सतीश सिंह का लेख : एसवीबी के डूबने का असर भारत में नहीं
इसमें दो राय नहीं है कि एसवीबी ने भारतीय स्टार्टअप्स को कर्ज दिये हैं और भारतीय स्टार्टअप्स ने एसवीबी में पैसे भी जमा किए हैं। फिर भी, यह मानना मुनासिब होगा कि भारत के वैसे स्टार्टअप, जिनका कारोबार अमेरिका में है उन पर एसवीबी के डूबने का आंशिक असर पड़ सकता है। दोनों अमेरिकी बैंकों के डूबने का कोई भी प्रतिकूल प्रभाव भारतीय बैंकों पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारतीय बैंकों का कारोबार एसवीबी या सिग्नेचर बैंक के साथ नहीं है। भले इन दोनों अमेरिकी बैंकों के डूबने का भारत पर न्यून प्रभाव पड़े, लेकिन यह सच है कि इसका प्रभाव कुछ देशों पर जरूर पड़ेगा, क्योंकि अनेक देश के स्टार्टअप एसवीबी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए थे।

सतीश सिंह
अमेरिका के दो बड़े बैंक सिलिकॉन वैली बैंक (एसवीबी) और सिग्नेचर बैंक के बंद होने के बाद भारतीय स्टार्टअप और भारतीय बैंकों पर इसका कितना और कैसा प्रभाव पड़ेगा, के बारे में भारत में आकलन करने की कोशिश की जा रही है? एसवीबी मुख्य तौर पर स्टार्टअप ग्राहकों से जमा लेने के अलावा स्टार्टअप कंपनियों, उद्यम पूंजीपतियों और प्रौद्योगिकी कंपनियों को कर्ज मुहैया करवाने का काम करता था,जबकि सिग्नेचर बैंक जमा लेने के अलावा मुख्य तौर पर रियल एस्टेट क्षेत्र को ऋण देने का काम करता था। सिग्नेचर बैंक के पास क्रिप्टो करेंसी के ज्यादा स्टॉक थे, जिसके जोखिम आजकल लगातार बढ़ रहे हैं। बैंक का जोखिम सीमा से अधिक न बढ़ जाये, इसलिए सरकार ने इसे बंद कर दिया।
एसवीबी की शुरुआत 1983 में कैलिफोर्निया के सैंटा क्लारा में हुई थी। वर्ष 2021 तक इससे 50 प्रतिशत अमेरिकी उद्यम-समर्थित स्टार्टअप जुड़े हुए थे। स्टार्टअप एवं टेक कंपनियों के अलावा, इसने वीओएक्स मीडिया जैसी मीडिया कंपनियों को भी सेवा मुहैया कराई। कई क्रिप्टोकरेंसी कंपनियों की रकम भी इस बैंक में जमा थी। यह बैंक कर्ज देने के अलावा निवेश के माध्यम से मुनाफा कमाता था। इस बैंक के डूबने के प्रमुख कारकों में, टेक कंपनियों के शेयरों की कीमत में भारी कमी आना, महंगाई के बढ़ने के कारण फेडरल रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में भारी इजाफा करना आदि है। एसवीबी के अधिकांश ग्राहक बड़े टेक कारोबारी हैं, जब इनके शेयरों की कीमत में गिरावट आई तो इन्हें कारोबार करने के लिए ज्यादा नकदी की जरूरत आन पड़ी, जिसे पूरा करने के लिए ये अपने बैंक जमा से निकासी करने लगे। इसके अलावा लाभ नहीं अर्जित करने वाली कंपनियों को दूसरे जगह से उधारी मिलना बंद हो गया, जिसके कारण वे अपने कारोबार को चलाने के लिए अपनी जमा-पूंजी की निकासी बैंक से करने लगे। एसवीबी से जब अधिक निकासी की जाने लगी तो बैंक को ग्राहकों की नकदी जरूरतों को पूरा करने के लिए अपनी परिसंपत्तियों को बेचना पड़ा। बावजूद इसके, वे जमाकर्ताओं की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहे थे।
एसवीबी ने बड़ी मात्रा में बॉन्ड जैसे सुरक्षित विकल्पों में सस्ती दर में निवेश की थी,लेकिन पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए बैंक को अचानक से अपने बॉन्ड को घाटे में बेचना पड़ा। वर्ष 2008 की मंदी के बाद, अमेरिका में ब्याज दरें काफी नीचे आ गई थीं। बैंक ने उस समय लंबी अवधि के लिए ऋण सस्ती दर पर दी थी,लेकिन अब ऊँची ब्याज दर के दौर में बैंक को मंहगी दर पर पूँजी इकठ्ठा करना पड़ रहा था,जिससे बैंक का असेट-लाईबिलिटी मिसमैच हो गया और बैंक का मुनाफा सिकुड़ने लगा साथ ही साथ बैंक को तरलता के संकट से भी जूझना पड़ रहा था।
निकासी की जरूरतों को पूरा करने के लिए एसवीबी ने 8 मार्च को तरलता सुनिश्चित करने के लिए 1.8 अरब डॉलर के नुकसान पर 21 अरब डॉलर की प्रतिभूतियां बेची और 2.2 अरब डॉलर मूल्य के शेयर बेचने की भी योजना बना रहा था। चूँकि, बैंक की वित्तीय स्थिति बेहद ही खराब हो गई थी,इसलिए, सरकार ने इसे बंद करने का निर्णय लिया, ताकि इसका नकारात्मक प्रभाव दूसरे बैंकों और ग्राहकों पर नहीं पड़े।
भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर यह आकलन करने की कोशिश कर रहे हैं कि अमेरिका के दोनों बैंकों के दिवालिया होने से भारत के स्टार्टअप पर या भारतीय बैंकों पर कितना प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है? वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार देश में मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या वर्ष 2016 की 452 से बढ़कर वर्ष 2022 में 84,012 हो गई है और इसकी मदद से देश में 8,40,000 से अधिक रोजगार सृजित हुए हैं। भारत में कितने स्टार्टअप ने एसवीबी से कर्ज ले रखा है, इसके ठीक-ठीक आंकड़ें उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन माना जा रहा है कि भारत के लगभग 1,000 स्टार्टअप्स के रकम एसवीबी में जमा हो सकते हैं, क्योंकि भारत के कई स्टार्टअप का कारोबार अमेरिका में है। इसके अलावा, एक अनुमान के अनुसार सिलिकॉन वैली में हर तीसरे स्टार्टअप के संस्थापक भारतीय-अमेरिकी हैं।
दोनों अमेरिकी बैंकों के दिवालिया होने के बाद फेडेरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कार्पोरेशन (एफडीआईसी) को उनका रिसीवर नियुक्त किया गया है, ताकि जमाकर्ताओं के मन में किसी प्रकार डर पैदा न हो और वे अपने पैसों की निकासी सुचारु रूप से कर सकें। एफडीआईसी ने 2,50,000 डॉलर की जमा का ही बीमा किया है। इसलिए इस राशि तक या इससे कम जमा करने वाले ग्राहकों को पैसा वापस मिल जाएगा। चूंकि, दोनों बैंकों के ग्राहक बड़े कारोबारी हैं, इसलिए, कई ग्राहकों को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि उनका बैंक में जमा 2,50,000 डॉलर से अधिक हो सकता है।
अमेरिकी सरकार को वाई कॉम्बिनेटर द्वारा सौंपी गई याचिका के अनुसार, एसवीबी में लगभग 10,000 कारोबारियों के पैसे जमा थे। चूँकि, आगामी 30 दिनों में बैंक सभी का भुगतान करने में सक्षम नहीं है, इसलिए,समय पर पैसे नहीं मिलने पर स्टार्टअप कंपनियों को अपने कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ सकती है। एक अनुमान के अनुसार, दोनों अमेरिकी बैंक के डूबने से 1 लाख से अधिक लोगों की नौकरी जा सकती है।
एक अनुमान के अनुसार भारत की तरह इन दोनों अमेरिकी बैंकों को वहाँ की सरकार बचाने की कोशिश नहीं करेगी, क्योंकि एसवीबी के अधिकांश ग्राहक अच्छी फंडिंग वाले टेक और स्टार्टअप कंपनियाँ हैं, जो चुनाव में सरकार की वोट प्रतिशत बढ़ाने में असमर्थ हैं। इसलिए, शायद ही इन दोनों बैंकों को बचाने की कोशिश सरकार करे। इसमें दो राय नहीं है कि एसवीबी ने भारतीय स्टार्टअप्स को कर्ज दिये हैं और भारतीय स्टार्टअप्स ने एसवीबी में पैसे भी जमा किए हैं। फिर भी, यह मानना मुनासिब होगा कि भारत के वैसे स्टार्टअप, जिनका कारोबार अमेरिका में है उन पर एसवीबी के डूबने का आंशिक असर पड़ सकता है, क्योंकि एसवीबी के अधिकांश ग्राहक स्टार्टअप हैं। वैसे,दोनों अमेरिकी बैंकों के डूबने का कोई भी प्रतिकूल प्रभाव भारतीय बैंकों पर नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारतीय बैंकों का कारोबार एसवीबी या सिग्नेचर बैंक के साथ नहीं है। भले इन दोनों अमेरिकी बैंकों के डूबने का भारत पर न्यून प्रभाव पड़े, लेकिन यह सच है कि इसका प्रभाव कुछ देशों पर जरूर पड़ेगा, क्योंकि अनेक देश के स्टार्टअप एसवीबी से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए थे। एसवीबी और सिग्नेचर बैंक के डूबने से यह भी साफ हो जाता है कि इन दोनों बैंकों का प्रबंधन सही तरह से अपनी जिम्मेवारियों का निर्वहन नहीं कर रहा था।
(लेखक बैंकिंग के जानकार हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)