यूपी में SIR शुरू होते ही विवाद: सपा ने चुनाव आयोग से की शिकायत; लगाया जाति और धर्म पर नियुक्ति का आरोप!
सपा का आरोप है कि मतदाता सूची तैयार करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्तिया जाति और धर्म के आधार पर की गई हैं, जिससे निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
सपा ने चुनाव आयोग से तत्काल और प्रभावी कार्रवाई की मांग की है।
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया औपचारिक रूप से शुरू होते ही बड़े विवाद में घिर गई है। चुनाव आयोग ने सोमवार को इस प्रक्रिया की औपचारिक घोषणा की थी, लेकिन इसके तुरंत बाद विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने इसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठाते हुए चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया है। सपा ने आरोप लगाया है कि इस महत्वपूर्ण चुनावी प्रक्रिया को जानबूझकर पक्षपातपूर्ण तरीके से शुरू किया गया है, जिससे मतदाता सूची की शुद्धता और निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
सपा के प्रदेश अध्यक्ष श्याम लाल पाल ने यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी को ज्ञापन सौंपकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है, जिससे राज्य में चुनावी माहौल गरमा गया है। सपा का कहना है कि यह प्रक्रिया लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ है और निष्पक्ष चुनाव की संभावनाओं को कमजोर करती है।
जाति और धर्म के आधार पर नियुक्तियों का आरोप
सपा ने अपनी शिकायत में सबसे संगीन आरोप यह लगाया है कि मतदाता सूची तैयार करने में लगे अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्तिया जाति और धर्म के आधार पर की गई हैं। ज्ञापन में बताया गया है कि प्रदेश के 1,62,486 पोलिंग स्टेशनों पर नियुक्त बूथ लेवल अधिकारियों, 403 विधानसभा क्षेत्रों में इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन अधिकारियों और सभी जिलों में अपर जिला मजिस्ट्रेट (चुनाव) जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी इसी तरह का भेदभाव किया गया है। सपा का स्पष्ट मत है कि अधिकारियों की इस तरह की पक्षपातपूर्ण नियुक्तिया सत्ताधारी बीजेपी सरकार की मानसिकता को दर्शाती हैं, जिसका सीधा उद्देश्य मतदाता सूची में हेरफेर कर आगामी चुनावों में अनुचित लाभ प्राप्त करना है।
पिछली शिकायतों का हवाला और बीजेपी पर निशाना
समाजवादी पार्टी ने अपनी शिकायत को और पुख्ता बनाने के लिए अतीत के चुनावों का भी हवाला दिया है। पार्टी ने 2024 में हुए विधानसभा उपचुनावों का जिक्र किया, विशेषकर कानपुर नगर की सीसामऊ और अम्बेडकर नगर की कटेहरी विधानसभा सीटों पर। सपा ने आरोप लगाया है कि उन चुनावों के दौरान भी बीएलओ को जाति और धर्म के आधार पर बदलने की शिकायतें दर्ज कराई गई थीं, लेकिन भारत निर्वाचन आयोग ने उन पर कोई कदम नहीं उठाया और वह केवल मूकदर्शक बना रहा।
सपा ने यहा तक आरोप लगाया है कि केवल मतदाता सूची ही नहीं, बल्कि मतदान कर्मियों, पीठासीन अधिकारियों और मतगणना कर्मियों की नियुक्ति में भी इसी तरह की पक्षपातपूर्ण नीति अपनाई गई थी, जो एक विशेष राजनीतिक दल के पक्ष में काम कर रही थी। सपा ने इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हुए बीजेपी पर निशाना साधा है।
चुनाव आयोग से तत्काल कार्रवाई की मांग
इस गंभीर आरोप के बाद, समाजवादी पार्टी ने चुनाव आयोग से तत्काल और प्रभावी कार्रवाई की मांग की है। पार्टी ने मांग की है कि SIR की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने से पहले सभी विवादित नियुक्तियों को तुरंत रद्द किया जाए। इसके साथ ही, सपा ने यह भी मांग की है कि अधिकारियों की नियुक्ति में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो और बिना किसी पक्षपात के सभी जाति तथा धर्मों के लोगों को शामिल करते हुए एक नई, पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जाए।