सेमरसोत अभयारण्य में दिख रहे ठूंठ ही ठूंठ: बड़ी-बड़ी मशीनों से काट रहे साल और सागौन के विशाल पेड़, हाथ पर हाथ धरे बैठा है वन विभाग
सेमरसोत अभ्यारण्य क्षेत्र में अवैध तरीके से साल और सागौन के पेड़ों को रात के समय मशीनों से काटकर चारपहिया वाहनों से तस्करी की जा रही है और विभाग की चुप्पी सवालों में है।
बलरामपुर में रात-दर-रात कट रहे पेड़
कृष्ण कुमार यादव - बलरामपुर। छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले का सेमरसोत अभ्यारण्य इन दिनों एक बड़े वन अपराध का केंद्र बना हुआ है। यहाँ रात के अंधेरे में साल और सागौन के विशाल पेड़ों की कटाई हो रही है, और लकड़ी की तस्करी खुलेआम चल रही है। स्थिति फिल्म ‘पुष्पा’ की कहानी जैसी लगती है, फर्क सिर्फ इतना है कि यह सब रील नहीं, बल्कि रियल जंगलों को निगल रहा सच है। एनएच-343 के किनारे बसे इन जंगलों में हो रही लगातार कटाई के बावजूद विभाग का मौन ग्रामीणों के मन में नए सवाल खड़े कर रहा है।
साल, सागौन तस्करी का नया अड्डा
ग्राम कंडा के जंगलों में रात होते ही एक अलग ही हलचल शुरू हो जाती है। ग्रामीण बताते हैं कि अंधेरे का फायदा उठाकर तस्कर आधुनिक लकड़ी काटने वाली मशीनों से बड़े-बड़े सागौन के पेड़ों को गिरा रहे हैं। कटे हुए पेड़ों के ठूंठ यह साफ बताते हैं कि पिछले कुछ ही दिनों में जंगल का बड़ा हिस्सा उजाड़ दिया गया है।
जंगल की शांत वादियों में रात में चलती मशीनों की आवाजें और बाद में चारपहिया वाहनों की आवाजाही यह संकेत देती हैं कि यह कोई साधारण चोरी नहीं, बल्कि संगठित और योजनाबद्ध तस्करी है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह पूरी गतिविधि अभ्यारण्य क्षेत्र के बीचोंबीच चल रही है, जहाँ पेड़ों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।
ग्रामीणों के लिए ‘दातून’ भी अपराध, पर तस्करों को खुली छूट
अभ्यारण्य क्षेत्र में वनोपज संग्रह को लेकर कड़े नियम लागू हैं। ग्रामीण बताते हैं कि उन्हें जंगल से साधारण दातून तक लाने की अनुमति नहीं है, और ऐसा करने पर वन अमला तुरंत कार्रवाई करता है। लेकिन उन्हीं जंगलों में रात के अंधेरे में बड़े-बड़े सागौन के पेड़ काटे जा रहे हैं और विभाग के जिम्मेदार अधिकारी मौन हैं। यही कारण है कि ग्रामीणों के बीच वन विभाग की भूमिका को लेकर गंभीर अविश्वास है। उन्हें लगता है कि इतने बड़े स्तर पर पेड़ों की कटाई किसी न किसी मिलीभगत के बिना संभव नहीं हो सकती।
जंगल हमने बचाया, सुविधा किसी ने नहीं दी- ग्रामीणों की पीड़ा
कंडा के ग्रामीणों की पीड़ा सिर्फ पेड़ों की कटाई तक सीमित नहीं है। उनका कहना है कि उन्होंने वर्षों तक इन जंगलों को बचाए रखा, लेकिन उनके गांव में आज तक बिजली जैसी मूलभूत सुविधा भी नहीं पहुंची। कई पीढ़ियाँ इसी आशा में बीतीं कि प्रकृति की सुरक्षा करने वालों को सरकार भी कुछ सुविधा देगी, पर ऐसा नहीं हुआ।
अब जब जंगल को तस्करों द्वारा मुनाफे के लिए काटा जा रहा है, तो यह स्थिति ग्रामीणों के लिए और भी कष्टदायक हो गई है। वे कहते हैं कि 'हमने जंगल को बचाया, और अब हमारे देखते-देखते ही उसे उजाड़ा जा रहा है।'
कटाई की जानकारी है पर रोक नहीं पाते- वनकर्मी
अभ्यारण्य क्षेत्र के एक वनकर्मी ने स्वीकार किया कि लकड़ी की कटाई की जानकारी उन्हें है, लेकिन वे इसे रोकने में सक्षम नहीं हैं। कारण यह बताया गया कि गांव में उनका सरकारी आवास नहीं है, और उन्हें रोज़ाना मुख्यालय बलरामपुर से आना-जाना पड़ता है। उनका कहना था कि तस्कर रात में सक्रिय हो जाते हैं और जब तक वे मौके पर पहुँचते हैं, तब तक कटाई और तस्करी दोनों पूरी हो चुकी होती हैं। यह स्वीकारोक्ति साफ दिखाती है कि क्षेत्र में प्रभावी निगरानी तंत्र का अभाव है और तस्कर इसी का फायदा उठा रहे हैं।
संवर्धन पर काम जारी- अधिकारी
स्थानीय अधिकारियों ने दावा किया कि वे पेड़ों के संवर्धन पर काम कर रहे हैं और कटाई रोकने के लिए गश्त भी बढ़ाई गई है। लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से बिल्कुल विपरीत है। ग्रामीण बताते हैं कि जंगल में न तो संवर्धन गतिविधियाँ दिखती हैं और न ही गश्त। विभाग की यह चुप्पी और कागजी कार्रवाई की संस्कृति यह दर्शाती है कि समस्या केवल तस्करों की नहीं है, बल्कि व्यवस्था में भी गंभीर कमियाँ हैं।
यह कोई नया मामला नहीं- पुरानी फाइलें धूल खाती रहीं, कटाई जारी रही
सेमरसोत अभ्यारण्य में पेड़ों की कटाई का मामला नया नहीं है। इससे पहले भी कई बार शिकायतें उठीं, जांच टीमें बनाई गईं, रिपोर्ट्स बनीं, लेकिन अंत में फाइलें ठंडे बस्ते में डाल दी गईं। हर बार अधिकारी बदले, गश्त का दावा बदला, लेकिन नहीं बदला तो सिर्फ एक ही चीज- जंगल की लगातार होती कटाई। ठूंठ, सूनी जमीन और सूनापन बताते हैं कि वर्षों से चल रहा यह खेल अब और बड़ा होता जा रहा है।
क्या इस बार विभाग जागेगा?
सेमरसोत अभ्यारण्य के जंगल सिर्फ लकड़ी नहीं, बल्कि पर्यावरण, जैव विविधता और भविष्य की पीढ़ियों की सुरक्षा के प्रतीक हैं। रात के अंधेरे में हो रही यह कटाई न सिर्फ प्राकृतिक संपदा का नुकसान है, बल्कि ग्रामीणों के विश्वास को भी तोड़ रही है। अब देखने वाली बात यह है कि क्या वन विभाग इस बार सच में कार्रवाई करेगा, या फिर यह मामला भी बाकी मामलों की तरह दबा दिया जाएगा?