BJP प्रत्याशी आनंद मिश्रा की बायोग्राफी: एक क्लिक में जानिए उम्र, शिक्षा, परिवार, संपत्ति और राजनीतिक सफर
बिहार चुनाव 2025 में बक्सर से भाजपा प्रत्याशी बने पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा पर विशेष—जानें उनकी उम्र, शिक्षा, परिवार, जाति, संपत्ति और राजनीति में सफर। ‘असम के सिंघम’ से नेता बने आनंद मिश्रा कैसे बदल सकते हैं बक्सर का भविष्य?
आनंद मिश्रा 2011 बैच के असम-मेघालय कैडर के आईपीएस अधिकारी हैं।
चुनावी परिचय ( आनंद मिश्रा) : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के रणक्षेत्र में बक्सर विधानसभा सीट एक महत्वपूर्ण दांव है। ब्राह्मण बहुल इस सीट पर ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस का कब्जा रहा है, लेकिन भाजपा ने यहां एक साहसी और ईमानदार चेहरे को उतारकर विपक्ष को कड़ी चुनौती दी है। पूर्व आईपीएस अधिकारी आनंद मिश्रा को भाजपा ने बक्सर से टिकट देकर अपनी रणनीति का खुलासा किया है।
आनंद मिश्रा, जिन्हें 'असम का सिंघम' और 'एनकाउंटर स्पेशलिस्ट' के नाम से जाना जाता है, ने अपनी पुलिस सेवा में अपराधियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई से देशव्यापी पहचान बनाई। 2024 में लोकसभा चुनाव में बक्सर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में 50,000 से अधिक वोट हासिल कर उन्होंने राजनीतिक क्षमता सिद्ध की। अब विधानसभा चुनाव में भाजपा के बैनर तले वे बक्सर के विकास, शिक्षा और आर्थिक उन्नयन का वादा कर रहे हैं।
इस लेख में हम आनंद मिश्रा की उम्र, शिक्षा, परिवार, जाति, संपत्ति और राजनीतिक करियर पर विस्तार से चर्चा करेंगे, जो बिहार चुनाव 2025 के संदर्भ में उनकी जीवनी को रोचक बनाती है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा- संघर्ष से सफलता की सीढ़ी
आनंद मिश्रा का जन्म 1 जून 1981 को बिहार के भोजपुर जिले के शाहपुर प्रखंड अंतर्गत प्रसौंडा गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। वर्तमान में उनकी उम्र 44 वर्ष है। उनका पैतृक गांव बक्सर जिले का जिग्ना (इटारही) है, जो उन्हें स्थानीय राजनीति से गहराई से जोड़ता है।
बचपन से ही आनंद एक तेज-तर्रार और अनुशासित छात्र रहे। प्रारंभिक शिक्षा बिहार के स्थानीय स्कूलों से प्राप्त करने के बाद वे कोलकाता चले गए, जहां उनके पिता की नौकरी थी। उन्होंने प्रसिद्ध सेंट जेवियर्स कॉलेज, कोलकाता से स्नातक (ग्रेजुएशन) की डिग्री हासिल की।
सिविल सेवा की तैयारी में जुटे आनंद ने मात्र 22 वर्ष की आयु में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास कर ली, जो उनकी बौद्धिक क्षमता का प्रमाण है। इसके बाद उन्होंने उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद से पोस्ट ग्रेजुएट (एमए) की डिग्री प्राप्त की। शिक्षा के दौरान ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के बाल स्वयंसेवक बने, जो उनकी राष्ट्रवादी विचारधारा का आधार बना।
आनंद कहते हैं, "शिक्षा ने मुझे न केवल ज्ञान दिया, बल्कि समाज सेवा के प्रति समर्पण सिखाया। यूपीएससी की सफलता मेरे लिए एक मील का पत्थर थी, जो मुझे अपराधियों के खिलाफ लड़ने की ताकत देती है।" उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि उन्हें एक शिक्षित नेता बनाती है, जो बक्सर जैसे क्षेत्र में युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है।
परिवार और जाति - जड़ों से जुड़े राष्ट्रसेवक
आनंद मिश्रा का परिवार सरल और संस्कारवान है। वे ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखते हैं, जो बक्सर की ब्राह्मण बहुल सीट पर उनके लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। उनके पिता परमहंस मिश्रा (रिटायर्ड इंजीनियर) कोलकाता के हिंदुस्तान मोटर्स में कार्यरत थे, जिन्होंने परिवार को आर्थिक स्थिरता दी।
मां शांति मिश्रा का देहांत हो चुका है, लेकिन उनकी स्मृति आनंद के लिए प्रेरणा बनी हुई है। आनंद की पत्नी अर्चना तिवारी एक फैशन डिजाइनर हैं, जो हस्तशिल्प कारीगरों के साथ सस्टेनेबल फैशन पर काम करती हैं। दंपति के कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन वे सामाजिक कार्यों के माध्यम से युवाओं को परिवार की तरह अपनाते हैं।
परिवार बक्सर और भोजपुर से गहरा जुड़ाव रखता है, जहां आनंद अक्सर गांवों में समय बिताते हैं। ब्राह्मण होने के बावजूद आनंद जातिवाद के खिलाफ बोलते हैं और कहते हैं, "वर्दी की कोई जाति नहीं होती, न ही विकास की।"
उनकी जातिगत पृष्ठभूमि भाजपा की सवर्ण-ओबीसी संतुलन रणनीति में फिट बैठती है, जो बिहार चुनाव 2025 में निर्णायक साबित हो सकती है। परिवार ने हमेशा आनंद के निर्णयों का समर्थन किया, खासकर जब उन्होंने आईपीएस पद छोड़कर राजनीति में कदम रखा।
संपत्ति: पारदर्शिता का प्रतीक
चुनावी हलफनामे के अनुसार, आनंद मिश्रा की कुल संपत्ति लगभग 2.5 करोड़ रुपये है। इसमें चल संपत्ति के रूप में 60 लाख रुपये (बैंक जमा, निवेश), 100 ग्राम सोना और एक रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल (2.51 लाख रुपये मूल्य) शामिल हैं। अचल संपत्ति में 77 लाख रुपये का मूल्य है, जैसे आवासीय संपत्ति।
कोई बड़ा ऋण नहीं है, जो उनकी वित्तीय अनुशासन को दर्शाता है। पूर्व आईपीएस के रूप में सरकारी वेतन और सामाजिक कार्यों से प्राप्त आय उनकी संपत्ति का स्रोत है। आनंद कहते हैं, "संपत्ति मेरे लिए साधन है, सत्ता नहीं। मैं इसे जनसेवा के लिए उपयोग करूंगा।"
बिहार चुनाव 2025 में जहां भ्रष्टाचार के आरोप विपक्ष पर लगते हैं, वहां आनंद की पारदर्शी संपत्ति उन्हें एक साफ-सुथरा चेहरा बनाती है। वे बक्सर में 'आनंद सेवा केंद्र' (अब कमल सेवा केंद्र) चलाते हैं, जहां सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने पर जोर देते हैं।
राजनीतिक करियर: एनकाउंटर से एनडीए तक का सफर
आनंद मिश्रा का राजनीतिक सफर 2024 से शुरू हुआ, लेकिन उनकी पृष्ठभूमि पुलिस सेवा की है। 2011 बैच के असम-मेघालय कैडर के आईपीएस अधिकारी के रूप में उन्होंने 13 वर्षों में 150 से अधिक एनकाउंटर किए, खासकर माओवादियों और ड्रग माफिया के खिलाफ।
असम में 'सुपर कॉप' के नाम से मशहूर आनंद ने साहसी कार्रवाइयों से शांति स्थापित की। जनवरी 2024 में उन्होंने आईपीएस पद से इस्तीफा दे दिया, क्योंकि भाजपा से बक्सर लोकसभा टिकट की उम्मीद टूट गई। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उन्होंने 47,000 वोट हासिल किए, जो उनकी लोकप्रियता दर्शाता है।
हार के बाद वे प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से जुड़े, जहां जनवरी-अप्रैल 2025 तक राज्य युवा अध्यक्ष रहे और 20,000 किमी की 'युवा संघर्ष यात्रा' का नेतृत्व किया। मई 2025 में जन सुराज छोड़कर उन्होंने इसे "गलत कदम" कहा। अगस्त 2025 में भाजपा में शामिल होकर उन्होंने एनडीए के विकास एजेंडा से जुड़ाव जताया।
अब बक्सर विधानसभा से उम्मीदवार के रूप में वे किसानों, युवाओं और महिलाओं पर फोकस कर रहे हैं। उनके वादे हैं: बक्सर को शिक्षित जिला बनाना, आर्थिक हब विकसित करना और सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करना। आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित आनंद कहते हैं, "मैं वर्दी से निकला हूं, लेकिन सेवा का जज्बा वही है। बक्सर का सर्वांगीण विकास मेरा लक्ष्य है।"
आनंद मिश्रा की जीवनी बिहार की बदलती राजनीति का प्रतीक है। 44 वर्षीय यह पूर्व आईपीएस अब युवाओं के लिए मिसाल हैं, जो एनकाउंटर स्पेशलिस्ट से राजनीतिक योद्धा बने। बिहार चुनाव 2025 में, जहां जाति और विकास के मुद्दे हावी हैं, आनंद जैसे चेहरे भाजपा को मजबूत बना सकते हैं। उनकी कहानी साबित करती है कि साहस और समर्पण से ही समाज बदलता है। बक्सर के मतदाता अगर ऐसे नेता चुनेंगे, तो बिहार का भविष्य चमकदार होगा।