सुप्रीम कोर्ट का हथौड़ा: मेरठ सेंट्रल मार्केट में 22 दुकानों वाला अवैध कॉम्प्लेक्स पर चला बुलडोजर, 30 साल पुराना विवाद खत्म
4 थानों की पुलिस और पीएसी की मौजूदगी में जेसीबी चली, जिससे व्यापारियों में भारी आक्रोश दिखा। 21 व्यापारियों और 45 अधिकारियों पर पहले ही मुकदमा दर्ज हो चुका है।
इस मामले में आवास विकास के 45 पूर्व अधिकारियों और 21 व्यापारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है।
मेरठ : मेरठ के शास्त्रीनगर स्थित सेंट्रल मार्केट में एक अवैध रूप से निर्मित व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स पर शनिवार को आवास एवं विकास परिषद द्वारा ध्वस्तीकरण की बड़ी कार्रवाई शुरू की गई। यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के 17 दिसंबर 2024 के आदेश के अनुपालन में की जा रही है, जिसने आवासीय भूखंड संख्या 661/6 पर बने 22 दुकानों वाले कॉम्प्लेक्स को अवैध घोषित किया था। कार्रवाई के लिए भारी पुलिस बल तैनात किया गया, जिसमें चार थानों की पुलिस और एक कंपनी पीएसी शामिल थी। जेसीबी मशीनें पहुंचते ही व्यापारियों और उनके परिजनों में हड़कंप मच गया और कई लोग रोते-बिलखते दिखे। 27 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई होनी है, जिसके पहले प्रशासन ने यह सख्त कदम उठाया है।
ध्वस्तीकरण की कार्रवाई
सेंट्रल मार्केट में अवैध रूप से बने कॉम्प्लेक्स पर शनिवार सुबह से ही ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया शुरू हो गई। चार थानों की पुलिस और एक कंपनी पीएसी को तैनात किया गया, साथ ही फायर ब्रिगेड को भी मौके पर बुलाया गया। जैसे ही जेसीबी ने कॉम्प्लेक्स में बनी दुकानों को तोड़ना शुरू किया, मौके पर मौजूद व्यापारियों और उनके परिजनों में हाहाकार मच गया। कई व्यापारी और उनके रिश्तेदार अपनी आखों के सामने अपनी दुकानें टूटते देख बिलख पड़े। कुछ व्यापारियों ने शुक्रवार रात और शनिवार सुबह तक अपनी दुकानें खाली कर दिया। कार्रवाई शुरू होने से पहले, सुरक्षा कारणों और कानूनी प्रक्रिया के तहत अवैध कॉम्प्लेक्स का बिजली कनेक्शन काट दिया गया था।
सेंट्रल मार्केट विवाद का कानूनी इतिहास
जिस भूखंड (661/6) पर यह कॉम्प्लेक्स बना है, उसका विवाद लगभग तीन दशक पुराना है और यह मामला उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चला है। आवास एवं विकास परिषद के दस्तावेजों के अनुसार, यह 288 वर्ग मीटर का भूखंड मूल रूप से आवासीय उपयोग के लिए आवंटित किया गया था। भूखंड आवंटन के कुछ साल बाद, पावर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से इसका उपयोग बदला गया और उस पर 22 दुकानों वाला एक व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स अवैध रूप से बना दिया गया। आवास एवं विकास परिषद ने 1990 से ही अवैध निर्माण रोकने और हटाने के लिए नोटिस जारी किए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। आखिरकार, सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2014 के ध्वस्तीकरण के आदेश को सही मानते हुए अवैध निर्माण ढहाने का अंतिम आदेश दिया।
अधिकारियों और व्यापारियों पर कानूनी शिकंजा
इस मामले में केवल अवैध निर्माण करने वाले व्यापारियों पर ही नहीं, बल्कि इसमें कथित तौर पर शामिल आवास विकास परिषद के लापरवाह अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जा रही है। इस पूरे मामले में आवास विकास के 45 पूर्व अधिकारियों और 21 व्यापारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। अधिकारियों पर दस्तावेजों में हेरफेर करने और व्यापारियों को बचाने का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट में 27 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई होनी है। इससे पहले, जिला प्रशासन और आवास विकास परिषद पर कोर्ट की अवमानना से बचने का दबाव था, जिसके चलते यह सख्त और त्वरित कार्रवाई की गई है। पुलिस ने मामले की विवेचना शुरू कर दी है और 10-12 साल पुराने रिकॉर्ड आवास विकास से मांगे हैं।