सेवा की मिसाल: 14 साल की उदिति मरकर भी दो लोगों की जिंदगी कर गई रोशन

हरियाणा के कैथल में मात्र 14 वर्षीय उदिति मरकर भी अमर हो गईं। उदिति की आंखें अब दो जिंदगियों को रोशन करेगी। परिवार ने समाजसेवा में जागरुकता भरा बड़ा फैसला लिया।

Updated On 2025-08-10 20:20:00 IST

कैथल की 14 वर्षीय उदिति के मरणोपरांत आंखें की गई दान।

सेवा की मिसाल : कैथल की मात्र 14 साल की उदिति मरने के बाद भी मानवता के लिए मिसाल बन गई हैं। उसकी मौत के बाद पिता प्रदीप गुप्ता ने इस गहरी दुख की घड़ी में भी समाजसेवा का असाधारण, प्रेरणादायक व अतुलनीय कदम उठाया। उन्होंने उदिति के नेत्र दान करने का फैसला लिया। उनके इस फैसले से दो जिंदगियों में उजाला फैलेगा।

दादा की भी आंखें की थीं दान

यह प्रेरणादायक कदम परिवार की तीसरी पीढ़ी द्वारा उठाया गया है। उदिति के दादाजी स्व. एडवोकेट रमेश गुप्ता की भी परिवार ने आंखें दान की थीं। समाजसेवा व जागरुकता की यह परंपरा लगातार परिवार में चलती आ रही है। प्रदीप गुप्ता ने अपने पिता की इस महान परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपनी बेटी के नेत्रदान के लिए सहमति दी।

श्री नर नारायण सेवा समिति ने किया प्रोत्साहित

इस पुनीत कार्य में डॉ. दीपक गर्ग ने नेत्रदान की प्रक्रिया में मदद की। इस दौरान श्री नर नारायण सेवा समिति कैथल ने परिवार को प्रोत्साहित किया और पूरी प्रक्रिया में सहयोग प्रदान किया। समिति के सदस्य राजेश गर्ग, राजेश गोयल, सतीश मित्तल और राजेश गर्ग बालू भी इस नेक कार्य के साक्षी बने। समिति ने परिवार के इस साहसिक कार्य की सराहना की और इसे समाज के लिए एक महान प्रेरणा बताया। उन्होंने कहा कि उदिति का यह दान न केवल दो व्यक्तियों के जीवन में उजाला लाएगा, बल्कि यह समाज में अंगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक शक्तिशाली संदेश भी है। हम उदिति की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं और उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं। परिवार का यह मानवता भरा कार्य हमेशा याद रखा जाएगा।

नेत्रदान कौन कर सकता है

नेत्रदान किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है, चाहे उसकी मृत्यु प्राकृतिक, दुर्घटना या बीमारी से हुई हो। बशर्ते आंखों की संरचना सुरक्षित हो और कोई संक्रामक रोग जैसे एड्स, हेपेटाइटिस बी व सी या रैबीज न हो। नेत्रदान उम्र की सीमा से बंधा नहीं है। नवजात शिशु से लेकर वृद्ध व्यक्ति तक आंखें दान कर सकता है। यहां तक कि चश्मा पहनने वाले, मोतियाबिंद ऑपरेशन कराए हुए या मधुमेह व हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति भी नेत्रदान कर सकता है, यदि आंख की कॉर्निया स्वस्थ हो।

मृत्यु के बाद छह घंटे अहम

आंखों का नेत्रदान मृत्यु के बाद जितनी जल्दी किया जाए, उतना बेहतर है। सामान्यतः मृत्यु के 6 घंटे के भीतर नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए ताकि कॉर्निया की गुणवत्ता बनी रहे और ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त रहे। इस दौरान आंखों को ढककर रखना और कमरे का तापमान नियंत्रित रखना कॉर्निया को सुरक्षित रखने में मदद करता है।

अधिकतर केस में केवल कॉर्निया निकालते हैं

नेत्रदान के लिए मृतक के परिजनों को नजदीकी नेत्र बैंक या अस्पताल से संपर्क करना होता है। प्रशिक्षित टीम मृतक के घर या अस्पताल आकर सर्जिकल तरीके से आंख का पारदर्शी हिस्सा कॉर्निया निकालती है। कभी-कभी पूरी आंख निकाली जाती है, लेकिन प्रत्यारोपण के लिए सिर्फ कॉर्निया का उपयोग होता है। पूरी प्रक्रिया 15-20 मिनट में होती है और मृतक के चेहरे की संरचना पर कोई असर नहीं पड़ता। दान किए गए कॉर्निया को सुरक्षित रखकर दृष्टिहीन व्यक्ति की आंख में प्रत्यारोपित किया जाता है, जिससे उसकी रोशनी लौट सकती है।

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