Raksha Bandhan 2024: दिल्ली एनसीआर का एकमात्र ऐसा गांव, जहां नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन, पढ़िये पीछे की दर्दनाक कहानी

rakshabandhan festival not celebrated in surana
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सुराना गांव में नहीं मनाया जाता है रक्षाबंधन पर्व।
Raksha Bandhan 2024: स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि अगर किसी ने रक्षाबंधन पर्व मनाने का प्रयास किया, तो उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती है। पढ़िये इसके पीछे की कहानी...

देशभर में 19 अगस्त को रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम से मनाने की तैयारियां चल रही हैं। बहनें अपने भाइयों के लिए राखियां खरीद रही हैं, वहीं भाई भी अपनी प्यारी बहनों के लिए गिफ्ट खरीद रहे हैं। भाई और बहन के बीच अटूट प्रेम की सुगंध हर जगह धीरे-धीरे फैल रही हैं। लेकिन, दिल्ली-एनसीआर का एक ऐसा गांव भी है, जहां सालों से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया गया है। यहां बहनें शादी के बाद रक्षाबंधन पर मायके नहीं आती हैं और न ही भाई उनकी ससुराल जाकर अपनी कलाई पर राखी नहीं बंधवाते हैं। आइये बताते हैं कि इसके पीछे की कहानी...

दिल्ली से सटे गाजियाबाद के मुरादनगर में सुराना गांव है। यहां सालों से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जा रहा है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि अगर किसी ने रक्षाबंधन पर्व मनाने का प्रयास किया, तो उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी हो जाती है। कुछ साल पहले भी एक बच्चा अपने मामा के घर गया था, जहां उसकी ममेरी बहन ने राखी बांध दी। राखी बांधते ही उसकी तबीयत खराब हो गई। किसी को कारण समझ नहीं आ रहा था। जब बुजुर्गों को बताया तो पूछा कि किसी ने राखी तो नहीं बांधी है। जब जवाब मिला कि हां बच्ची ने बांध दी है, तो तुरंत राखी तोड़ने को बोल दिया। ग्रामीणों का कहना है कि राखी तोड़ने के दो घंटे बाद ही बच्चे की तबीयत खुद से ठीक हो गई। ग्रामीणों का कहना है कि अगर राखी न तोड़ी जाती, तो बड़ा नुकसान हो सकता था। ग्रामीण कहते हैं कि आज हमारे बच्चे भले ही पढ़ लिखकर नौकरी के लिए दूसरे शहरों में चले गए हैं, लेकिन आज भी हमारी बात को मानकर रक्षाबंधन नहीं मनाते हैं।

आखिर क्या है इसके पीछे की कहानी

मीडिया से बातचीत में 77 वर्षीय राज कुमार नामक ग्रामीण ने बताया कि 11 वीं सदी में इस गांव को सोनगढ़ गांव के नाम से जाना जाता था। उस वक्त पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोनगढ़ गांव आए थे। उन्होंने हिंडन नदी के किनारे आसरा लिया था। जब यह बात मोहम्मद गौरी को पता चली तो इस गांव पर हमला कर दिया। उस दिन रक्षाबंधन थी और गांव के सभी वीर जवान गंगा स्नान के लिए गए थे। मोहम्मद गौरी के सैनिकों ने महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को निर्दयी तरीके से मार दिया। रक्षाबंधन के दिन पूरा गांव उजड़ गया था। तब से आज का दिन, छाबड़िया गौत्र के किसी भी शख्स ने रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया है।

जसकौर की संतानों ने सुराना गांव को बसाया

ग्रामीणों का कहना है कि मोहम्मद गौरी के सैनिकों ने जब गांव पर आक्रामण किया था, उस वक्त जसकौर नामक महिला अपने मायके गई हुई थी, जिसकी वजह से उसकी जान बच गई। उस वक्त जसकौर गर्भवती थी। उन्होंने दो बच्चों को जन्म दिया, जिसे बाद में छबड़ा में बैठाकर अपनी ससुराल सोनगढ़ गांव आ गई थी। इन्हीं दोनों बच्चों ने बढ़ा होकर इस पूरे गांव को बसाया। यहां के अधिकांश लोग छाबड़िया गौत्र से हैं। गांव से बाहर रहने वाले छाबड़िया गौत्र के लोग भी रक्षाबंधन पर्व नहीं मनाते हैं। सुराना गांव में तो रक्षाबंधन पर पूरी तरह से सन्नाटा छाया रहता है।

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