आतंकी साये में फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी: डॉ. शाहीन की गिरफ्तारी से अल्पसंख्यक दर्जा रद्द होने का खतरा

Updated On 2025-11-25 15:35:00 IST

फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी। 

फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी इन दिनों बड़े संकट के दौर से गुजर रही है। जम्मू-कश्मीर पुलिस की ओर से एक आतंकी मॉड्यूल से जुड़ी डॉ. शाहीन सईद की गिरफ्तारी ने यूनिवर्सिटी के अंदर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। डॉ. शाहीन की गिरफ्तारी 10 नवंबर को फरीदाबाद से हुई थी, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि वह सिर्फ एक डॉक्टर नहीं, बल्कि यूनिवर्सिटी की एक अहम करिकुलम कमेटी (पाठ्यक्रम समिति) में नंबर-3 की महत्वपूर्ण पोजीशन पर कार्यरत थी। इस खुलासे ने न केवल यूनिवर्सिटी प्रशासन बल्कि इसमें पढ़ने वाले छात्रों के भविष्य और यूनिवर्सिटी के विशेष अल्पसंख्यक (माइनॉरिटी) दर्जे को भी खतरे में डाल दिया है।

आतंकी मॉड्यूल में डॉ. शाहीन की भूमिका

डॉ. शाहीन सईद की यूनिवर्सिटी में भूमिका अत्यंत संवेदनशील थी। वह पाठ्यक्रम समिति में पैरा-क्लिनिकल प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त थी। यह कमेटी यूनिवर्सिटी के मेडिकल छात्रों (MBBS) की पढ़ाई, उनके नियमों और तौर-तरीकों का निर्धारण करती थी। इस कमेटी के मुख्य कार्य निम्नलिखित थे।

• MBBS स्टूडेंट्स की ट्रेनिंग: प्रैक्टिकल और क्लिनिकल ट्रेनिंग के मानकों को तय करना।

• सिलेबस निर्धारण: पाठ्यक्रम में सुधार या बदलाव का प्रस्ताव देना।

• शिक्षक ट्रेनिंग: मेडिकल एजुकेशन यूनिट के माध्यम से शिक्षकों के मॉड्यूल और ट्रेनिंग का रोडमैप तैयार करना।

जांच एजेंसियों को अब यह शक है कि डॉ. शाहीन अपने उच्च पद और प्रभाव का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने और अन्य लोगों का माइंडवॉश करने के लिए कर रही थी। उत्तर प्रदेश के लखनऊ की निवासी डॉ. शाहीन का इतना अहम पद पर होना और फिर आतंकी मॉड्यूल से जुड़ना, यूनिवर्सिटी की आंतरिक निगरानी प्रणाली पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। इस कमेटी में वाइस चांसलर (VC) भूपेन्द्र कौर आनंद नंबर-1 और मनवीन कौर लाल नंबर-2 पर हैं। जांच एजेंसियां अब कमेटी के अन्य सदस्यों और उसके गठन के रिकॉर्ड को भी खंगाल रही हैं।

अल्पसंख्यक दर्जे पर अब 4 दिसंबर को होगी सुनवाई

दिल्ली में हुए विस्फोट जिसमें 15 लोगों की मौत हुई थी। उसमें यूनिवर्सिटी के दो डॉक्टरों (डॉ. शाहीन सईद और डॉ. मुजम्मिल शकील) की भूमिका की जांच के बाद यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा भी खतरे में आ गया है। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग (NCMEI) ने अल-फलाह यूनिवर्सिटी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। आयोग ने पूछा है कि ऐसे गंभीर आरोपों के बीच उसका अल्पसंख्यक दर्जा क्यों न रद्द कर दिया जाए। इस मामले की अहम सुनवाई 4 दिसंबर को होनी है, जहां तीन मुख्य बिंदुओं पर फैसला लिया जाएगा।

1. कारण बताओ नोटिस : यूनिवर्सिटी को यह बताना होगा कि उसके दो डॉक्टरों के आतंकी लिंक की जांच के बावजूद उसका अल्पसंख्यक दर्जा क्यों बरकरार रखा जाए।

2. पक्ष रखने का मौका : सुनवाई में यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार और शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव, दोनों को अपना पक्ष रखना होगा।

3. स्वामित्व की जांच : आयोग यह जांच करेगा कि क्या यूनिवर्सिटी का प्रबंधन अब भी उसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा किया जा रहा है, जिसके लिए इसे विशेष दर्जा दिया गया था, या स्वामित्व/नियंत्रण में कोई बदलाव आया है।

छात्रों और अभिभावकों में बेचैनी

यूनिवर्सिटी पर लगातार कसते जा रहे कानूनी शिकंजे से वहां पढ़ने वाले लगभग 750 MBBS छात्रों और 200 से अधिक पोस्ट ग्रेजुएशन छात्रों के अभिभावकों में भारी बेचैनी और डर का माहौल है। उन्हें डर है कि अगर यूनिवर्सिटी अपना अल्पसंख्यक दर्जा खो देती है या किसी बड़े संकट में फंस जाती है, तो उनके बच्चों की डिग्री और उनका भविष्य बर्बाद हो सकता है।

सोमवार को भी कई अभिभावक यूनिवर्सिटी पहुंचे। उनका कहना है कि उन्हें अब यूनिवर्सिटी प्रशासन पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं रहा। शनिवार को 25 अभिभावकों ने प्रशासन से मिलना चाहा, लेकिन उनकी मुलाकात सिर्फ तीन डॉक्टरों से कराई गई, जिससे उनकी चिंताएं कम नहीं हुईं। पेरेंट्स अब सरकार के सामने अपनी बात रखने और भारी संख्या में एकजुट होने की योजना बना रहे हैं।

पेरेंट्स चाहते हैं पारदर्शिता

छात्रों के परिजन अब यूनिवर्सिटी से जुड़ी और भी महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल करना चाहते हैं। अभिभावक रजनीश ने बताया कि वे चाहते हैं कि बच्चों को मिल रही मेडिकल सुविधाओं, अस्पताल की OPD (आउट पेशेंट डिपार्टमेंट) और ICU (इंटेंसिव केयर यूनिट) में उपलब्ध संसाधनों और सुविधाओं की जानकारी उन्हें दी जाए। डॉ. शाहीन सईद, डॉ. मुजम्मिल शकील और डॉ. उमर नबी के नाम सामने आने के बाद यह पारदर्शिता की मांग और भी जरूरी हो गई है।

कश्मीरियों सहित बाहरी राज्यों के लोगों पर जांच एजेंसियों की नजर

इस घटना के बाद, जांच एजेंसियों ने फरीदाबाद जिले में कार्यरत सभी कॉलेजों, यूनिवर्सिटी और अस्पतालों में काम करने वाले बाहरी राज्यों के लोगों की जानकारी इकट्ठा करना शुरू कर दिया है। विशेष रूप से कश्मीरी मूल के लोगों पर गहरी नज़र रखी जा रही है।

पुलिस के अनुसार, जम्मू-कश्मीर से आकर काम करने वाले या पढ़ाई करने वाले सभी लोगों का रिकॉर्ड चेक किया जा रहा है। कॉलेज और अस्पताल प्रशासन में काम करने वाले कर्मचारियों की नियुक्ति प्रक्रिया, उनकी कार्यकाल की अवधि और उनके पृष्ठभूमि (बैकग्राउंड) की जांच की जा रही है।

अल-फलाह यूनिवर्सिटी इस समय एक बड़े चौराहे पर खड़ी है। एक तरफ जहां आतंकी लिंक की जांच से उसकी साख दांव पर है, वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यक दर्जा छिन जाने का खतरा है, जिसका सीधा असर सैकड़ों छात्रों के भविष्य पर पड़ेगा। सरकार और जांच एजेंसियों की तरफ से इस मामले में जल्द और निर्णायक कार्रवाई की उम्मीद है ताकि छात्रों का भविष्य सुरक्षित हो सके।

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