Bangladesh Coup: शेख हसीना को 45 मिनट का अल्टीमेटम, पहले कुर्सी फिर छोड़ा देश, जानें बांग्लादेश में तख्ता पलट की पूरी कहानी

आरक्षण विरोधी आंदोलन के बाद बांग्लादेश में हिंसा, PM शेख हसीना ने इस्तीफा दिया। हसीना ने भारत में शरण ली है। जानें तख्तापलट की पूरी कहानी।

Updated On 2024-08-05 20:54:00 IST
Bangladesh Coup: शेख हसीना बांग्लादेश छोड़ कर भारत पहुंची हैं। कुछ दिन भारत में रहकर ब्रिटेन जाएंगी।

Bangladesh Military Coup: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना (Sheikh Hasina) ने आरक्षण विरोधी आंदोलन और बढ़ती हिंसा के बीच सोमवार (5 अगस्त) को इस्तीफा दे दिया। पांच बार की प्रधानमंत्री रहीं शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा है। आरक्षण विरोधी प्रदर्शनकारी बांग्लादेश के पीएम भवन में घुस गए। प्रदर्शनकारी प्रधानमंत्री आवास में हुड़दंग करते नजर आए। प्रदर्शनकारी देश के पहले प्रधानमंत्री और शेख हसीना के पिता मुजीबुर्रहमान की प्रतिमा पर चढ़कर हथौरे चलाते नजर आए। आइए जानते हैं क्यों और कैसे हुआ तख्तापलट। आखिरी शेख हसीना को बांग्लादेश क्यों छोड़ना पड़ा। 

स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को आरक्षण देने का मामला
शेख हसीना की ओर से लिए गए एक फैसले की वजह से आज उन्हें अपना ही देश को छोड़ना पड़ा। देश में स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को सरकारी नौकरियों में 30% से ज्यादा आरक्षण देने के नियम के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ। सरकार ने इस नियम को बदलने से इनकार कर दिया। छात्रों का आंदोलन भड़क गया। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने पुराने नियम को रद्द कर दिया। सरकारी नौकरियों के 95 प्रतिशत रिक्त पदों को मेरिट के आधार पर भरने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों को सिर्फ 5% आरक्षण देने का आदेश दिया। हालांकि, तब तक काफी देर हो चुकी थी। आंदोलन पूरे देश में फैल चुका था।

किसने दिया सत्ता विरोधी आंदोलन को खाद पानी?
बांग्लादेश के इतिहास में दूसरी बार हुए इस तख्ता पलट पर गौर करें तो यहां की विपक्षी पार्टियों की भूमिका अहम रही है। इन विपक्षी पार्टियों ने सत्ता विरोधी आंदोलन को खाद-पानी दिया। कुछ संगठन भी आंदोलन कर रहे छात्रों के साथ आए। विपक्षी पार्टियों और कुछ संगठनों ने आंदोलन कर रहे छात्राें को उकसाना शुरू कर दिया। इसके बाद से आंदोलन उग्र और व्यापक हो गया। ढाका के कुछ मुट्ठी भर छात्र नेताओं के इस आंदोलन की वजह से पूरा बांग्लादेश झुलस उठा। सैंकड़ों लोगों की मौत हुई। हजारों घायल हुए। नौबत यहां तक पहुंच गई कि 5 अगस्त 2024 को बांग्लादेश के इतिहास में दूसरा तख्तापलट हो गया। 

गृह मंत्री का सरकारी बंगला फूंका, मचाया हुड़दंग
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने  सोमवार (5 अगस्त) की दोपहर इस्तीफा दे दिया। दरअसल सोमवार की सुबह हजारों की तादाद में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए। पुलिस और सेना इन प्रदर्शनकारियों को कंट्रोल करने में नाकाम रही। प्रदर्शनकारी सुरक्षा घेरा तोड़कर संसद भवन में घुस गए। गृह मंत्री के सरकारी बंगले को फूंक दिया। ढाका की गलियां उपद्रवियों से पट गई। प्रदर्शनकारी उत्पात मचाने लगे। सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। 

हसीना को सेना का 45 मिनट का अल्टीमेटम
आर्मी चीफ आनन- फानन में शेख हसीना से मिलने पहुंचे। शेख हसीना को पीएम पद छोड़ने के लिए 45 मिनट का अल्टीमेटम दिया। सेना प्रमुख वकार-उज-जमान ने कथित तौर पर शेख हसीना को पीएम आवास से सुरक्षित बाहर निकाला। जब तक प्रदर्शनकारी पीएम आवास में दाखिल होते। शेख हसीना प्रधानमंत्री आवास से बाहर निकल चुकीं थी। इससे पहले उन्होंने अपना इस्तीफे पर आर्मी चीफ की मौजूदगी में साइन कर दिया । 

रेड कार्पेट बिछाकर शेख हसीना का वेलकम 
इस्तीफा देने के तुरंत बाद सेना की ओर से शेख हसीना को देश से बाहर निकालने का प्रबंध शुरू कर दिया गया। एक विशेष एयरक्राफ्ट की व्यवस्था की गई। इस विमान से शेख हसीना और उनकी बहन ढाका से रवाना हुई। हसीना का विमान गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर लैंड हुआ। भारत की ओर से शेख हसीना का गर्मजोशी से स्वागत हुआ। सेना के अफसरों ने शेख हसीना के लिए रेड कार्पेंट बिछाए। 

सेना प्रमुख ने की शांति की अपील
ढाका में हालात अब नियंत्रण से बाहर हो चुके हैं। लगभग 4 लाख लोग सड़कों पर हैं और राजधानी के विभिन्न हिस्सों में हिंसा और तोड़फोड़ की घटनाएं हो रही हैं। सेना प्रमुख ने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है और कहा कि वह जल्द ही स्थिति को नियंत्रण में लाएंगे। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने भी शेख हसीना के देश छोड़ने से पहले एक बयान जारी किया। इसमें उन्होंने शेख हसीना के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने की जानकारी दी। साथ ही कहा कि जल्द ही देश में अंतरिम सरकार गठित की जाएगी। 

प्रमुख पार्टियों के साथ सेना की बैठक
बांग्लादेशी अखबार 'प्रोथोम आलो' के मुताबिक, प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच सोमवार को कई जगहों पर झड़पें हुई। टांगाइल और ढाका में प्रदर्शनकारियों ने एक प्रमुख राजमार्ग पर कब्जा कर लिय। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, सेना ने देश की प्रमुख पार्टियों के नेताओं के साथ बैठक की है, जिसमें 18 सदस्यीय अंतरिम सरकार के गठन का प्रस्ताव रखा गया है। यह सरकार सेना द्वारा बनाई जाएगी और अगले आदेश तक देश का शासन करेगी।

36 दिनाें में 300 से ज्यादा मौत
पिछले तीन हफ्तों में इस आंदोलन में 300 से अधिक लोग मारे गए हैं, जिनमें से 98 की मौत सिर्फ पिछले रविवार को हुई थी। सरकार ने हिंसा पर काबू पाने के लिए पूरे देश में कर्फ्यू लागू कर दिया। हालांकि, सोमवार को शेख हसीना के देश छोड़ते ही कर्फ्यू हटा लिया गया। फिलहाल पूरे देश में  तीन दिन की छुट्टी घोषित कर दी गई है। इसके अलावा, 3500 से अधिक कपड़ा कारखानों को बंद कर दिया गया है। अंतरराष्ट्रीय उड़ानों को भी रद्द कर दिया गया है और सोमवार सुबह 11 बजे से पूरे देश में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई थी, जिसे 3 घंटे बाद बहाल किया गया।

पहले भी भारत में शरण ले चुकी हसीना
यह पहली बार नहीं है जब शेख हसीना को संकट के समय भारत में शरण लेनी पड़ी है। 1975 में पिता की हत्या के बाद भी वे कुछ समय के लिए भारत में रहीं थीं। अब, एक बार फिर, उन्होंने अपने जीवन और भविष्य की राजनीतिक गतिविधियों को सुरक्षित रखने के लिए भारत का रुख किया है। यह देखना बाकी है कि बांग्लादेश में इस तख्ता पलट के बाद क्या राजनीतिक परिदृश्य उभरता है। 

पांच बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं 
शेख हसीना ने बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के रूप में पांच बार पदभार संभाला है। 1986 में उन्होंने पहली बार अस्थायी रूप से प्रधानमंत्री का पद संभाला था। इसके बाद 1996 से 2001, 2009 से 2014, 2014 से 2019 और 2019 से 2024 तक उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। हाल ही में जनवरी 2024 में हुए आम चुनावों में उनकी पार्टी अवामी लीग ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी। हालांकि, आरक्षण विरोधी आंदोलन और हिंसा की वजह से शेख हसीना को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। 

पिता के कार्यकाल के दौरान भी हुआ था तख्तापलट
शेख हसीना, बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी हैं। उनके पिता की हत्या 1975 में एक सैन्य तख्ता पलट के दौरान कर दी गई थी। इस घटना के बाद हसीना ने लंबे समय तक देश से बाहर समय बिताया। 1981 में बांग्लादेश लौटकर उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा फिर से शुरू की और पार्टी की बागडोर संभाली।

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