बेमेतरा जिले में अल्पवर्षा: ग्रीष्मकालीन धान बोने पर कलेक्टर ने लगाई रोक, सब्जियां-दलहन और फलदार फसलें लेने की अपील

बेमेतरा जिले में जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने किसानों से अपील की है कि वे ग्रीष्मकालीन धान की बुवाई न करें।

Updated On 2025-10-29 15:14:00 IST

बेमेतरा कलेक्ट्रेट 

सूरज सिन्हा- बेमेतरा। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में औसत से कम वर्षा से जल संकट की समस्या से निपटने के लिए कलेक्टर ने ग्रीष्मकालीन धान की फसल पर प्रतिबंध लगा दिया है। जिले के सभी 425 ग्राम पंचायतों की बैठक बुलाई गई। जिसमें प्रस्ताव पारित होने के बाद निर्देश दिया गया। इसके साथ ही कलेक्टर रणबीर शर्मा ने किसानों की अपील की है कि, वे जल संरक्षण में सहभागी बने।

दरसअल, बेमेतरा जिला एक कृषि प्रधान जिला है, जहाँ की 80 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या कृषि कार्य पर निर्भर है। जिले का कुल खरीफ रकबा 2.25 लाख हेक्टेयर है, जिसमें लगभग 2.05 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की जाती है। बेमेतरा जिला वर्षाछाया क्षेत्र के अंतर्गत आता है, जहाँ औसत वार्षिक वर्षा 995 मि.मी. होती है। 

सीमित वर्षा और जल संकट की चुनौती
वर्ष 2024-25 में जिले में मात्र 600 मि.मी. वर्षा दर्ज की गई, जिससे जल संकट उत्पन्न हुआ। रबी मौसम में 1.73 लाख हेक्टेयर रकबे में से 26,680 हेक्टेयर में ग्रीष्मकालीन धान की खेती की गई थी। ग्रीष्मकालीन धान की फसल को औसतन 100 से.मी. पानी की आवश्यकता होती है, जिसकी पूर्ति मुख्य रूप से भूमिगत जल से की जाती है। 1 किलोग्राम धान उत्पादन के लिए लगभग 2500 से 3000 लीटर पानी की जरूरत होती है।

भूजल दोहन से बढ़ी समस्याएँ
वृहद क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन धान की खेती के कारण जिले के कई ग्रामों में पीने के पानी तक की किल्लत उत्पन्न हो गई। सैकड़ों हैंडपंप और ट्यूबवेल सूख गए, जिससे ग्रामीणों को जल संकट का सामना करना पड़ा। समूह जल प्रदाय योजनाएँ भी प्रभावित हुईं। इससे न केवल जल स्तर में गिरावट आई बल्कि बिजली की खपत बढ़ी, पर्यावरणीय असंतुलन पैदा हुआ और भूमि की उपजाऊ शक्ति में भी कमी आई।

जिले की जनसंख्या एवं प्रशासनिक स्थिति
बेमेतरा जिले की वर्तमान जनसंख्या लगभग 10.84 लाख है, जिसमें 90 प्रतिशत आबादी ग्रामीण है। जिले के चार विकासखण्डों के अंतर्गत 425 ग्राम पंचायतें आती हैं। वर्ष 2024-25 के जल संकट और ग्रीष्मकालीन धान से हुए नुकसान को देखते हुए, जिले की सभी 425 ग्राम पंचायतों ने भविष्य में ग्रीष्मकालीन धान की खेती नहीं करने का सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है। ग्राम पंचायतों ने निर्णय लिया है कि अब किसान कम पानी में उपजने वाली वैकल्पिक फसलें अपनाएँगे। यह निर्णय जल संरक्षण और कृषि की दीर्घकालिक स्थिरता की दिशा में एक अभिनव एवं सराहनीय पहल मानी जा रही है। 

वैज्ञानिक संस्थानों ने की अनुशंसा
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान कटक (ओडिशा) ने भी यह अनुशंसा की है कि ग्रीष्मकालीन धान से भूजल का अत्यधिक दोहन होता है, जो दीर्घकाल में पर्यावरण और कृषि दोनों के लिए हानिकारक है। संस्थान ने सुझाव दिया है कि किसान भाई-बहन ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर कम पानी वाली वैकल्पिक फसलें जैसे दालें, मक्का, तिलहन आदि की खेती करें। 

वैकल्पिक फसलों से अधिक आय संभव
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार ग्रीष्मकालीन धान से प्रति हेक्टेयर लगभग ₹40,000 की शुद्ध आय होती है, जबकि वैकल्पिक फसलों से इससे अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। फसल का नाम शुद्ध आय (₹ प्रति हेक्टेयर) रागी- 72,720, मक्का- 1,14,000, सूरजमुखी- 1,08,978, तिल- 43,922, मूंग- 80,216, मूंगफली- 92,997 है।

जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने की किसानों से अपील
जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग द्वारा सभी कृषक भाइयों से निम्न अपील की गई है कि ग्रीष्मकालीन धान की बुवाई न करें। इसके स्थान पर मूंग, उड़द, चना, मक्का, सूरजमुखी, सब्जियाँ, तरबूज, खरबूजा जैसी फसलें लें। ये कम पानी में भी सफलतापूर्वक ली जा सकती हैं और अधिक लाभदायक हैं। जल संरक्षण हेतु ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई, मल्चिंग और फसल चक्र अपनाएँ। ग्रामीण जल स्रोतों जैसे कुएँ, तालाब, नाला, बंधान आदि के संरक्षण में सामूहिक भागीदारी निभाएँ। हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है कि भूजल का विवेकपूर्ण उपयोग करें। ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी जल और कृषि की स्थिरता बनाए रख सकें। बेमेतरा का यह कदम न केवल जल संरक्षण बल्कि सतत कृषि विकास की दिशा में भी एक प्रेरणादायक उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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