Padma awards 2024: कोई देश की पहली महिला महावत, किसी ने लगाए 30 लाख पौधे, जानिए पद्मश्री पाने वाले गुमनाम नायकों को

Padma Awards 2024 unsung Heroes Of India
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Padma Awards 2024 unsung Heroes Of India
Padma Awards 2024 unsung Heroes Of India:

Padma Awards 2024 unsung Heroes Of India: केंद्र सरकार ने गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी। ऐसे कई लोगों को सम्मानित किया गया है जिन्होंने अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान दिया है, लेकिन गुमनाम हैं। जानिए ऐसे ही चार लोगों के बारे में जो पुरस्कारों की घोषणा होने के बाद ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।

देश की पहली महिला महावत पारबती बरुआ
पद्मश्री नवाजी गई 67 साल की पारबती बरुआ असम की रहने वाली हैं। पारबती की पहचान यह है कि वह देश की पहली महिला महावत हैं। आम तौर पर हाथियों की देखरेख का काम पुरुष करते रहे हैं। देश में पहली बार पारबती बरुआ ने ही इस पुरुष प्रधान काम को करना शुरू किया। पारबती ने वन्यक्षेत्रों के आसपास मानवों और हाथियों के बीच होने वाले संघर्ष को रोकने के लिए राज्य सरकारों की मदद दी। उन्होंने कई ऐसे तरीके भी बताए जिससे जंगली हाथियों की समस्याओं से निपटने और उन्हें पकड़ने में मदद मिली।

पारबती को बचपन से था हाथियों से लगाव
पारबती ने महज 14 साल की उम्र में इस काम में अपने पिता का हाथ बंटाना शुरू कर दिया था। पारबती के पिता महावत थे। इसलिए बचपन से ही उनका हाथियों से लगाव था। बाद में उन्होंने अपने पिता से यह भी सीखा कि हाथियों की देखरेख किस तरह से किया जाता है। उनसे किस तरह से बात मनवाई जा सकती है। पारबती बरुआ ने अपने जीवन के 40 साल हाथियों की भलाई में लगा दिए। पारबती को पशु कल्याण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए पद्मश्री से नवाजा गया है।

आदिवासियों के लिए काम करने वाले जागेश्वर यादव
छत्तीसगढ़ के जागेश्वर यादव भी पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुने गए हैं। 67 साल के जागेश्वर यादव ने छत्तीसगढ़ के आदिवासी समुदाय के उत्थान के लिए काम किया। खास तौर पर बिरहोर और पहाड़ी कोरवा जनजातियों के कल्याण के लिए काम किया। जागेश्वर यादव ने जशपुर में एक आश्रम बनाकर और जगह जगह शिविर लगाकर जनजातिय समुदाय के लोगों को पढ़ाया। आदिवासियों को टीकाकरण की सुविधा उपलब्ध करवाने, आदिवासी बहुल इलाकों में शिशु मृत्यु दर कम करने की कोशिशों में जुटे रहे।

30 लाख पौधे लगाने वाली झारखंड की चामी मूर्मि:
झारखंड की चामी मुर्मू को पर्यावरण संरक्षण और वन क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए उठाए गए कदमों के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। चामी ने अपने साथ पौधे लगाने के अभियान में तीन हजार से ज्यादा महिलाओं को जोड़ा और 30 लाख से ज्यादा पौधे लगाए। इसके साथ ही चामी मूर्मू ने जनजातीय समुदाय की महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए भी काम किया। चामी ने झारखंड के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह का गठन किया और करीब 30 हजार महिलाओं को इस लायक बनाया कि रोजगार अर्जित कर सकें।

चामी मूर्म ने नक्सलियों के खिलाफ भी छेड़ा अभियान
चामी मूर्मू झारखंड में 'सहयोगी महिला' नामक एक स्वयंसेवी संस्था भी चलाती हैं। इस संस्था के माध्यम से चामी महिलाओं को मातृत्व के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों और महिलाओं में होने वाली सामान्य बीमारियों के प्रति जागरूक किया। चार्मी ने लड़कियों की पढ़ाई लिखाई के बारे में जागरूक किया। इसके साथ ही जंगलों में गैरकानूनी ढंग से होने वाली पेड़ों की कटाई , लकड़ी माफिया और नक्सल गतिविधियों के खिलाफ भी अभियान चलाया।

दिव्यांगों की सेवा में जीवन समर्पित करने वाले गुरविंदर
हरियाणा के रहने वाले गुरविंदर सिंह भी पद्मश्री पुरस्कारों की सूची में एक ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन दिव्यांग लोगों की सेवा में लगा दिया। 52 साल के गुरविंदर खुद एक बार ट्रक की चपेट में आ गए थे। इसके बाद उनके कमर के नीचे के हिस्से ने काम करना बंद कर दिया। इसके बाद उन्होंने तय किया वह दिव्यांग लोगों की मदद करेंगे। गुरविंदर ने दिव्यांगों के साथ ही अनाथ बच्चों, बेघर और बेसहारा महिलाओं के कल्याण के लिए भी काम किया। गुरविंदर सिंह करीब 300 बच्चों के पालन पोषण के लिए संस्थान चलाते हैं। वह अब तक 6000 से ज्यादा लोगों को फ्री में एंबुलेंस सुविधाएं उपलब्ध करवा चुके हैं।

चावलों की पारंपरिक किस्म को बचाने वाले किसान
पद्म पुरस्करों की सूची में एक किसान भी हैं। कर्नाटक के कासरगोड के चावल किसान सत्यनारायण बेलेरी ने चावल की पारंपरिक किस्मों को बचाने के क्षेत्र में शानदार काम किया है। बेलेरी ने चावल की करीब 650 से ज्यादा पारंपरिक किस्मों को बचाया। इसलिए बेलेरी को धान के संरक्षक के तौर पर भी पहचाना जाता है। बेलेरे ने विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके राजकायम किस्म के चावल की खेती को बढ़ावा। बेलेरी की वजह से कर्नाटक के साथ ही केरल और तमिलनाडु में भी इस किस्म के चावल की खेती शुरू हुई।

काली मिर्च, सुपारी और जायफल की बीजों को किया संरक्षित
बेलेरी को 15 साल की मेहनत से धान उगाने की पॉलीबैग पद्धति की मदद से न सिर्फ चावल बल्कि फसलों की दूसरी भारतीय किस्मों को भी संरक्षित करने के लिए जाना जाता है। कर्नाटक के इस किसान ने काली मिर्च, सुपारी और जायफल की स्वदेशी किस्मों की बीज को भी संरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है। बेलेरी ने किसानों की पारंपरिक किस्मों को बचाने में अनुसंधान केंद्रों की भी मदद की।

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