केंद्र का यू-टर्न: चंडीगढ़ का स्टेटस बदलने पर फिलहाल ब्रेक, शीतकालीन सत्र में बिल नहीं ला रही सरकार

केंद्र के संभावित कदम का पंजाब में आम आदमी पार्टी और अकाली दल ने कड़ा विरोध किया था, इसे संवैधानिक हकों पर हमला बताया गया था। हालांकि, केंद्र के स्पष्टीकरण के बावजूद शिरोमणि अकाली दल ने 24 नवंबर को कोर कमेटी की बैठक बुलाई है।

Updated On 2025-11-23 17:14:00 IST

चंडीगढ़ का स्टेटस बदलने पर फिलहाल संसद के शीतकालीन सत्र में बिल नहीं ला रही केंद्र सरकार। 

चंडीगढ़ के प्रशासनिक दर्जे (Status) को बदलने को लेकर चल रही अटकलों पर केंद्र सरकार ने फिलहाल विराम लगा दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के दर्जे को बदलने का कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है और न ही आगामी 1 से 19 दिसंबर के शीतकालीन सत्र में इससे संबंधित कोई बिल लाने की योजना है। पहले यह आशंका जताई जा रही थी कि केंद्र सरकार चंडीगढ़ को संविधान के आर्टिकल 239 की जगह 240 में शामिल करने का बिल ला सकती है। यदि ऐसा होता तो चंडीगढ़ पूरी तरह से केंद्र शासित प्रदेश बन जाता और इसके प्रशासनिक अधिकार पूरी तरह से राष्ट्रपति और केंद्र के पास चले जाते। इससे पंजाब, हरियाणा और अन्य राजनीतिक दलों में कड़ा विरोध शुरू हो गया था।

केंद्र सरकार ने दिया स्पष्टीकरण

पंजाब के नेताओं की आशंकाओं और कड़े विरोध के बाद, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान जारी किया है। मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि संघ राज्य क्षेत्र चंडीगढ़ के लिए सिर्फ केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया को सरल बनाने का प्रस्ताव अभी केंद्र सरकार के स्तर पर विचाराधीन है। इस प्रस्ताव पर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। केंद्र ने यह भी साफ किया है कि इस प्रस्ताव में किसी भी तरह से चंडीगढ़ की शासन-प्रशासन की व्यवस्था या चंडीगढ़ के साथ पंजाब या हरियाणा के परंपरागत संबंधों को परिवर्तित करने की कोई मंशा नहीं है। मंत्रालय ने आश्वासन दिया है कि चंडीगढ़ के हितों को ध्यान में रखते हुए सभी हितधारकों से पर्याप्त विचार विमर्श के बाद ही उचित निर्णय लिया जाएगा। इसलिए इस विषय पर चिंता की आवश्यकता नहीं है और आने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में इस आशय का कोई बिल प्रस्तुत करने की केंद्र सरकार की कोई मंशा नहीं है।

70 वर्ष लंबी एक कानूनी जंग

चंडीगढ़ पर हक का विवाद करीबन 70 वर्ष पुराना है। 1966 में विशाल पूर्वी पंजाब को तोड़कर हरियाणा राज्य बनाए जाने के साथ ही यह जंग शुरू हो गई थी। चंडीगढ़ की नींव अक्टूबर 1952 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने रखी थी। 1956 तक यह पेप्सू (पटियाला एंड ईस्ट पंजाब स्टेट्स यूनियन) की राजधानी थी। 1966 में जब हरियाणा बना, तो पंजाब रिआर्गनाइजेशन एक्ट की सेक्शन 4 के तहत चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया, और इसे पंजाब व हरियाणा दोनों की राजधानी बनाया गया। यहीं से यह विवाद शुरू हुआ।

कमिशन और असफल समझौतों की कहानी

1966 से लेकर 1986 तक, चंडीगढ़ के हक को लेकर छह कमीशन बने, लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। सबसे पहले 1966 में शाह कमीशन बना, जिसने खरड़ तहसील के अधीन आते चंडीगढ़ को हरियाणा को देने की सिफारिश की थी। इस सिफारिश के बाद पंजाब में बड़ा आंदोलन शुरू हुआ। इसके बाद 1970 में अवॉर्ड सुनाया गया कि चंडीगढ़ पंजाब को दिया जाएगा, जिसके एवज में 105 हिंदी भाषी गांव हरियाणा को दिए जाएंगे, लेकिन यह अवॉर्ड कभी लागू नहीं हो पाया।

24 जुलाई 1985 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी और संत हरचंद सिंह लोंगोवाल में एक करार हुआ था कि चंडीगढ़ पंजाब को दिया जाएगा और हिंदी भाषी इलाके हरियाणा को दिए जाएंगे। हालांकि, श्री मुक्तसर साहिब के पास गांव कंडूखेड़ा में पंजाबी बोलने वाले लोग ही रहते थे, जिसके कारण यह समझौता भी सिरे नहीं चढ़ सका। इसके बाद मैथ्यू कमिशन (1985) ने सिफारिश की कि 83 हिंदी भाषी गांव, जिसमें अबोहर और फाजिल्का शामिल थे, हरियाणा को दे दिए जाएं और चंडीगढ़ पंजाब को दे दिया जाए। वेकेंट रमैया कमिशन (1986) की सिफारिश थी कि चंडीगढ़ के एवज में हरियाणा को 70 हजार और 45 हजार एकड़ जमीन दी जाए और नई राजधानी बनाने का खर्च केंद्र सरकार उठाएगी। लेकिन, यह जमीन कौनसी होगी, इस पर विवाद हो गया। आखिरकार, देसाई कमिशन वह जगह चयनित करने के लिए बना जो हरियाणा को दी जानी थी, लेकिन इस दौरान हरियाणा ने पंचकुला और घग्गर के साथ लगते 141 गांव मांग लिए और मामला फिर लंबित हो गया।

बिल को लेकर पंजाब के प्रमुख राजनीतिक दलों ने कड़ा विरोध जताया था 

केंद्र के संभावित बिल को लेकर पंजाब के प्रमुख राजनीतिक दलों ने कड़ा विरोध जताया था। आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि केंद्र की BJP सरकार संविधान संशोधन कर चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार खत्म करना चाहती है जो पंजाब की पहचान और संवैधानिक हकों पर सीधा हमला है। उन्होंने आरोप लगाया कि फेडरल स्ट्रक्चर तोड़कर पंजाबियों के हक छीने जा रहे हैं, और उन्होंने दृढ़ता से कहा कि चंडीगढ़ पंजाब का था, है और रहेगा।

चंडीगढ़ पंजाब का अभिन्न अंग 

चंडीगढ़ UT का स्टेटस बदलने के मामले पर पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ पंजाब का अभिन्न अंग है और पंजाब भाजपा पंजाब के हितों के साथ पूरी दृढ़ता से खड़ी है। उन्होंने विश्वास दिलाया कि एक पंजाबी होने के नाते, उनके लिए पंजाब सबसे पहले है। इस बीच, शिरोमणि अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में कोर कमेटी की बैठक बुलाई गई है, जहां अगले आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है। केंद्र सरकार के यू-टर्न ने फिलहाल इस दशकों पुराने राजनीतिक संघर्ष को शांत कर दिया है, लेकिन राजनीतिक दलों का विरोध स्पष्ट करता है कि यह मुद्दा पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है।

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