Non Veg Restaurant: मुगलों के इस शाही खानसामा ने नॉन वेज में लगाया तड़का, करीम रेस्टोरेंट की रेसिपी का जादू आज भी बरकरार

Best Non Veg Restaurant in Delhi: दिल्ली के लोगों में फिल्म 'छावा' को देखकर मुगल शासकों के खिलाफ गुस्सा देखा जा रहा है, लेकिन आज हम मुगल शासकों की नहीं बल्कि मुगलों के ऐसे शाही खानसामा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने दिल्ली के लोगों को नॉन वेज के लिए पागल बना दिया।

By :  Amit Kumar
Updated On 2025-02-25 12:23:00 IST
दिल्ली के बेस्ट नॉन वेज रेस्तरां में करीम रेस्तरां भी सबसे आगे। प्रतीकात्मक तस्वीर

Best Non Veg Restaurant in Delhi: छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटे छत्रपति संभाजी महाराज की कहानी पर बनी फिल्म 'छावा' को देखकर दर्शक बेहद भावुक नजर आ रहे हैं। औरंगजेब ने जिस तरह से संभाजी महाराज को यातनाएं देकर मौत के घाट उतारा, वो बर्दाश्त के बाहर है। यही वजह है कि फिल्म देखने के बाद कुछ लोग मुगल शासकों के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। मांग की कि मुगल शासकों के नाम पर बनी सड़कों और पार्कों का नाम बदला जाना चाहिए। लेकिन, आज हम मुगलों की नहीं बल्कि मुगलों के एक शाही खानसामा की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने मुगली व्यंजनों का स्वाद आम लोगों तक पहुंचा दिया। नीचे जानिये दिल्ली के आखिरी मुगल शासक बहादुरशाह जफर के इस शाही खानसामा की पूरी कहानी...

दिल्ली के आखिरी मुगल शासक का शाही खानसामा कौन

बहादुरशाह जफर दिल्ली के आखिरी मुगलशासक रहे। उनके शाही खानसामा करीमुद्दीन मुगल शासकों के लिए खाना पकाते थे। जब बहादुरशाह जफर की बाहशाही खत्म हुई, तो उनके शाही खानसामा करीमुद्दीन ने अपना काम शुरू करने की योजना बनाई। उन्हें खाना पकाने के अलावा कुछ भी नहीं आता था, लिहाजा उन्होंने ढाबा खोलने की योजना बनाई। उन्होंने जिंदगी भर जो भी कमाया, उसे इस व्यवसाय में लगा दिया।

उन्होंने चांदनी चौक पर 1913 में करीम नाम से ढाबा खोला। शुरू में आलू के साथ मटन, दाल और रुमाली रोटी मिलती थी। धीरे-धीरे लोगों के यहां आने का सिलसिला शुरू हुआ और कुछ ही समय में यह खाने-पीने की पसंदीदा जगह बन गई। नतीजा यह हुआ कि करीम ढाबा अब करीम रेस्टोरेंट में बदल गया।

करीम रेस्तरां मुगलई खाने के लिए खासा प्रसिद्ध
मुगलई रेसिपी में कोई भी छेड़छाड़ नहीं

करीमुद्दीन के वशंजों ने भी इस व्यवसाय को जारी रखा। मीडिया रिपोर्ट्स में करीम्स के सांझेदार ऐवाज आसिफ के हवाले से बताया गया कि यहां के खाने में मुगलई रेसिपी में बिल्कुल भी बदलाव नहीं किया गया है। जिस तरह से मुगल शासकों के लिए खाना पकाया जाता था, उसी तरह खाना पकाया जाता है। हालांकि कुछ डिशेज में अनूठा प्रयोग भी सफल ट्राई किया।

उन्होंने बताया कि करीम्स के आज पूरे देश में 50 से ज्यादा आउटलेट हैं। हमारा लिए सबसे बड़ी चुनौती 160 साल पुराने टेस्ट को बरकरार रखना है और अभी तक सफल रहे हैं। साथ ही, फ्रेंचाइची के तहत खुलने वाले आउटलेट पर भी खाने की एकरूपता बनाए रखना सुनिश्चित करते हैं। उनके दावों को देखें तो अगर आप मुगलई रेसिपी का असल स्वाद लेना है, तो एक बार यहां की विजिट अवश्य करनी चाहिए।

ये भी पढ़ें: दिल्ली के बेस्ट ढाबा जो देसी तड़का लगाने में अव्वल, दाल तड़का का स्वाद लेने बार-बार आएंगे

अंग्रेजों ने दी बहादुरशाह जफर को यातनाएं

फिल्म छावा देखने के बाद मुगल शासकों के लिए लोगों का गुस्सा भड़क रहा है, लेकिन दिल्ली के आखिरी मुगल शासक बहादुरशाह जफर पर यह बात लागू नहीं होती है। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो बहादुरशाह जफर ने 1857 की क्रांति में भारतीयों का नेतृत्व किया। अंग्रेजों ने जब उन्हें पकड़ा तो कड़ी यातनाएं दी। भूख लगी तो उनके दो बेटे का सिर काटकर खाने की प्लेट में परोस दिया गया। बावजूद इसके वो अंग्रेजों के आगे नहीं झुके। इसके बाद उन्हें बर्मा के रंगून भेज दिया, जहां 7 नवंबर 1862 को निधन हो गया।

Similar News