Delhi High Court: 40 साल तक केस लड़ता रहा बुजुर्ग, 1 दिन की हुई सजा

Delhi High Court: दिल्ली हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में 90 वर्षीय बुजुर्ग को एक दिन की सजा सुनाई। उन्होंने कहा कि 40 साल से इस केस की सुनवाई लंबित है, जिसके कारण...

Updated On 2025-07-11 19:00:00 IST

दिल्ली हाईकोर्ट का निर्देश

Delhi High Court: साल 1984 के एक भ्रष्टाचार के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने 90 वर्षीय युवक को सजा सुनाई है। ये सजा मात्र 1 दिन की कारावास है। जस्टिस जसमीत सिंह की बेंच ने स्वार्ड ऑफ डैमोकल्स को एक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि 40 साल तक कोई मुकदमा लंबित रहना ही अपने आप में एक सजा है।

जस्टिस ने माना कि याचिकाकर्ता बुजुर्ग 40 सालों से केस लड़ रहे थे और गंभीर बीमारियों से परेशान भी थे। ऐसे में अगर उन्हें जेल भेजा जाता है, तो उनकी हालत गंभीर हो सकती है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की याचिका में देरी से सुनवाई हुई। इसके कारण उसके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। इसके बाद कोर्ट ने याचिकाकर्ता की सुनवाई अवधि को ही उसकी सजा माना और सजा की अवधि को कम कर दिया।

जानें पूरा मामला

दरअसल साल 1984 में एसटीसी के चीफ मार्केटिंग मैनेजर सुरेंद्र कुमार को एक कंपनी से 15 हजार रुपए रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि बाद में उन्हें जमानत मिल गई। साल 2002 में सुरेंद्र कुमार को दोषी पाया गया। उन्हें तीन साल की सजा के साथ 15 हजार रुपए जुर्माना भरने का आदेश दिया गया। इसके बाद उन्होंने फैसले के खिलाफ अपील की।

जानकारी के अनुसार, सुरेंद्र कुमार पर 140 टन मछली के ऑर्डर के बदले रिश्वत मांगने का आरोप था। शिकायतकर्ता हामिद ने सीबीआई को सूचित किया और छापेमारी के दौरान सुरेंद्र को पकड़ा गया था। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि इस मामले में दोषी सुरेंद्र ने साल 2002 में अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने को जमा कर दिया था।

दिया ये उदाहरण

अदालत ने सुनवाई में देरी होने के कारण सजा कम करते हुए एक उदाहरण दिया कि डैमोकल्स नाम का एक यूनानी दरबारी था। जब उसे राजा का जीवन समझने का मौका मिला, तो उसने अनुभव किया कि सत्ता के साथ ही भय और चिंता भी जुड़ी हुई है। ठीक उसी तरह रिहा होने के बाद भी मानसिक तनाव और डर में जिंदगी के 40 साल काटना किसी सजा से कम नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ये घटना 40 साल पहले की है। रिश्वत आरोप के मामले में निचली अदालत से फैसला आने में 19 साल लग गए। अपील के बाद ये मामला 22 साल लंबित रहा। इस तरह सुनवाई में देरी होने अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। इसके कारण अब दोषी को महज एक दिन की जेल की सजा सुनाई गई।

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