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हिंदोस्तान को ''ठगने'' जब आमिर ने रातों-रात घुमा दिया था इस शख्स को फोन, कैटरीना के डांस की इस अंदाज में की तारीफ

फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ को लेकर आमिर खान काफी एक्साइटेड हैं। इस फिल्म में काम करके वह इसलिए भी बहुत खुश हैं, क्योंकि अमिताभ बच्चन के साथ उन्हें स्क्रीन शेयर करने का मौका मिला।

हिंदोस्तान को ठगने जब आमिर ने रातों-रात घुमा दिया था इस शख्स को फोन, कैटरीना के डांस की इस अंदाज में की तारीफ
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दिवाली के तुरंत बाद अकेली फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ रिलीज हो चुकी है। यह फिल्म पहले से ही चर्चा में थी, क्योंकि यशराज बैनर की इस फिल्म से अमिताभ बच्चन, आमिर खान, कैटरीना कैफ जैसे नाम जुड़े थे।

सबसे पहले यह बताएं कि आप अब तक कई पीरियड फिल्में कर चुके हैं? ये नार्मल फिल्मों से कैसे अलग होती हैं?

मैंने चार पीरियड फिल्में की हैं, ‘लगान’, ‘रंग दे बसंती’, ‘मंगल पांडे-द राइजिंग’ और अब ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’। इन फिल्मों में काम करना एक्टर के लिए ही नहीं, फिल्म से जुड़े हर शख्स के लिए बड़ा मुश्किल होता है।

बहुत रिसर्च करनी होती है। सेट, कॉस्ट्यूम पर बहुत वर्क करना होता है। मैं एक्टर हूं तो मेरे लिए भी रिसर्च जरूरी है। फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ भी ऐसे दौर की इमेजनिरी स्टोरी है, जब अंग्रेजों का भारत पर कब्जा था। हमें इसके लिए उस दौर पर काफी रिसर्च करनी पड़ी।

फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ में अपने किरदार फिरंगी मल्ला को डिफरेंट बनाने के लिए क्या आपने कोई खास एफर्ट किए थे?

हमेशा कोशिश रहती है कि मेरा निभाया हर किरदार यूनीक हो। फिरंगी मल्ला भी बहुत अलग है। वह बड़ा तेज और शातिर किस्म का ठग है। उसके शरीर पर जो भी ड्रेसेस होती हैं, वह ठगी हुई होती हैं।

फिरंगी मल्ला की आंखों में मासूमियत जरूर नजर आती है, लेकिन उसके अंदर कोई भावनाएं नहीं हैं। इस किरदार के लुक को हटकर बनाने के लिए मैंने नोज रिंग पहनी। लेकिन मैंने जो नोज रिंग पहनी है, उसे खुद ही डिजाइन किया है।

दरअसल, मुझे याद था कि मेरा एक स्कूल का दोस्त था, जो नोज रिंग पहना करता था, मैंने उसका नंबर निकाला। फ्रेंड से नोज रिंग के बारे में बात की, लेकिन उसके पास कोई तस्वीर नहीं थी।

इसके बाद जितना मुझे याद था, उस हिसाब से नोज रिंग का डिजाइन पेपर पर बनाया, उसे ज्वेलर को दिया और नोज रिंग तैयार करवाई। नोज रिंग को कैरी करने के बाद ही मेरा लुक हटकर लगने लगा।

इसके अलावा मैंने फिल्म में अवधी भाषा बोली है तो लैंग्वेज का एक टोन भी सीखा। मैं अपने डायलॉग अलग से डायरी में लिख लेता हूं, जिससे मुझे आसानी से डायलॉग याद हो जाते हैं।

आपने अमिताभ बच्चन के साथ पहली बार स्क्रीन शेयर किया है। कैसे एक्सपीरियंस रहे?

मैं अमित जी के बारे में जितना कहूं, उतना कम होगा। शूटिंग के दौरान मेरी यही कोशिश रहती थी, उन्हें एक मिनट भी अकेला न रहने दूं। उनका साथ पाने के लिए मैं अपनी कुर्सी लेकर उनके साथ ही बैठ जाया करता था।

इस उम्र में भी नया सीखने का उनका जज्बा मुझे हैरान करता रहा। इस उम्र में उन्होंने फिल्म में बहुत खतरनाक स्टंट्स किए हैं। यह सब करना आसान नहीं होता है। वह सेट पर हमेशा डायलॉग याद करके आते हैं, उनका हर शॉट बहुत ही परफेक्ट होता था।

सुना है कि आपने भी फिल्म में 70 फुट गहरी छलांग लगाई?

70 फुट गहरी तो थी लेकिन शुक्र है मेरी छलांग समंदर में थी, इसीलिए चोट लगने की संभावना कम ही थी। अमित जी के सारे स्टंट्स बेहद रिस्की, डरावने थे, जो उन्होंने खुद किए। एक भारी वजन की तलवार जब राइट हैंड से संभली न जाए तो उन्होंने लेफ्ट हैंड का भी इस्तेमाल किया है।

आपने ‘दंगल’ में फातिमा के साथ कम किया था, तो ‘धूम-3’ में कैटरीना कैफ के साथ। इन दोनों एक्ट्रेसेस में आप क्या कितना बदलाव देखते हैं?

कैटरीना खूबसूरत, टैलेंटेड हैं। वह डांस कुछ ऐसे करती हैं कि इंसान हिप्नोटाइज हो जाए। यह अच्छी बात है कि कैटरीना बहुत सेलेक्ट मूवीज कर रही हैं, वह बहुत मिलनसार हैं। फातिमा में टैलेंट है, यही वजह है कि उनकी कास्टिंग ‘दंगल’ में हुई थी और अब वह ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ का हिस्सा हैं।

कहा जा रहा है कि आपकी फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ हॉलीवुड मूवी ‘पाइरेट्स ऑफ द कैरेबियन’ की कॉपी है? इस बारे में क्या कहेंगे?

कुछ समानता हो सकती है, लेकिन हमारी फिल्म नकल नहीं है। फिल्म ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ में जैक स्पेरो के कैरेक्टर से कई गुना बेहतर मेरा फिरंगी मल्ला का किरदार है। आप एक बार फिल्म देखिए, इस बात का अहसास हो जाएगा।

क्या आपके परिवार ने यह फिल्म देखी? बेटे आजाद का क्या रिएक्शन रहा?

आजाद अभी छोटा है। उसने मेरे और किरण (पत्नी) के साथ बैठकर फिल्म देखी। लेकिन उसे एक्शन, फाइटिंग देखना पसंद नहीं है। जब भी फाइटिंग सीक्वेंस फिल्म में आते थे तो आजाद की आंखों पर किरण अपना दुपट्टा रख देती थी। आजाद को फिल्म में फाइटिंग छोड़कर सबकुछ अच्छा लगा।

क्या आजाद को आपका स्टारडम समझ आने लगा है?

आजाद जब दो-तीन साल का था, उसे समझ में नहीं आता था कि डैडी जहां जाते हैं, वहां भीड़ क्यों होती है? इस वजह से कभी-कभी भीड़ देखकर आजाद रोने लगता था। लेकिन अब उसे अहसास होने लगा है कि ऐसा होना आम बात है।

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