पार्षद से केंद्रीय मंत्री और अब यूपी बीजेपी के नए बॉस: जानिए कौन है पंकज चौधरी?
पंकज चौधरी का परिवार गोरखपुर और महाराजगंज में गहरा राजनीतिक तथा सामाजिक प्रभाव रखता है। उनके पिता, स्वर्गीय भगवती प्रसाद चौधरी, जमींदार और व्यवसायी थे।
पंकज चौधरी ने 1991 में महाराजगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, और 10वीं लोकसभा के सदस्य बने।
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, जहां कुर्मी समुदाय से आने वाले, सात बार के सांसद और वर्तमान केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई।
महाराजगंज सीट से लगातार जीत दर्ज करने वाले चौधरी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक पार्षद के रूप में की थी और अपनी मजबूत संगठनात्मक पकड़, साफ-सुथरी छवि और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ करीबी संबंध के चलते वह अब प्रदेश की राजनीति में शीर्ष स्थान पर पहुंचने के लिए तैयार हैं।
उनकी यह यात्रा उनके दशकों के समर्पण और जमीनी स्तर पर काम करने के अनुभव को दर्शाती है।
पार्षद से सांसद तक का ऐतिहासिक सफर
पंकज चौधरी का जन्म 20 नवंबर 1964 को गोरखपुर में हुआ था। उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद 1989 में गोरखपुर नगर निगम के पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक करियर शुरू किया। इस शुरुआती सफलता के बाद, वह 1990-91 में उप-महापौर (डिप्टी मेयर) के पद पर भी रहे।
उनकी असली पहचान तब बनी जब उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा। उन्होंने पहली बार 1991 में महाराजगंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की, जिसके बाद वह 10वीं लोकसभा के सदस्य बने।
तब से लेकर 2024 तक वह इस सीट से रिकॉर्ड सात बार सांसद चुने जा चुके हैं, जो उनकी जनता के बीच अटूट पैठ और लोकप्रियता का प्रमाण है।
केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान और पीएम मोदी से करीबी
पंकज चौधरी की राजनीतिक विश्वसनीयता और कौशल को देखते हुए, जुलाई 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया। उन्हें केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पदभार सौंपा गया, जहां वह वर्तमान में भी कार्यरत हैं।
नेतृत्व के साथ उनके मजबूत व्यक्तिगत और राजनीतिक संबंध तब सार्वजनिक रूप से चर्चा का विषय बन गए जब जुलाई 2023 में गोरखपुर में एक कार्यक्रम के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके घर जाकर उनसे मुलाकात की।
प्रधानमंत्री का इस तरह निजी तौर पर किसी मंत्री के घर पैदल चलकर जाना, यह स्पष्ट संकेत देता है कि पंकज चौधरी शीर्ष नेतृत्व के कितने भरोसेमंद और करीबी हैं।
राजनीति के साथ-साथ निजी व्यवसाय
एक सफल राजनेता होने के बावजूद, पंकज चौधरी ने अपने निजी जीवन में भी उद्यमशीलता को बनाए रखा है। वह अपने व्यवसाय के माध्यम से भी सक्रिय हैं, जिसमें विशेष रूप से 'राहत रूह' जैसे तेल उत्पाद का व्यवसाय शामिल है।
राजनीति और व्यवसाय के बीच संतुलन बनाने की उनकी क्षमता उनकी बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाती है।
पंकज चौधरी ने किया नामांकन निर्विरोध निर्वाचित होना तय
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य की उपस्थित में पंकज चौधरी ने नामांकन किया। वह एक मजबूत ओबीसी चेहरा हैं, जिसका लाभ भाजपा को पूर्वी उत्तर प्रदेश और पूरे राज्य में जातिगत समीकरण साधने में मिल सकता है।
उनकी साफ-सुथरी छवि, संगठन पर मजबूत पकड़, और सात बार सांसद रहने का अनुभव उन्हें एक कुशल प्रशासक और रणनीतिकार बनाता है। शीर्ष नेतृत्व का भरोसा और उनकी लंबी राजनीतिक पारी यह सुनिश्चित करती है कि वह 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी संगठन को एकजुट और सक्रिय करने की क्षमता रखते हैं।
अभिभावक और पुश्तैनी व्यवसाय
पंकज चौधरी के पिता का नाम स्वर्गीय भगवती प्रसाद चौधरी था। वह एक प्रतिष्ठित जमींदार थे और उनका परिवार पीढ़ियों से ठंडे तेल के पुश्तैनी कारोबार से जुड़ा रहा है। पंकज चौधरी आज भी अपनी कंपनी के माध्यम से इस कारोबार को सक्रिय रूप से आगे बढ़ा रहे हैं।
उनकी माता, श्रीमती उज्ज्वल चौधरी, का भी राजनीति में बड़ा योगदान रहा है; उन्होंने महाराजगंज जिला पंचायत अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है, जो इस क्षेत्र में परिवार के राजनीतिक प्रभाव को स्थापित करता है।
यह परिवार मूल रूप से गोरखपुर के घंटाघर के पास हरिवंश गली, शेखपुर का निवासी है।
पंकज चौधरी की पत्नी और बच्चे
पंकज चौधरी का विवाह 11 जून 1990 को भाग्यश्री चौधरी से हुआ था। श्रीमती भाग्यश्री चौधरी भी सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं और व्यावसायिक रूप से हरबंशराम भगवानदास आयुर्वेदिक संस्थान में निदेशक का पद संभालती हैं। उनके दो बच्चे हैं, रोहन चौधरी और श्रुति चौधरी।
उनका परिवार महाराजगंज की राजनीति में इतना प्रभावशाली रहा है कि जब से यह जिला अस्तित्व में आया है, अधिकांश समय तक जिला परिषद पर उनके परिवार के सदस्यों या करीबी समर्थकों का ही वर्चस्व रहा है।