10 हजार बच्चे हर साल थैलेसीमिया का शिकार: एक्सपर्ट से जनिए इलाज और खतरनाक बीमारी से बचाव के तरीके

Thalassemia Awareness: भारत में हर साल 10 हजार थैलेसीमिया से ग्रसित होते हैं। माता-पिता बच्चे के पैदा होने से पहले थैलेसीमिया की जांच करा लें तो उचित इलाज संभव है।

By :  Desk
Updated On 2025-04-29 23:12:00 IST
Thalassemia Awareness campaign

Thalassemia Awareness: थैलेसीमिया को देश से खत्म करने के लिए फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने 'रेड रन टु एंड मैराथन का आयोजन किया। 5 किमी दौड़ में बॉलीवुड एक्टर जैकी श्रॉफ सहित 2000 से ज्यादा लोगों ने शिरकत की। जैकी श्रॉफ ने भावुक अंदाज में कहा-थैलेसेमिया पीड़ित एक छोटे बच्चे को अस्पताल में देखा। बच्चे के हाथ और पैर में सुइयों के अनेक निशान थे। दृश्य डरावना था। इसलिए थैलेसीमिया उन्मूलन अभियान किसी डॉक्टर अस्पताल या मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों की नहीं बल्कि हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है। थैलेसीमिया के प्रति लोगों को जागरूक करना होगा। 

10 हजार बच्चे हर साल थैलेसीमिया से पीड़ित 
डॉक्टर राहुल भार्गव ने कहा-भारत में हर साल 10 हजार बच्चे पैदा होते समय थैलेसीमिया की बीमारी से ग्रसित होते हैं। बीमारी जेनेटिक है, इसलिए बच्चे की पैदाइश के समय रोकथाम की जानी चाहिए। डॉक्टर राहुल ने कहा-माता-पिता बच्चे के पैदा होने से पहले थैलेसीमिया की जांच करा लेते हैं तो समय पर उचित इलाज हो जाएगा। अगर किसी महिला ने गर्भ धारण भी कर लिया हो तो उस स्थिति में भी जांच कराई जा सकती है। अगर टेस्ट में बच्चा मेजर थैलेसीमिया से पीड़ित पाया जाए तो अबॉर्शन का विकल्प भी अपनाया जा सकता है।

PM मोदी मन की बात में थैलेसेमिया के प्रति करें जागरूक 
डॉक्टर राहुल ने आगे कहा-प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह कोरोना के प्रति देशवासियों को जागरूक किया उसी तरह उन्हें थैलेसेमिया को लेकर भी मन की बात करनी चाहिए। जिसे देशवासी इस समस्या के प्रति जागरूक हो सकें। साथ ही ज़ब हमने एक विकसित राष्ट्र बनने का संकल्प लिया है तो हमें थैलेसीमिया के ट्रीटमेंट के बजाय प्रिवेंशन पर ध्यान देना चाहिये।

मिलजुल कर समाज को करें जागरूक 
फॉर्टिस हॉस्पिटल के हेमेटोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉक्टर विकास दुआ ने कहा-थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का खून हर तीन से चार सप्ताह के भीतर बदलवाना पड़ता है। इससे पीड़ित के परिवार पर बेतहाशा आर्थिक बोझ बढ़ता है। बीमारी का बोन मैरो ट्रांसप्लांट के जरिए उचित इलाज संभव है लेकिन लाखों की उपचार पद्धति को हम क्यों अपनाएं। हमें मिलजुल कर समाज को जागरूक करने की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकारों के समर्थन मिले तो 2035 तक हम देश को थैलेसीमिया से मुक्त करने के अपने संकल्प को वास्तविकता में बदल सके। 

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