बदले जाएंगे नगर, वार्ड, मोहल्लों के नाम: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सरकार से मांगी जानकारी
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली ने राज्य सरकार से छत्तीसगढ़ के उन नगरों, वार्ड, मोहल्ले, बस्तियों और सड़कों के नाम मांगे हैं जो जातिसूचक या अपमान जनक हैं।
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रायपुर। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली ने राज्य सरकार से छत्तीसगढ़ के उन नगरों, वार्ड, मोहल्ले, बस्तियों और सड़कों के नाम मांगे हैं जो जातिसूचक या अपमान जनक हैं। नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने राज्य के सभी क्षेत्रीय संयुक्त संचालकों से यह जानकारी जुटाने के लिए कहा है। छत्तीसगढ़ में गांवों के नाम अक्सर स्थानीय इतिहास, प्रकृति, या सामाजिक संरचनाओं से प्रेरित होते हैं।
हालांकि, कुछ नाम जाति-आधारित (जैसे अनुसूचित जातियों के नाम) या अपमानजनक (जैसे तिरस्कारपूर्ण शब्द) लग सकते हैं, जो ऐतिहासिक रूप से दलित या निचली जातियों के बस्तियों को इंगित करते हैं। ये नाम सामाजिक भेदभाव को दर्शाते हैं और हाल के वर्षों में नाम बदलने की मांग बढ़ी है।
पूर्ण आधिकारिक सूची अभी सार्वजनिक नहीं
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अगस्त 2025 में सभी राज्यों को जाति-सूचक या अपमानजनक नामों वाली जगहों की सूची तैयार करने और नाम बदलने की कार्यवाही की रिपोर्ट मांगी है। यह 2024 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर आधारित है, जिसमें 'चमार', 'कंजर', 'चूहरा' और 'भंगी' जैसे शब्दों को आधिकारिक रिकॉर्ड से हटाने का निर्देश दिया गया। छत्तीसगढ़ में भी ऐसे कई गांव हैं, लेकिन पूर्ण आधिकारिक सूची अभी सार्वजनिक नहीं है।
जाति सूचक अपमानजनक नाम
जाति सूचक या अपमानजनक नाम के संबंध में हालांकि अभी नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग ने जानकारी जुटने का आदेश दिया है लेकिन इस संबंध में कुछ उदाहरण मौजूद है। इनमें चमार बस्ती रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर (कई जगहों पर)। चमार (अनुसूचित जाति) समुदाय की बस्ती को इंगित करता है। यह नाम छुआछूत और भेदभाव का प्रतीक है। भंगी बस्ती, महासमुंद, जांजगीर-चांपा, भंगी (अनुसूचित जाति, सफाईकर्मी समुदाय) से जुड़ा।
महाराष्ट्र से सटा होने के कारण यह नाम प्रचलित
चूहरा टोला बस्तर, कांकेर चूहरा (दलित उप-जाति) का संकेत। यह नाम उत्तर भारत से प्रभावित है और सामाजिक अपमान को दर्शाता है। महार वाड़ा, राजनांदगांव, कोरबा, महार (अनुसूचित जाति) समुदाय की बस्ती। महाराष्ट्र से सटा होने के कारण यह नाम प्रचलित, लेकिन अपमानजनक माना जाता है। डोमपाड़ा, सरगुजा, जशपुर डोम (अनुसूचित जाति, अंत्येष्टि से जुड़ी) का संकेत। आदिवासी-दलित मिश्रित क्षेत्रों में पाया जाता है।
नाम बदलने की पहल
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश के बाद, छत्तीसगढ़ सरकार ने 2025 में पंचायती राज विभाग को सूची तैयार करने का आदेश दिया। कुछ जगहों पर नाम बदल चुके हैं, जैसे महाराष्ट्र में 'भंगी पाड़ा' को 'वाल्मीकि नगर' बनाया गया। छत्तीसगढ़ में भी 'चमार बस्ती' को 'रविदास नगर जैसे नाम सुझाए जा रहे हैं।
आयोग की पहल इसलिए
इस पूरे मामले में आयोग ने इसलिए पहल की है क्योंकि 10 जुलाई 2025 को एक शिकायत के माध्यम से आयोग के समक्ष आया। शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि देश के विभिन्न राज्यों में अनुसूचित जाति/जनजाति से जुड़े जाति-सूचक या अपमानजनक नामों (जैसे 'चमार बस्ती', 'भंगी टोला', 'चूहरा वाड़ा' आदि) का उपयोग समानता और मानव गरिमा के विरुद्ध है। आयोग ने इसकी सुनवाई 28 जुलाई 2025 को की थी।