॉल्फिन नहीं बच रही, तो इसका मतलब गंगा का पानी जलीय जीवों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसलिए इसको गंगा नदी के स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता है।
 
कई नदियो में था इनका निवास
एक जमाने में गांगेय डॉल्फिन गंगा, यमुना, चंबल, घाघरा, राप्ती और गेरुआ जैसी नदियों में बहुतायत में पाई जाती थी। गंगा और उसकी सहायक नदियों की तरह ही यह ब्रह्मपुत्र-मेघना और संगु-कर्णफुली नदियों में भी पाई जाती थी। यही नहीं यह भारत, बांग्लादेश और नेपाल की तरह भारत से होकर पाकिस्तान में बहने वाली सिंधु नदी में भी बड़ी संख्या में मौजूद थी। लेकिन इसका अस्तित्व अब गंगा नदी के कुछ इलाकों में ही बचा है। एक सरकारी आंकड़े के मुताबिक वर्तमान में इसकी आबादी करीब 2,000 रह गई है।
 
आबादी घटने के कारण
एक समय था जब गंगा नदी में लाखों की तादाद में डॉल्फिन हुआ करती थीं, लेकिन जैसे-जैसे गंगा में जल प्रदूषण बढ़ा, बांध बनें और तस्करों ने अपने कारोबारी फायदे के लिए इनका शिकार करना शुरू किया, तो तेजी से इनकी संख्या घटने लगी। साल 2009 में गंगा डॉल्फिन के खत्म होने से चिंतित होकर भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय जल जीव घोषित किया और इसके बाद से ही इसकी संख्या में थोड़ी वृद्धि हुई है। इस समय गंगा में उत्तर प्रदेश के नरोरा और बिहार के पटना साहिब, भागलपुर के सुल्तानगंज इलाकों में ही गांगेय डाल्फिन बची हुई हैं।
 
नए अभियान की हुई शुरुआत
गंगा डॉल्फिन के बचाव के लिए इसी वर्ष ‘मेरी गंगा-मेरी डॉल्फिन 2023’ अभियान की शुरुआत की गई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अभियान का शुभारंभ करते हुए प्रदेश के लोगों से नदियों और तालाबों को साफ और शुद्ध रखने की गुजारिश की, जिससे इंसान के साथ दुनिया में मौजूद विभिन्न जीव प्रजातियों का भी अस्तित्व बचा रहे।
 
बचाव के उपाय
वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) और उत्तर प्रदेश वन विभाग डॉल्फिन की आबादी पर नजर रख रहे हैं। विशेषकर उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के गढ़ गंगा क्षेत्र में डॉल्फिन के जीवन और प्रजनन पर नजरें रखी जा रही हैं। गंगा में डॉल्फिन की सुरक्षा के लिए मुजफ्फरपुर बैराज से लेकर नरोरा बैराज तक फैली गंगा नदी के किनारे डॉल्फिन की सुरक्षा और संरक्षण के विशेष उपाय भी किए गए हैं। हालांकि इससे पहले भी भारत सरकार ने 1972 के भारतीय वन्यजीव संरक्षण कानून के दायरे में गंगा डॉल्फिन को शामिल किया था और फिर साल 1996 में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने भी डॉल्फिनों को विलुप्तप्राय जीव घोषित किया था। जब गंगा की सफाई के लिए मिशन क्लीन गंगा बनाया गया, तो भी इसमें डॉल्फिनों को ध्यान रखा गया और इनकी वृद्धि के लिए योजना बनाई गई।

देवेश प्रकाश

 

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