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Prashant Kishor : जन सुराज अभियान के संचालक प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन एक करोड़ लोगों के साथ अपनी पार्टी लांच करने की बात कही है। पार्टी बनाने के पहले वह बिहार में 650 से अधिक दिनों से यात्रा कर रहे हैं। 

Prashant Kishor : एक समय में राजनीति रणनीति बनाने का काम करने वाले प्रशांत किशोर बिहार में जल्द ही नई राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने वाले हैं। इसका आधिकारिर ऐलान भी उन्होंने कर दिया है कि 2 अक्टूबर को एक करोड़ आदमियों के साथ वह नई पार्टी को लॉन्च करेंगे। यानी प्रशांत किशोर ने 2014 के चुनाव में बीजेपी और मोदी के लिए रणनीति बनाने का काम किया था।

तब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। पीके ने इससे पहले 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी के लिए काम किया था। पीके ने देश भर के अलग-अलग राज्यों में कई दलों के लिए रणनीति बनाने और चुनाव जिताने का काम किया है। बिहार में वो खुद कई साल से मेहनक कर रहे हैं और अपना राजनीतिक दल बनाने जा रहे हैं।  

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पीके का दावा है कि अब तक जनसुराज पदयात्रा राज्य के 235 ब्लॉकों के 1319 पंचायतों के 2697 गांवों से होकर गुजर चुकी है। पीके का कहना है कि राज्य में कुशासन से परेशान बिहार की जनता बदलाव चाहती है। लोगों को जन सुराज में एक विकल्प दिख रहा है। उन्होंने 2025 में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। इससे पहले वो लिटमस टेस्ट के लिए अगले कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा उपचुनाव में भी किस्मत आजमाएंगे। इसकी घोषणा उन्होंने कर दी है। आज हम यह देखेंगे कि पीके बिहार में अपना वोट बैंक किसे देख रहे हैं। साथ ही बिहार की राजनीतिक के कई पहलुओं पर नजर डालेंगे। 

पीके की पार्टी में कौन शामिल हो रहे हैं?
पार्टी की पार्टी बनाने से पहले उनके साथ पांच बार सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे आरजेडी नेता देवेंद्र प्रसाद यादव, जेडीयू के पूर्व सांसद मुनाजिर हसन, आरजेडी के पूर्व एमएलसी रामबली सिंह चंद्रवंशी,पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की पोती डॉक्टर जागृति आ चुके हैं। इनके साथ ही कुछ पूर्व नौकरशाहों ने भी पीके का दामन थाम लिया है। पीके दरअसल बिहार की राजनीति में एनडीए और महागठबंधन के बाद खुद को तीसरे विकल्प के रूप में पेश करना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें इन्ही दलों के नेताओं से आस है। वो इन नेताओं के जरिए इन दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने की तैयारी कर रहे हैं। 

बिहार की राजनीति में जाति का कितना दखल?
बिहार में पूरी राजनीति जाति और जातियों के गठजोड़ के आसपास घूमती है। उस बिहार में पीके युवाओं, बुजुर्गों, दलितों, महादलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों, मुस्लिमों और महिलाओं की हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं। मतलाब साफ है कि बिहार के इस वोट बैंक पर पीके की खास नजर हैं इनके भरोसे पीके बिहार की राजनीति में कुछ बड़ा करना चाहते हैं। उन्होंने घोषणा की है कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव में कम से कम 40 मुसलमानों को टिकट देगी।

इसका मतलब है कि मुस्लिम वोटों को पाने के लिए पार्टी मं मुसलमानों को खूब मौका दिया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने कहा है कि पार्टी चलाने वाली 25 लोगों की टीम में भी 4-5 मुसलमान रखे जाएंगे। इसी तरह की घोषणाएं उन्होंने महिलाओं के लिए भी की है। यहां वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राह पर चलते दिख रहे हैं। वो भी महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और उनको आरक्षण देने का दांव चलते रहे हैं।

पीके ने महिलाओं को भी 40 टिकट देने का वादा किया है। इस तरह से पीके ने आरजेडी और जेडीयू के वोट बैंक में सेंधमारी की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। बिहार में मुसलमान आरजेडी के साथ खड़े हैं और नीतीश की लोकप्रियता महिलाओं में अधिक मानी जाती है। 

पटना में महिलाओं के लिए किया सम्मेलन 
प्रशांत किशोर ने अपनी पदयात्रा के दौरान यह बात बार-बार कही है कि बिहार के लोग अब किसी के बेटा को मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं बल्कि अपने बेटे के भविष्य के लिए वोट देंगे। इस तरह वो आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव पर निशाना साधते रहे और परिवारवाद  पर हमला बोलते रहे। वहीं पटना में आयोजित महिलाओं के सम्मेलन में उन्होंने अपनी पत्नी डॉक्टर जान्हवी दास का परिचय जनता से करवाया। इससे कयास लगाए जा रहे हैं कि पीके की पत्नी भी राजनीति में आ सकती हैं। 

आखिर प्रशांत किशोर की विचारधारा क्या है?
पीके ने अपनी पदयात्रा गांधी जयंती के दिन शुरू की थी और पार्टी की घोषणा भी गांधी जयंती के दिन ही करने जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपनी विचारधारा और पार्टी की नीतियों को सार्वजनिक नहीं किया है। लेकिन अपने संबोधनों में वो गांधी, आंबेडकर, लोहिया और जेपी की विचारधारा की बात करते रहते हैं। जिस अनुपात में पीके मुसलमानों को टिकट देने की बात कर रहे हैं। उससे लोहियावादी समाजवादियों के उस नारे की झलक मिल रही है, 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उतनी उसकी भागीदारी'।

इसके अलावा प्रशांत अपने भाषणों में पलायन, गरीबी, बेरोजगारी जैसे मुद्दे उठाकर लोगों से जुड़ने की कोशिश करते नजर आते हैं। बिहार में दूसरे दलों का वोट बैंक तोड़कर अपनी राजनीति चमकाने की कवायद पहले भी कई पार्टियों ने की है, लेकिन इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली है। अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि बिहार की चुनावी राजनीति में प्रशांत किशोर कितने सफलता मिलती है।

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