Datasingh border: किसानों को हटाने के लिए चलाए आंसू गैस के गोले, दागी प्लास्टिक की गोलियां 

Police and paramilitary force personnel are ready at Dara Singh border
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दाता सिंह वाला बोर्डर पर मुस्तैद पुलिस व पैरामिलिट्री फोर्स के जवान। 
जींद में दातासिंह वाला बॉर्डर पर बुधवार को एक बार फिर से किसान तथा जवान आमने-सामने हो गए। पुलिस ने आंसू गैस के गोले व प्लास्टिक की गोली दागी, जिससे किसान घायल हो गए।

Jind: दातासिंह वाला बॉर्डर पर बुधवार को एक बार फिर से किसान तथा जवान आमने-सामने हो गए। किसान दिल्ली कूच के लिए आमादा थे तो पुलिस और पैरामिल्ट्री के जवान उन्हें रोकने के लिए भरसक प्रयास करते रहे। इस दौरान कभी हालात बेकाबू हुए तो कभी नियंत्रण में रहे। पंजाब से आए किसानों ने बॉर्डर सड़क पर लगी कीलों को उखाड़ना शुरू किया तो पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। जिस पर किसानों ने आंसू गैस के गोलों पर गीली बोरियां डालनी शुरू कर दी। इस दौरान दावा किया कि जवानों ने प्लास्टिक की गोलियां भी किसानों पर दागी और 20 किसान घायल हुए। जबकि तीन जवान भी घायल हो गए। घायल किसानों को पंजाब के अस्पताल में तो घायल पुलिसकर्मियों को नरवाना अस्पताल में भर्ती करवाया। दातासिंह वाला बॉर्डर पर पूरा दिन गहमागहमी भरा माहौल बना रहा।

हवा का रूख हरियाणा की तरफ होने के चलते बढ़ी परेशानी

पुलिस द्वारा किसानों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे तो गए लेकिन इसका ज्यादा प्रभाव नहीं रहा। क्योंकि हवा का रूख हरियाणा की तरफ होने के चलते धुआं हरियाणा की तरफ ही आने लगा। जिसके चलते जवानों को भी परेशानी हुई। वहीं किसानों की आवाजाही रोकने के लिए खेतों में पानी छोड़ा गया। जब खेतों में आंसू गैस के गोले दागे गए तो वो निष्क्रिय हो गए।

पुलिस ने उड़ाए ड्रोन तो किसानों ने ड्रोन गिराने के लिए उड़ाई पतंग

पुलिस द्वारा ड्रोन के माध्यम से किसानों पर निगरानी रखे जाने का प्रयास किया गया लेकिन किसानों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया। जैसे ही कोई ड्रोन किसानों की तरफ आता दिखता तो किसान पतंग उड़ा कर उसे गिराने में लग जाते। दातासिंह वाला बोर्डर पर मौजूद जिन किसानों के खेत हैं, उन्हें बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। क्योंकि पुलिस द्वारा इन किसानों को खेतों में जाने नहीं दिया जा रहा। जैसे ही किसान अपने खेतों की तरफ रूख करते हैं तो पुलिस प्रशासन द्वारा लाठियां बरसा कर उन्हें भगा दिया जाता है। ऐसे में किसानों का कहना है कि हमारे ही खेत हैं और हमें ही लठ मारे जा रहे हैं।

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