बस्तर के किसानों के सपनों पर फिरा पानी: तारलागुड़ा में प्रस्तावित कागज कारखाना ठंडे बस्ते में

बस्तर का बांस महाराष्ट्र पहुंच रहा है। नीलगिरी ओडिशा जा रही है और बस्तर के किसानों का हक और भविष्य दोनों फाइलों में कैद है।

Updated On 2025-11-06 18:29:00 IST

क्लोन नीलगिरी का पेड़

अनिल सामंत- जगदलपुर। बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के तारलागुड़ा में प्रस्तावित कागज कारखाने की बहुचर्चित योजना अब ठंडे बस्ते में चली गई है। जिस धरती पर बांस की हरियाली कभी ‘हरित सोना’ कहलाती थी, वही आज महाराष्ट्र के उद्योगों के लिए कच्चे माल का केंद्र बन गई है। बस्तर का बांस ट्रकों में भरकर महाराष्ट्र रवाना हो रहा है, जबकि यहां के किसान अपने ही क्षेत्र में उद्योग की आस लगाए बैठे हैं।

भोपालपटनम को कागज कारखाने के लिए इसलिए चुना गया था क्योंकि यह इलाका बांस उत्पादन का गढ़ माना जाता है। लेकिन शासन की उदासीनता और उद्योग नीति के अभाव ने बस्तर के इस सपने को अधूरा छोड़ दिया। अब स्थिति यह है कि किसान अपनी मेहनत का लाभ भी नहीं उठा पा रहे।


व्यापारी गांवों में सीधे पहुंचकर खरीद रहे पेड़
बस्तर के हजारों किसानों ने सामाजिक वानिकी विभाग की पहल पर बड़े रकबे में क्लोन नीलगिरी का रोपण किया था। विभाग ने आंध्र प्रदेश से पौधे मंगवाकर किसानों को मुफ्त में वितरण किया था। परंतु अब जब ये पौधे पेड़ों में बदल चुके हैं, तो किसानों को उनकी मेहनत की कीमत नहीं मिल रही। ओडिशा के व्यापारी सीधे गांवों तक पहुँचकर नीलगिरी की खरीदी कर रहे हैं और उसे जयपुर (ओडिशा) के पेपर मिलों में भेज रहे हैं।

छले जा रहे स्थानीय किसान
किसानों को प्रतिकिलो केवल ढाई से तीन रुपए ही मिल रहे हैं, जबकि वही लकड़ी पेपर मिलों में कई गुना दाम पर बिक रही है। कई किसानों ने शिकायत की है कि, क्लोन पौधों की गुणवत्ता भी असमान रही कुछ पौधे तेज़ी से बढ़े, तो कई अब तक छोटे ही रह गए। किसानों को लगता है जैसे उन्हें 'हरित स्वप्न' दिखाकर अधर में छोड़ दिया गया। 


स्थानीय व्यापारियों की सीमित भूमिका
स्थानीय व्यापारी नीलगिरी की बहुत कम मात्रा में खरीदी कर पा रहे हैं, जिससे बाहरी व्यापारियों का दबदबा बढ़ गया है। अब तो नीलगिरी को यहां छिलवाकर सीधे मिलों में भेजा जा रहा है, जिससे बस्तर में न तो उद्योग स्थापित हो रहे,न ही किसानों को रोज़गार या मुनाफा मिल पा रहा है।

बस्तर के किसान सिर्फ लकड़ी काटने वाले मजदूर बनकर रह गए
बस्तर की धरती पर बांस और नीलगिरी उगते हैं, पर उसका लाभ ओडिशा और महाराष्ट्र के उद्योग उठा रहे हैं। बस्तर के किसान सिर्फ लकड़ी काटने वाले मजदूर बनकर रह गए हैं। शासन की वादाखिलाफी और ठंडे बस्ते में पड़ी योजनाओं ने बस्तर के विकास की रफ्तार रोक दी है। आज आवश्यकता है कि राज्य सरकार तत्काल बस्तर में कागज उद्योग की स्थापना कर किसानों के सपनों को साकार करे ताकि बस्तर की मेहनत का लाभ बस्तर को ही मिले, बाहरियों को नहीं।

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