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विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम और मध्यप्रदेश से स्वास्थ्य अधिकारियों की एक टीम ने भोपाल एम्स का दौरा किया। यहां उन्हें स्किल लैब और नर्सिंग लैब की व्यवस्थाएं दिखाई गई।

भोपाल। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का दिल्ली से आया प्रतिनिधिमंडल और मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य अधिकारियों के एक दल ने भोपाल एम्स का दौरा किया। 

दरअसल, नई दिल्ली स्थित कंट्री ऑफिस और लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रतिनिधि भोपाल एम्स के स्किल लैब और नर्सिंग कॉलेज पहुंचे। इस दौरे का उद्देश्य प्रदेश में प्री-सर्विस नर्सिंग शिक्षा को मजबूत करना था। प्रतिनिधिमंडल में डॉ. हिल्डे डी ग्रेव, रक्षिता खानिजौ और डॉ. राजश्री बजाज शामिल थीं। 

एम्स के कार्यपालक निदेशक डॉ. अजय सिंह ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया। इसके बाद भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में नर्सों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की। डॉ. अजय सिंह ने प्रतिनिधियों को भोपाल एम्स द्वारा नर्सिंग के क्षेत्र में हासिल कुछ उपलब्धियों के बारे में जानकारी दी। 

1. नेतृत्व वाली क्लिनिक की स्थापना। 
2. करुणामय देखभाल के लिए करुण्या पहल।  
3. नर्सिंग छात्रों को उनके कैरियर के लिए तैयार करने के लिए एक निकास मॉड्यूल, बीएससी (नर्सिंग) कार्यक्रम के लिए बढ़ी हुई प्रवेश क्षमता। 
4. योग्यता-आधारित नर्सिंग पाठ्यक्रम की शुरूआत और करुणामय और उपशामक देखभाल नर्सिंग पर स्नातकोत्तर फेलोशिप पाठ्यक्रम के बारे में जानकारी दी। 

डॉ. राघवेंद्र कुमार विदुआ ने ग्रीस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में किया भारत का प्रतिनिधित्व 
एम्स भोपाल के फोरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी विभाग में प्रोफेसर डॉ. राघवेंद्र कुमार विदुआ ने एथेंस, ग्रीस में आयोजित 26वें त्रिवार्षिक इंटरनेशनल एकेडमी ऑफ लीगल मेडिसिन सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 

पोस्टमॉर्टम शुक्राणु पुनर्प्राप्ति पर अध्ययन प्रस्तुत किए 
तीन दिवसीय सम्मेलन का आयोजन 21 से 23 मई, 2024 तक किया गया। इस सम्मलेन में डॉ. विदुआ ने पोस्टमॉर्टम शुक्राणु पुनर्प्राप्ति पर किए गए एक अध्ययन के परिणाम प्रस्तुत किए, जो भारत में अपनी तरह का पहला और पुनर्प्राप्ति की संख्या के मामले में सबसे बड़ा है। भारतीय समाज में इस प्रक्रिया की स्वीकार्यता और नैतिक विचारों का आकलन करने के लिए डॉ. विदुआ ने अपनी टीम के साथ लगभग 600 व्यक्तियों के विचारों को शामिल किया। 

यह शोध परियोजना 2022 में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), नई दिल्ली से वित्त पोषण के साथ शुरू की गई थी। विशेष रूप से 47.22% मामलों में जीवित शुक्राणु प्राप्त किए गए, जो आईवीएफ प्रक्रियाओं में उनके उपयोग की क्षमता को प्रदर्शित करता है। एम्स भोपाल ने शुक्राणु पुनर्प्राप्ति के लिए एक नई विधि विकसित की है, जो आकारिकी और गतिशीलता से समझौता किए बिना इष्टतम मात्रा और गुणवत्ता सुनिश्चित करती है। इस नई पद्धति के पेटेंट के लिए आईसीएमआर को आवेदन भेजा जा चुका है और जल्द ही इसके पेटेंट मिलने की सम्भावना है। एम्स भोपाल की टीम आईसीएमआर के समर्थन से एक मानव सेमिनल बैंक स्थापित करने की योजना बना रही है।

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