बस्तर की ऐतिहासिक होली : छह सौ साल पुरानी परंपरा यहां आज भी निभाई जाती है, माडपाल गांव में जलती है पहली होली

बस्तर... इस क्षेत्र के लोग आज भी अपनी प्राचीन परम्पराओं को लेकर उतने ही उत्सुक रहते हैं, जितना संभवत: इन परम्पराओं को लेकर उस समय के लोग उस वक्त उत्सुक रहते होंगे।  

By :  Ck Shukla
Updated On 2024-03-24 13:33:00 IST
रथ खींचते हुए लोग

जीवनंद हलधर-जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा की तरह ही बस्तर का होली भी काफी ऐतिहासिक माना जाता हैं। सन 1408 से चली आ रही परम्परा आज भी बस्तर में देखने को मिलती है। बस्तर संभाग की पहली होली शहर से लगे माडपाल गॉव में जलती है। आस-पास के इलाक़े से हजारों की संख्या में लोग यहां पहुँचकर होलिका दहन में शामिल होते हैं। इस होली का प्रमुख आकर्षण होता है राजा और उनका रथ। इस रथ को ग्रामीण पूरी आस्था से खींचते हुए लाते हैं और मां दंतेश्वरी और माँ मावली की पूजा अर्चना कर होलिका दहन की जाती है। 

बस्तर... जहां विश्व का सबसे लंबा पर्व दशहरा मनाया जाता है और इसी बस्तर में होलिका दहन भी ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। पूरे संभाग की पहली होलिका दहन माड़पाल गांव में होती है। जगदलपुर शहर से 15 किलोमीटर दूर माडपाल गॉव में हजारों की संख्या में ग्रामीण शामिल होकर धूमधाम से होलिका का दहन करते हैं। 

होलिका दहन करते हुए लोग

राजा पुरुषोत्तम देव ने विपदा निवारण के लिए जलाई थी होली

बताया जाता है कि, जब बस्तर के महाराजा को रथपति की उपाधि दी गई तो वे अपने लाव लश्कर के साथ इस गाँव में पहुँचे थे और उनका स्वागत गॉव वालों ने किया था। कहा यह भी जाता हैं कि, उस समय गॉव में विपदा भी आई थी तब बस्तर राजा पुरुषोत्तम देव ने मां दंतेश्वरी और मां मावली का आव्हान किया था और मां ने आशीर्वाद देते हुए होलिका दहन करने को कहा था। जिसके बाद पूरे विधि-विधान और पूजा अर्चना कर होलिका का दहन किया गया। इस होलिका दहन के बाद बाकी जगहों में होली जलाई जाती हैं और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

ऐसे पूरी होती है परंम्परा

वही बस्तर महाराजा आज भी पूरे लाव लश्कर के साथ गॉव पहुंचते हैं, जिसे ग्रामीण उनके लिये पूरी आस्था के साथ रथ का निर्माण कर बस्तर राजा को रथारूढ़ कर गॉव की परिक्रमा कराते हैं। इसके बाद होलिका दहन स्थल पर लाते हैं, जिसके बाद बस्तर राजा मा दंतेश्वरी और मां मावली की पूजा अर्चना कर होलिका दहन करते हैं। इस अवसर पर माता से बस्तर की खुशहाली की कामना की जाती है। यहां होलिका दहन के बाद राजा का सेवक अग्नि लेकर जगदलपुर राजमहल पहुंचता है और वहां दो जोड़े की होली का दहन करने के बाद पूरे बस्तर में होलिका दहन कर होली मनाई जाती है।
 

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