Delhi News: 'स्वच्छ भारत अभियान' चढ़ा वोटबैंक की राजनीति की भेंट, टॉप 20 शहरों की लिस्ट में भी शामिल नहीं हो सकी दिल्ली

Swachh Bharat Abhiyan became a victim of politics in Delhi
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दिल्ली में राजनीति की भंट चढ़ा स्वच्छ भारत अभियान।
Delhi News: स्वच्छ भारत अभियान दिल्ली से शुरू हुआ लेकिन अब तक स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट में टॉप 20 की लिस्ट में भी शामिल नहीं हो सकी। दिल्ली की स्वच्छता वोट बैंक की राजनीति का शिकार हो जाती है।

Delhi News: स्वच्छ भारत अभियान, जो दिल्ली से शुरू तो हुआ लेकिन दिल्ली में अब तक लागू नहीं हो पाया है। दिल्ली का स्वच्छ भारत अभियान वोट बैंक के लिए राजनीति की भेंट चढ़ गया। स्वच्छ भारत अभियान से प्रेरणा लेकर सूरत और इंदौर देश के सबसे स्वच्छ शहरों की लिस्ट में शुमार हो गए। वहीं दिल्ली टॉप 10 की लिस्ट तो क्या टॉप 20 की लिस्ट में भी शामिल नहीं हो सकी क्योंकि दिल्ली में कूड़ा फैलाने वालों को जागरूक करने की कोशिश की जाती है लेकिन दंड को लेकर कोई प्रावधान नहीं है।

दिल्ली को गंदा करने वालों के खिलाफ क्यों नहीं होती कार्रवाई

दिल्ली को स्वच्छ रखने के लिए कूड़े के निस्तारण को लेकर निगम की तरफ से चार हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं। लोगों से इसके एवज में कोई यूजर चार्ज वसूल नहीं किया जाता और न ही गंदगी फैलाने वालों पर कार्रवाई की जाती। इसकी वजह है कि राजनेता नहीं चाहते कि उनके हाथों से वोट बैंक खिसक जाए।

निगम का राजनीतिक नेतृत्व गंदगी के लिए जुर्माने की जगह नागरिकों को जागरूक करने पर ज्यादा जोर देता है। इसके कारण दिल्ली को गंदा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती और अगर होती भी है, तो मात्र खानापूर्ति बनकर साबित होती है। ऐसे में जागरूकता अपनी जगह ठीक है लेकिन इसके लिए कार्रवाई की जानी भी बेहद जरूरी है।

लोगों को जागरूक होने की जरूरत

हर काम सरकार करे ऐसा तो मुमकिन नहीं है, ऐसे में लोगों को भी जिम्मेदार नागरिक बनने की जरूरत है। लोगों की जिम्मेदारी है कि वे गीला कूड़ा और सूखा कूड़ा अलग-अलग रखें। वहीं निकाय की जरूरत है कि लोगों को मजबूर करें कि लोग गीला कूड़ा और सूखा कूड़ा अलग करें। दिल्ली की गंदगी को लेकर परेशानी ये है कि लोग इसमें पहल नहीं कर रहे हैं और न ही नगर निगम उन्हें ये पहल करने के लिए जागरूक कर पा रहा है।

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अन्य निकायों की अपेक्षा जल्दी मिलता है फंड

इसके कारण दिल्ली नगर पालिका परिषद क्षेत्र को छोड़कर कोई भी इलाका ऐसा नहीं है, जो स्वच्छता की मिसाल बन रहा हो। इसके बारे में हर साल जारी होने वाली स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट से पता चलता है क्योंकि स्वच्छ सर्वेक्षण की रिपोर्ट में दिल्ली टॉप 10 तो टॉप 20 में भी शामिल नहीं हो पाई है। हालांकि हकीकत तो ये है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी है और इसके कारण केंद्र सरकार की तरफ से अन्य निकायों की अपेक्षा फंड जल्दी मिल जाता है। इसके बावजूद भी शासन और प्रशासन के साथ ही लोगों की कमी के कारण स्वच्छता का अभाव नजर आता है।

सफाई को गंभीरता से ले रहे मात्र 12.5 फीसदी लोग

जमीनी स्तर पर स्वच्छता की बात करें, तो दिल्ली में दिल्ली नगर निगम, दिल्ली कैंट और एनडीएमसी में कुल 272 वार्ड हैं। इसमें से 34 वार्ड ऐसे हैं, जो गीला कूड़ा और सूखा कूड़ा अलग कर रहे हैं। इसके अनुसार देखा जाए तो लगभग 12.5 फीसदी लोग ही साफ-सफाई को गंभीरता से ले रहे हैं।

वहीं बाकी के 88 फीसदी वार्डों में रहने वाले लोग अपने घर और दुकानों आदि से निकलने वाले कूड़े को एक ही डस्टबिन में रखते हैं। यानी प्लास्टिक, पॉलीथिन, सब्जी के छिलके और कागज आदि एक ही जगह रख देते हैं। इसके कारण जिस कूड़े को खाद या बिजली बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था, उसे कूड़े के पहाड़ों पर ले जाया जाता है।

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दिल्ली में इन जगहों पर हैं कूड़े के पहाड़

कूड़े के पहाड़ों की बात की जाए तो दिल्ली में तीन जगह पर बड़े कूड़े के पहाड़ हैं। ये भलस्वा, गाजीपुर और ओखला इलाके में हैं। इन कूड़े के पहाड़ों के हालात ऐसे हैं कि लोग जब इस इलाके के पास से गुजरते हैं, तो कूड़े के पहाड़ों के ऊपर मंडराती चीलें और वहां की असहनीय बदबू दिल्ली की छवि को खराब करती हैं। इन पहाड़ों के कारण दिल्ली की हवा भी खतरनाक हो रही है। यहां से उड़कर आसपास के इलाकों में जाने वाली धूल मिट्टी और अक्सर लगने वाली आग का धुआं दिल्ली को और भी प्रदूषित करता है। इसके कारण इन इलाकों के आसपास रहने वाले लोगों को भी काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

2028 तक खत्म हो पाएंगे कूड़े के पहाड़

कूड़े के इन पहाड़ों को खत्म करने का काम भी राजनीति की भेंट चढ़ गया है। कूड़े के पहाड़ों को खत्म करने के लिए 2019 में अभियान शुरू हुआ और तीन महीने के लिए बंद रहा क्योंकि कूड़े का निस्तारण करने के लिए लगाई गई एजेंसी की टेंडर प्रक्रिया भी राजनीतिक खींचतान के कारण पूरी नहीं हो पाई।

एमसीडी की राजनीतिक धरपकड़ के कारण स्थाई समिति का गठन नहीं हो पाया और टेंडर होने के बावजूद भी समिति के अभाव के कारण एजेंसी के चयन का काम नहीं हो पाया। इसके बाद दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप करने के बाद तीन महीने में ये काम शुरू हुआ। अब भी इन पहाड़ों पर 160 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा कूड़ा पड़ा है। जो कूड़े के पहाड़ 2024 में खत्म होने थे, अब वो दिसंबर 2028 तक खत्म हो पाएंगे।

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