जशपुर जिले में शर्मनाक वारदात: किसान ने बच्चे को पेड़ पर बांधकर पीटा, सोशल मीडिया में शेयर की तस्वीरें
बाल श्रम निषेध दिवस पर छत्तीसगढ़ के जशपुर में एक नाबालिग को पेड़ से बांधकर बेरहमी से पीटने की दिल दहला देने वाली घटना सामने आई।
एक नाबालिग को पेड़ से बांधकर बेरहमी से पीटने की दिल दहला देने वाली घटना सामने आई
जशपुर। जहां एक ओर पूरे देश में बाल श्रम निषेध दिवस के अवसर पर बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले से एक मानवता को शर्मसार करने वाली घटना सामने आई है। पत्थलगांव थाना क्षेत्र के लाखझर गांव में एक किसान ने एक नाबालिग बालक को पेड़ से बांधकर बुरी तरह पीटा।
बताया जा रहा है कि किसान करमु राम ने बिना किसी ठोस प्रमाण के बच्चे पर खेत में नुकसान पहुंचाने और पुआल जलाने का आरोप लगाया। इसके बाद उसने दिनदहाड़े उस मासूम को पेड़ से बांधा और डंडों से बेरहमी से पीटा।
तस्वीरें पंचायत विकास समिति नामक व्हाट्सऐप ग्रुप में साझा की
घटना यहीं नहीं रुकी - करमु राम ने इस अमानवीय कृत्य की तस्वीरें पंचायत विकास समिति नामक व्हाट्सऐप ग्रुप में साझा कर दीं, जो कानून और समाज की संवेदनशीलता पर बड़ा सवाल खड़ा करती है।
परिजनों ने मौके पर पहुंचकर मुक्त कराया बच्चे को
बच्चे के परिजनों को जब इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने मौके पर पहुंचकर उसे मुक्त कराया और आरोपी से मुआवजे की बात कर उसे रोका। घायल बालक को तत्काल स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया है, जहां उसका इलाज जारी है।
बाल अधिकारों का खुला उल्लंघन
इस घटना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बाल अधिकारों और कानूनी जागरूकता की चिंताजनक स्थिति को उजागर कर दिया है। स्थानीय बाल संरक्षण अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता इसे एक गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन मानते हैं। उनका कहना है कि ऐसे मामलों में बच्चों को अक्सर चुप करा दिया जाता है, और आरोपी बिना किसी डर के खुलेआम घूमते हैं।
प्रशासन और समाज से सवाल
इस घटना ने कई बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं-
क्या बाल श्रम निषेध दिवस जैसे अभियान जमीनी हकीकत में कोई फर्क ला पा रहे हैं?
क्या समाज आज भी बच्चों को वह सुरक्षा दे पा रहा है, जिसके वे अधिकारी हैं?
क्या ग्रामीण क्षेत्रों में बाल अधिकारों की रक्षा के लिए पर्याप्त जागरूकता और कानूनी हस्तक्षेप मौजूद है?
मांग- सख्त कार्रवाई और जागरूकता
इस हृदयविदारक घटना के बाद सामाजिक संगठनों और बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने तत्काल कानूनी कार्रवाई और सामुदायिक जागरूकता अभियानों की मांग की है। यदि हम वास्तव में अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं, तो सिर्फ नारे और दिवस मनाने से नहीं, स्थानीय स्तर पर ठोस कार्रवाई और संवेदनशीलता की जरूरत है।