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First Assembly Election in Delhi: देश की राजधानी दिल्ली में पहली बार हुए विधानसभा चुनाव का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है। आजादी के बाद के एक ऐसा दौर भी था, जब 37 सालों तक दिल्ली में न विधानसभा का चुनाव और न ही कोई सीएम रहा। पढ़िए विस्तृत खबर...

Delhi Assembly History: मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद सबके जेहन में एक सवाल उठने लगा कि क्या अब दिल्ली में फिर से राष्ट्रपति शासन लागू हो जाएगा। गिरफ्तारी के लगभग डेढ़ महीने बाद भी अभी तक केजरीवाल ने न ही सीएम पद से इस्तीफा दिया और न ही राष्ट्रपति शासन लगा। क्या आप जानते हैं कि आजादी के बाद एक समय ऐसा भी था, जब 37 साल तक दिल्ली में कोई भी सीएम नहीं रहा। अगर यह कहानी आपको नहीं पता है, तो चलिए इस आर्टिकल में आपको सिलसिलेवार तरीके से समझते हैं...

दिल्ली में 37 साल तक नहीं हुआ विधानसभा का चुनाव 

दिल्ली में पहली विधानसभा 17 मार्च, 1952 को स्थापित की गई थी। इसके बाद दिल्ली का पहला सीएम चौधरी ब्रम्ह प्रकाश बने थे। उनका पहला कार्यकाल 1952 से 1955 तक रहा। फिर उन्हें पद से हटा दिया गया। दूसरे सीएम गुरुमुख निखिल सिंह बने। जिनका कार्यकाल 1955 से 1956 तक रहा। पहले और दूसरे सीएम कांग्रेस पार्टी के थे। इसके बाद दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के साथ ही विधानसभा को समाप्त कर दिया गया था। इसके बाद दिल्ली में लगभग 37 साल तक विधानसभा का चुनाव नहीं हुआ, यानी 1956 के बाद 1993 तक दिल्ली में कोई चीफ मिनिस्टर नहीं था।

आजादी के बाद राज्यों को तीन क्षेणी में बांटा गया था

रिपोर्ट्स की मानें तो आजादी के बाद भारतीय संविधान के तहत देश में तीन तरह के राज्यों की व्यवस्था की गई थी। जिसमें कैटेगरी A में 9 राज्यों को रखा गया था। कैटेगरी B में 8 राज्यों को रखा गया था। इसके बाद कैटेगरी C में 10 राज्यों को शामिल किया गया था। कैटेगिरी A में शामिल राज्यों को चुने गए राज्यपाल और विधानसभा के द्वारा चलाया जाने की व्यवस्था थी। वहीं, कैटेगरी B के राज्यों को प्रेसिडेंट के द्वारा चुने गए राज प्रमुख और जनता द्वारा चुनी गई विधानसभा के द्वारा चलाया जाना था। तीसरी यानी कैटेगरी C में शामिल राज्यों को शासन प्रेसिडेंट द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर के द्वारा चलाया जाने की व्यवस्था थी।

सी कैटेगरी में शामिल थी दिल्ली 

दिल्ली को सी कैटेगरी में रखा गया था। दिल्ली विधानसभा में उस समय 48 मेंबर होते थे। चीफ कमिश्नर को शासन चलाने में सहायता देने के लिए मंत्री परिषद की स्थापना की गई थी। 1955 में राज्य पुनर्गठन की स्थापना हुई। इसके बाद 1956 में फजल अली कमीशन की सिफारिशों के आधार पर दिल्ली से कैटेगरी C स्टेट का दर्जा छीन लिया गया। जिसके बाद विधानसभा भंग करनी पड़ी और दिल्ली को यूनियन टेरिटरी बना दिया गया। इसी कमीशन की सलाह पर दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन एक्ट के द्वारा दिल्ली म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की स्थापना हुई।

विधानसभा बनाए जाने की उठी मांग

दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल के लेफ्टिनेंट गवर्नर दिल्ली की शासन व्यवस्था के टॉप पर होते थे। इसके बाद दिल्ली में विधानसभा बनाए जाने  की मांग उठने लगी। लेकिन इसके बदले में दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल की स्थापना की गई। मेट्रोपॉलिटन काउंसिल के 56 सदस्य जनता के द्वारा चुने जाते थे और 5 सदस्यों को राष्ट्रपति नियुक्त करते थे। ये बॉडी लेफ्टिनेंट गवर्नर को सलाह दे सकती थी। इसलिए विधानसभा बनाए जाने की मांग और तेज हो गई। इसके बाद 1987 में सरकारिया कमेटी का गठन किया गया। इसका काम प्रशासनिक सुधार करना था। 14 दिसंबर 1989 को इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिसमें दिल्ली विधानसभा बनाने का प्रस्ताव दिया गया था।  

1991 में दिल्ली को बनाया गया केंद्र शासित प्रदेश 

रिपोर्ट्स के मुताबिक 1991 में संसद में 69वां संविधान संशोधन के बाद दिल्ली को स्पेशल स्टेटस देकर National Capital Territory घोषित किया गया। लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासक बनाया गया। संवैधानिक बदलावों के लिए नेशनल कैपिटल टेरिटरी (NCT act, 1991) एक्ट पास किया गया। इसी नए कानून के तहत 1993 में दिल्ली में पहली बार विधानसभा के चुनाव हुए। जिसमें बीजेपी ने बहुमत हासिल करते हुए सरकार बनाई। 2 दिसंबर 1993 में मदन लाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, जो 1996 तक रहे। इसके बाद 26 फरवरी 1996 में बीजेपी के ही साहिब सिंह वर्मा सीएम बने, ये 1998 तक इस पद पर रहे। 12 अक्टूबर 1998 को बीजेपी की सुषमा स्वराज बनी जो कि 3 दिसंबर 1998 तक रहीं। इनका कार्यकाल लगभग तीन महीने का रहा।

1998 में शीला दीक्षित बनीं सीएम 

इसके बाद कांग्रेस की शीला दीक्षित 3 दिसंबर 1998 से 28 दिसंबर 2013 तक मुख्यमंत्री रहीं। तब तक 2012 में आम आदमी पार्टी का भी जन्म हो चुका था। इसके बाद दिल्ली की सत्ता सीएम अरविंद केजरीवाल की हाथ में चली गई। अरविंद केजरीवाल पहली बार 28 दिसंबर 2013 को दिल्ली के सीएम बने। लेकिन 49 दिन बाद ही 14 फरवरी 2014 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। फिर दिल्ली में एक साल तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा। 2015 में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने 70 में से रिकॉर्ड 67 सीटें जीत कर भारी बहुमत हासिल किया। 14 फरवरी 2015 को वे दोबारा दिल्ली के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए। इसके बाद 2020 में विधानसभा चुनाव में AAP ने 62 सीटों पर जीतकर तीसरी बार सीएम बने हैं।

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