Logo
election banner
World Cancer Day: वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में दुनिया भर में 18.1 मिलियन कैंसर के मामले थे।

World Cancer Day: वैसे तो कैंसर होने की कई वजहें हो सकती हैं। लेकिन गलत फूड हैबिट्स और लाइफस्टाइल संबंधी लापरवाही से कैंसर का रिस्क अब हर उम्र के लोगों में बढ़ने लगा है। वे कौन सी हैबिट्स हैं, जिनसे कैंसर रिस्क बढ़ता है और इससे बचने के लिए आपको किन बातों पर ध्यान देना चाहिए, यहां डिटेल में बता रहे हैं कुछ कैसर स्पेशलिस्ट्स। 

आज के बदलते दौर में हर चीज एडवांस, इफेक्टिव और ईजी टू यूज होती जा रही है, चाहे वो घरों में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक के बोतल में पानी हो, मेयोनीज हो, टी बैग हो, ब्यूटी प्रोडक्ट्स हों या युवाओं में धूम्रपान को लेकर नए प्रयोग हों। लेकिन ऐसे कई बदलाव कैंसर के खतरे को बढ़ा रहे हैं। जानिए आज के बदलते दौर में किन कारणों से कैंसर होने की संभावना अधिक हो रही है।

फूड आइटम्स-ईटिंग हैबिट्स 
घरों में इस्तेमाल होने वाली किस तरह की चीजें, कैंसर के खतरे को बढ़ा रही हैं, इस बारे में पूछने पर एक्शन कैंसर हॉस्पिटल, दिल्ली में सीनियर कंसल्टेंट-मेडिकल ऑन्कोलॉजी- डॉ. जे.बी. शर्मा बताते हैं, ‘घरों में इस्तेमाल होने वाली ऐसे कई चीजें हैं, जिनसे कैंसर के खतरे की संभावनाएं बढ़ रही हैं, जैसे- प्लास्टिक की बोतल में रखा पानी पीना खतरनाक हो सकता है क्योंकि इसमें माइक्रो प्लास्टिक पाए जाते हैं। इस तरह कुछ लोग आजकल प्लास्टिक की थैली में पैक गर्म चाय लेकर पीते हैं, जबकि इसमें भी माइक्रो प्लास्टिक होता है, जिसकी आपके शरीर में जाने की संभावना होती है। वहीं, आजकल टी बैग के इस्तेमाल के कारण भी कैंसर होने की संभावना बनी रहती है। दरअसल, इसमें एपिक्लोरो हाइड्रिन नामक एक रसायन होता है, जो गर्म पानी में घुल जाता है और कैंसर का कारण बन सकता है। इसके अलावा आजकल की टेक्नोलॉजी में जहां आपके लिए चीजें आसान हो गई हैं, वहीं खतरे भी बढ़ गए हैं, जैसे- यदि आप ओवन में खाना गर्म करके खाते हैं, तो प्लास्टिक के बर्तनों आदि का इस्तेमाल ना करें, क्योंकि प्लास्टिक को गर्म करने पर इसमें से एंडोक्रिन डिस्ट्रक्टिंग नामक खतरनाक केमिकल निकलता है, जो खाने के साथ घुलकर शरीर में चला जाता है और कैंसर की आशंका को बढ़ाता है। इसके अलावा लोग घरों में खाना नॉनस्टिक बर्तन में पकाते हैं। अगर उसमें खाना जल जाए तो कभी ना खाएं, क्योंकि इसमें एक्रिलामाइड नामक केमिकल बनने लगता है, जो कैंसर का कारण बनता है। वहीं, मोमोज जैसे खाने पीने की चीजों में इस्तेमाल होने वाला वाइट कलर का मेयोनीज आजकल खूब पसंद किया जा रहा है, मगर इसमें मौजूद फूड एडिटिव्स की वजह से आपको कोलोरेक्टल कैंसर जैसी गंभीर बीमारी होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। साथ ही पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग, कार्बोनेटेड ड्रिंक्स, प्रोसेस्ड मीट, सॉसेज, पैकेज्ड फूड्स, रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट और अधिक मीठे खाद्य पदार्थों के सेवन से आपको कैंसर होने का ज्यादा खतरा होता है।’

ब्यूटी प्रोडक्ट्स का यूज
महिलाओं और पुरुषों के द्वारा यूज किए जाने वाले कई लो क्वालिटी के ब्यूटी प्रोडक्ट्स कैंसर से संबंधित खतरा उत्पन्न कर सकते हैं। इस बारे में धर्मशिला नारायणा सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, दिल्ली में सीनियर कंसल्टेंट-मेडिकल ऑन्कोलॉजी- डॉ. राजित चानना बताते हैं, ‘आजकल बालों को सिल्की करने के लिए कई प्रकार के केमिकल युक्त उत्पादों का प्रयोग किया जाता है, जिसमें फॉर्मेल्डिहाइड और फॉर्मेल्डिहाइड-रिलीजिंग रसायन होते हैं। हालांकि इनपर एफडीए का प्रतिबंध लगा हुआ है। लेकिन इस प्रकार के लो क्वालिटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कैंसर के खतरे को बढ़ा सकता है। बालों को सीधा करने वाले इस प्रकार के कुछ उत्पादों के प्रयोग से अल्पकालीन और दीर्घकालीन गंभीर समस्याएं होने की संभावना बनी रहती है। फॉर्मेल्डिहाइड धुएं के संपर्क में आने से आंख, नाक और गले में जलन हो सकती है। साथ ही श्वसन समस्याएं भी हो सकती है। आगे चलकर कैंसर का भी जोखिम बढ़ जाता है। इसको लेकर 2022 के राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान द्वारा अध्ययन से भी कई संकेत मिलते हैं, जिनमें इन रसायनों के धुएं से महिलाओं में गर्भाशय कैंसर की अधिक संभावना को बताया गया है। इसलिए रोजमर्रा के उत्पादों में कार्सिनोजेनिक एजेंटों को पहचान कर उनका प्रयोग ना करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसी से आप संभावित कैंसर की समस्याओं से बच सकते हैं। इसी के साथ यह भी जरूरी है कि आप सुरक्षित हेयर प्रोडक्ट्स की पहचान करके उन्हीं का प्रयोग करें।’

न्यू स्मोकिंग हैबिट्स
यंगस्टर्स में स्मोकिंग और इसके अलग-अलग तरह के नए शौक से कैंसर का खतरा भी बढ़ रहा है, इस बारे में पूछने पर नारायणा हॉस्पिटल, गुरुग्राम में सीनियर कंसल्टेंट एंड डायरेक्टर-मेडिकल ऑन्कोलॉजी- डॉ. रणदीप सिंह बताते हैं,  ‘स्मोकिंग और शराब का सेवन कैंसर कारक तो है ही। इसके साथ-साथ आजकल सिगरेट की लत छुड़ाने के लिए मार्केट में आई ई-सिगरेट, जो युवा वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रही है, भी कैंसर के खतरे को तेजी से बढ़ा रही है। इसमें प्रयोग होने वाले केमिकल काफी खतरनाक होते हैं, जैसे- निकोटिन, फॉर्मेल्डिहाइड, टिन, निकिल, कॉपर, लेड, क्रोमियम, आर्सेनिक और डाई एसेटाइल मेटल जैसे पदार्थ क्वाइल में मिले होते हैं। दरअसल, ई-सिगरेट के वेपर को गर्म करने के लिए क्वाइल का इस्तेमाल होता है और इनसे लंग्स कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ा है। साथ ही युवा वर्ग में फ्लेवर्ड हुक्का पीने का भी चलन तेजी से बढ़ा है, जिसमें कई खतरनाक केमिकल मिलकर फ्लेवर बनाए जाते हैं। याद रखें कि चाहे ई सिगरेट हो या फिर फ्लेवर्ड हुक्का, दोनों में खतरनाक केमिकल डाई एसिटाइल मिला होता है, जो आपकी सेहत के लिए घातक है। इनमें कुछ अन्य प्रकार के हानिकारक केमिकल भी हैं, जैसे-कार्बन मोनोऑक्साइड, कैडमियम, अमोनिया, रेडॉन (खतरनाक न्यूक्लियर गैस), मिथेन, चारकोल, एसिटोन आदि। ये केमिकल्स कैंसर के खतरे को बढ़ाते हैं।’

भविष्य में बढ़ सकते हैं कैंसर के मामले 
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 में दुनिया भर में 18.1 मिलियन कैंसर के मामले थे। इनमें से 9.3 मिलियन मामले पुरुषों में और 8.8 मिलियन महिलाएं थीं। वहीं, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार साल 2020 की तुलना में 2025 में कैंसर के मामलों में 12.8 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। 
 

5379487