संपादकीय लेख : लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते रहना जरूरी
संविधान की रक्षा करना सरकार, राजनीतिक दलों और नागरिकों सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। संविधान दिवस पर यह मंथन आवश्यक है कि देश राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कितना लोकतांत्रिक हुआ है। 26 नवंबर 1949 को संविधान निर्माण का काम पूरा हुआ और देश ने इसे अंगीकार किया था और 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ था। तब से इस दिन हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं और हर वर्ष अपने गणतंत्र की रक्षा का संकल्प भी करते हैं।

संपादकीय लेख
Haribhoomi Editorial : संविधान की रक्षा करना सरकार, राजनीतिक दलों और नागरिकों सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। संविधान दिवस पर यह मंथन आवश्यक है कि देश राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से कितना लोकतांत्रिक हुआ है। 26 नवंबर 1949 को संविधान निर्माण का काम पूरा हुआ और देश ने इसे अंगीकार किया था और 26 जनवरी 1950 को हमारा संविधान लागू हुआ था। तब से इस दिन हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं और हर वर्ष अपने गणतंत्र की रक्षा का संकल्प भी करते हैं। उससे पहले 19 नवंबर को जबसे हमने संविधान दिवस मनाना शुरू किया है, तबसे हमारे पास इस दिन भी एक मौका होता है अपने लोकतंत्र के आंकलन का। वर्ष 2015 में संविधान के निर्माता डॉ. आंबेडकर के 125वें जयंती वर्ष के रूप में 26 नवंबर को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने इस दिवस को 'संविधान दिवस' के रूप में मनाने के केंद्र सरकार के फैसले को अधिसूचित किया था। संवैधानिक मूल्यों के प्रति नागरिकों में सम्मान की भावना को बढ़ावा देने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। 26 नवंबर को राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
संविधान दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चिंता जायज है कि लोकतांत्रिक चरित्र खो चुके राजनीतिक दल लोकतंत्र की रक्षा नहीं कर सकते हैं। देश के अधिकांश राजनीतिक दलों का संचालन किसी न किसी परिवार के पास है। ऐसे राजनीतिक दलों के अंदर ही लोकतांत्रिक ढांचा नहीं है। चाहे कांग्रेस हो, सपा, राजद, डीएमके, एनसी, पीडीपी, इनेलो आदि दल, सभी परिवारवाद व वंशवाद से संचालित पार्टियां हैं। नीतीश कुमार का जदयू, ममता बनर्जी की टीएमसी, मायावती की बसपा आदि पार्टियां भी व्यक्तिवादी ढांचे में कामकर रही हैं। इस सब दलों में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों पर परोक्ष रूप से हमला राजनीतिक हो सकता है लेकिन यह तथ्य तो है कि पारिवारिक पार्टियां लोकतांत्रिक रूप से नहीं चल रही हैं, वे अपना लोकतांत्रिक चरित्र खो चुकी हैं। कांग्रेस बेशक कहे कि अगर 70 वर्षों में लोकतंत्र को मजबूत और उसका सम्मान नहीं किया गया है, तो मोदी प्रधानमंत्री कैसे बने? कांग्रेस का कहना जायज है कि देश में लोकतंत्र है और उसका फायदा कांग्रेस भी अपने वंशवाद व परिवारवाद की राजनीति के रूप में उठाती रही है। परिवारवाद की पोषक सभी पार्टियां लोकतंत्र के दम पर ही अपनी राजनीति करती रही हैं।
लेकिन बड़ा सवाल है कि लोकतंत्र के माध्यम से सत्ता पाना अलग बात है और देश में राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से लोकतंत्र को मजबूत करना दूसरी बात है। परिवारवादी-वंशवादी पार्टियों ने दूसरी बात की हमेशा अनदेखी की है। केंद्रीय कक्ष में आयोजित संविधान दिवस कार्यक्रम में कांग्रेस समेत 15 विपक्षी दलों का शामिल नहीं होना दर्शाता है कि वे अपने राजनीतिक-वैचारिक विरोध को संविधान दिवस विरोध बना लिया। ऐसा नहीं होना चाहिए था। इन विपक्षी दलों ने सरकार पर संविधान की मूल भावना पर आघात करने और अधिनायकवादी तरीके से कामकाज करने का आरोप लगाया है। विपक्षी दलों को सत्ताधारी दल के प्रति ऐसा लगता है तो उन्हें संविधान दिवस मनाने की अधिक आवश्यकता है। देश में इस वक्त केंद्र व राज्यों के संबंध, संघीय ढांचा, और स्वायत्त संस्थानों को अधिक मजबूत करने की जरूरत है। सरकार को इस दिशा में अधिक काम करना चाहिए। आज भी देश में संविधान के सोशल व इकोनोमिक डेमोक्रेसी के सपने अधूरे हैं। केवल इलेक्टोरल पॉलिटिकल डेमोक्रेसी से ही लोकतंत्र की जड़ें गहरी नहीं होंगी। राष्ट्र के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों के सभी कारकों की रक्षा करते रहना जरूरी है।