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Shiv Sena's Saamana Criticizes Nitish Kumar: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को 9वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। कुमार के साथ शपथ लेने वाले आठ मंत्रियों में से तीन-तीन भाजपा और जद-यू से, एक हम से और एक निर्दलीय विधायक थे। शपथ लेने वाले मंत्रियों में सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा और प्रेम कुमार (भाजपा), बिजेंद्र प्रसाद यादव, विजय कुमार चौधरी और श्रवण कुमार (जद-यू), संतोष सुमन (हम-एस और जीतन राम मांझी के बेटे) और सुमित कुमार सिंह (निर्दलीय) शामिल हैं।

Shiv Sena's Saamana Criticizes Nitish Kumar: महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की शिवसेना (UBT) के मुखपत्र सामना ने अपने संपादकीय में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पलटीमार पॉलिटिक्स पर निशाना साधा है। सामना ने सोमवार को संपादकीय में कहा कि भाजपा के समर्थन से बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले नीतीश कुमार ही वह व्यक्ति हैं जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सभी विरोधी ताकतों को एक साथ लाने की पहल की और पटना में विपक्ष का गठबंधन की पहली बैठक बुलाई। अब नीतीश कुमार ने पलटी क्यों मारी यह शोध का विषय है। पलटूराम के आगे अयोध्या के राम भी बेबस हो गए हैं। 

पीएम मोदी पर तंज, याद दिलाई महाराष्ट्र की राजनीति
सामना में लिखा कि अयोध्या में राम और देश में पलटूराम। महाराष्ट्र में अजित पवार के 70 हजार करोड़ के घोटाले का पर्दाफाश खुद प्रधानमंत्री मोदी करते हैं और फिर महज दो दिन में उसी अजित पवार को बीजेपी के साथ ले जाते हैं और उपमुख्यमंत्री बना देते हैं। नीतीश कुमार के साथ भी ऐसा ही है। जब प्रधानमंत्री पलटूराम बनेंगे तो क्या करेंगे अयोध्या के राम? पलटूराम के आगे अयोध्या के राम भी बेबस हो गए हैं। 

भाजपा के लोग इस समय सबसे बड़े खरीदार
आगे लिखा कि देश में 'जय श्री राम' के नारे दिए जा रहे हैं। लेकिन बिहार में 'जय श्री पलटूराम' का नारा सुनाई दे रहा है। ये हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो पलटूराम 'INDIA' गठबंधन के सूत्रधार हैं। लेकिन नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मारी है और भारतीय जनता पार्टी के साथ नई जिंदगी की शुरुआत की है। इस उम्र में नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन का अंत तब होता है जब वह लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के साथ फिर से बीजेपी से हाथ मिला लेते हैं। भारतीय जनता पार्टी को दोष क्यों दिया जाना चाहिए, जब नैतिकता और सिद्धांत की राजनीति करने वालों ने ही नैतिकता के साथ ऐसा किया है?

भाजपा के लोग इस समय बाजार में सबसे बड़े खरीदार हैं। जब विक्रेता सामान बेचने के लिए तैयार होगा, तो खरीदार और ठेकेदार बोली लगाएंगे। महाराष्ट्र से आया माल पचास-पचास डिब्बों में बिका। देश की जनता को बिहार के सामान की कीमत समझनी चाहिए। नीतीश कुमार को देश की राजनीति में एक केस स्टडी के तौर पर देखा जाना चाहिए। राजनीति में कोई व्यक्ति कम समय में कितनी बार रंग बदल सकता है, यह शोध का विषय है। बिहार में इसे पलटूराम और हरियाणा में आयाराम-गयाराम कहना होगा। 

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा।

मोदी-शाह की तानाशाही के आगे घुटने टेके
जय प्रकाश नारायण के आंदोलन और तानाशाही विरोधी आंदोलन से शुरू हुई नीतीश कुमार की यात्रा मोदी-शाह की तानाशाही के आगे घुटने टेकते ही असफल हो गई है और इसके लिए जनता को उनके अब तक के करियर को सलाम करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी के साथ दोबारा सत्ता स्थापित करने का फैसला किया है। उनकी उम्र रिटायर होकर वानप्रस्थ आश्रम में जाने की है, लेकिन श्री राम के अयोध्या पहुंचते ही नीतीशबाबू बीजेपी के वनवासी आश्रम में चले गये हैं। कुछ महीने पहले नीतीश कुमार ने बीजेपी छोड़ दी थी, क्योंकि बीजेपी बहुत खतरनाक पार्टी थी। बीजेपी उनके साथ सत्ता में थी और कुमार की 'जेडीयू' पार्टी को बर्बाद कर रही थी तो कुमार क्रोध से लाल हो गये। और ये कहकर कि वो कभी बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे, उन्होंने अपने पुराने दोस्त लालू यादव के साथ सरकार बना ली। उन्होंने यह भी घोषणा कर दी कि मैं अब मुख्यमंत्री नहीं रहूंगा आदि...। तेजस्वी यादव राज्य का नेतृत्व करेंगे। 

भाजपा और संघ से लड़ाई ठान रखी थी
'इंडिया' गठबंधन के गठन के बाद नीतीश कुमार से देश का नेतृत्व करने की उम्मीद की गई थी। विपक्षी दलों को एकजुट होकर भाजपा की तानाशाही के खिलाफ लड़ना चाहिए। इसके लिए कुमार ने सभी को एकजुट करने की पहल की और सभी देशभक्त भाजपा विरोधियों की पहली बैठक बुलाई और सफल हुए। उस बैठक में कुमार का भाषण एक राष्ट्रीय प्रतिबिंब माना जाता था। देश संकट में है। संविधान खतरे में है। केंद्रीय जांच प्रणालियों का दुरुपयोग किया जा रहा है और यह राष्ट्रीय हित में है कि हम सभी अपने मतभेदों को दूर करें और लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक साथ आएं। बाद में उन्होंने बैंगलोर, मुंबई, दिल्ली की बैठकों में भाग लिया।

उन्होंने भाजपा और संघ परिवार से अंत तक लड़ने की ठान रखी थी। लेकिन अब नीतीश कुमार का दांव उल्टा पड़ गया है। बेशक इन सभी मामलों में भाजपा की कलई खुल गई है। जैसे ही नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ सरकार बनाने का ऐलान किया। गृह मंत्री अमित शाह ने पटना आकर बिहार की जनता से नीतीश कुमार को दोबारा अपने साथ नहीं लेने का वादा किया। कहा कि अब से अगर नीतीश कुमार हाथ जोड़कर भी बीजेपी के दरवाजे पर आते हैं, तो उनके लिए दरवाजे बंद हैं। वो अमित शाह ही थे जिन्होंने ऐलान किया था कि नीतीश कुमार को दोबारा एनडीए गठबंधन में कभी स्वीकार नहीं किया जाएगा और कुमार ने ये भी वादा किया था कि वो दोबारा कभी बीजेपी के दरवाजे पर नहीं जाएंगे, लेकिन ये दोनों अपने वादे भूल गए हैं। भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में राजनीति के स्तर में भारी गिरावट आई है। 

इतिहास में दर्ज होगी नीतीश कुमार की बेईमानी
नीतीश कुमार जैसे भरोसेमंद लोगों ने जो बेईमानी की, वह इतिहास में हमेशा दर्ज रहेगी। भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव का डर है. उन्हें यकीन है कि भगवान श्रीराम और 'ईवीएम' भी उन्हें हार से नहीं बचा पाएंगे। मोदी-शाह का नारा है 'अब की बार, 400 के पार'। यदि उन्हें अपने काम और नेतृत्व क्षमता पर इतना भरोसा होता तो उन्हें हिंसा के ऐसे खेल खेलकर सत्ता का लालच दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी। यह तय है कि मोदी-शाह की राजनीतिक नैया डूब रही है।

बिहार में अब नीतीश कुमार, बीजेपी, चिराग पासवान आदि एक साथ आकर चुनाव लड़ेंगे, लेकिन बीजेपी की तानाशाही से अकेले लड़ने वाले तेजस्वी यादव, कांग्रेस और अन्य छोटे दलों का गठबंधन बिहार में पलटूराम की राजनीति को सफल नहीं होने देगा। तेजस्वी यादव अब अधिक स्वतंत्र होकर काम कर सकते हैं। बिहार ही नहीं बल्कि देश के क्षितिज से नीतीश कुमार का काला युग अब हमेशा के लिए मिटता जा रहा है। इसका श्रेय भारतीय जनता पार्टी को दिया जाना चाहिए।

'भारत' के मोर्चे पर नीतीश कुमार की स्थिति बड़ी थी। उन्होंने ही 'इंडिया' फ्रंट की शुरुआत की थी। नीतीश कुमार ने कहा कि देश को मोदी-शाह चंगुल से बचाना है। आज बीजेपी ने इस बात का फायदा उठाया कि नीतीश कुमार शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम हैं। ईडी, सीबीआई के डर से इस दौरान अच्छे लोग 'पलट' गए। 

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